- अनूठा है अरविंद का गीत संगीत…….
वेदविलास उनियाल
अरविंद रावत उत्तराखंड की ऐसी उभरती प्रतिभा हैं जिनके उच्च तकनीक शिक्षा और संगीत के जीवन का अद्भुत सामंजस्य प्रभावित करता है। जिस युवा ने जीवन के कई महत्वपूर्ण वर्ष अपनी इंजीनिरिंग की पढाई हो दिए हों , धीरे धीरे उनके लिखे और गाए गीत पहाडों में सुने जा रहे हैं।
चाहते तो अरविंद भी पुराने लोकप्रिय गीतों को आधार बनाकर फ्यूजन ला सकते थे लेकिन कहीं उनक मन में यही रहा कि नए गीतों को सामने लाया जाए और गांव कस्बों से उठे गीत उसी तरह समाज में छाए जिस तरह दशकों से गीत संगीत की परंपरा रही है।
उत्तराखंड इंजीनियरिंग कालेज में प्रोफेसर के पद की जिम्मेदारी संभालते हुए अरविंद सिंह रावत ने संगीत के सफर को भी उतनी तत्परता और लगन से संभारा है। जिस वक्त उन्होंने इलेक्ट्रोनिक इंजीनियर की पढाई के लिए दाखिला लिया था उस वक्त भी कुछ गीत रच चुके थे। लेकिन इजीनियरिंग की पढाई ने उन्हें अपने गीत को सामने लाने के लिए वक्त नहीं दिया। और जब एमटेक करके इंजीनियर बनने की साध पूरी हो गई तो मचलते हुए अपनी हारमोनियम से सुरों को साधने लगे। आज अभी वह अपनी बिंसरी बटी, साथ माया कू, सुण ले साथी, कु होली स्या नौनी, व्याखुनी कू घाम जैसी प्रस्तुतियों के साथ आए हैं तो बेहद संभावना उनमें जगती है। अपना खास मौलिक अंदाज, अच्छी आवाज और साफ सुथरे शब्द , संगीत की समझ सब कुछ उनके पास है बस जिन गोपाल बाबू गोस्वामी चंद्र सिंह राही और पौडी में नरेंद्र सिंह नेगी को बचपन में सुना, वहां तक पहुंचने के लिए कुछ और मंजना है। उनका सफर सुरीला है और उनकी प्रतिभा सबको प्रभावित करती है।
कभी प्रो माइक ब्रेयली और इंजीनियर अनिल कुंबले को अपनी उच्च शिक्षा से लग क्रिकेट के मैदान में जलवे दिखाते देखा गया। ऐसा कम हो पाता है कि विज्ञान की कठिन पढाई में डाक्टर इंजीनियर बनने के बाद बिल्कुल अलग खेल या गीत संगीत कला का कोई मुकाम हासिल किया जाए। चाहे अंतराष्ट्रीय राष्ट्रीय स्तर पर हो या राज्य स्तर पर लेकिन जब ऐसी प्रतिभा सामने आती हैं तो उन्हें देखना सुनना अच्छा लगता है। अरविंद टिहरी में जन्में और शुरुआती पढाई पौडी में हुई। अलग बात यह भी कि घर में गीत संगीत का कहीं कोई माहौल नहीं बल्कि उस परिवेश में सीधे सीधे जहां मेधावी बच्चे में आईएएस इंजीनियर डाक्टर बनाने का सपना देखा जाता हो , कब अरविंद की लगन लोकसंगीत पर लग गई। आखिर सात आठ साल की उम्र में ही गीत लिख देने का आशय यही है कि अध्ययन वह किसी भी तरह का करते रहे हो लेकिन गीत संगीत उनके साथ साथ बचपन से चलता रहा। उन्होंने रेेडियो में , सांस्कृतिक मंचों में लोकगायको को सुना और उन जैसा बनने की ठानी। केवल संगीत की यह शौक उस समय थोडा शिथिल हुआ जब बीटेक और एमटेक करने के लिए हारमोनियम से दूरी रखनी पडी।
आज अरविंद इंजीनियरिंग कालेज में प्रोफेसर हैं और अब उनके लिए आकाश खुला है। उन्हें सुनने वाली उनकी गायकी से जितने प्रभावित हो रहे हैं उतना ही इस बात पर कि वह अच्छे से अच्छे गीत समाज को देने के लिए तत्पर दिख रहे हैं। वह गीत संगीत से स्तरीयता पर कोई समझौता नहीं करना चाहते। केवल पापुलर होना जिसे कहते हैं उससे अलग वह धीरे धीरे उन गीतों को ला रहे है जिसे लोकगीतों की सुंदर परंपरा बनी रह सकती है। नियमित रियाज करते हैं और समाज में शब्द और भावना को तलाशते हैं। उनकी गायकी का रंग धीरे धीरे समझ में आता है। लेकिन इसमें भागादौडी और उतावलापन नहीं है बल्कि यह पडाव लेता हुआ आगे बढ रहा है। जो शायद उनके व्यक्तित्व की तरह भी है। हारमोनियम साज को बेहद मीठा बजाते हैं और लोक जीवन के संगीत में भी माधुर्य़ चाहते हैं। कम से कम अब तक जो उनके गीत संगीत की शुरुआती छटा दिखी है वह पूरी तरह प्रभावित करती है। युवा संगीत आशा से भरा है फिर वह चाहे अरविंद हों या रजनीकांत सेमवाल। उनका संगीत युवाओं को भा रहा है हिलोरे ले रहा है। अजब यह भी कि अरविंद अगर प्रोफेसर हैं तो रजनीकांत ने भी उच्च शिक्षा लेकर एमबीए किया है। लेकिन संगीत का जुनून इतना गहरा है कि ये युवा जिंदगी के ताल का साजों से सामंजस्य किए हुए हैं।