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चार मार्च का दिन गैरसैंण के लिए अब तक रहा है ऐतिहासिक
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने लिया था पिछले वर्ष राज्य के इतिहास का सबसे बड़ा फैसला
और अब इस वर्ष चार मार्च के दिन गैरसैंण को मिली कमिश्नरी और साथ में बहुत कुछ
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादूनः उत्तराखंड के इतिहास में चार मार्च को एक सुनहरी तिथि की तरह सदैव याद रखा जाएगा। आज ही के दिन गैरसैण में बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैण को सूबे की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था। और इसी घोषणा ने राज्य आंदोलन की मूल भावना का सम्मान करते हुए पहाड़ी राज्य की अवधारणा साकार कर दिया था। देवभूमि को मिले इस सम्मान के लिए सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ ही 4 मार्च का इतिहास भी अविस्मरणीय रहेगा।
उत्तराखण्ड के महान क्रांतिवीर वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने 60 के दशक में पृथक राज्य की बात करते हुए गैरसैण को राजधानी बनाने की संकल्पना दी थी। और बाकायदा इसका एक मसौदा भी लोगे के सामने रखा था। राज्य की लड़ाई में भी गैरसैण ही अस्मिता और शहादतों के केंद्र में रहा। लेकिन लोगों की उम्मीदें तब टूटी जब राज्य मिलने के बाद निजी स्वार्थों को तवज्जों दी गई और गैरसैण गैर हो गया। खुद को पहाड़ के सबसे बड़े हिमायती कहने वाले सूबे के हुक्मरानों ने आंदोलन की मूल भावना को ही हासिए पर रख दिया। और मैदानी शहरों के वातानुकूलित कमरों से ही पहाड़ के दर्द पर महरम की फौरी कोशिशें होती रही। कुल जमा गैरसैण सिर्फ चुनावी मुद्दा बनकर रह गया था। लेकिन वर्ष 2017 में जब सीएम त्रिवेंद्र रावत ने प्रदेश की सत्ता संभाली तो पहाड़ के इस पुत्र ने ही गैरसैण को अपनाने का साहस कर सका।
आज ही के दिन चार मार्च 2020 को गैरसैण में सत्र चल रहा था। किसी को पता नहीं था कि पहाड़ के लाल त्रिवेंद्र रावत के मन क्या चल रहा है। लेकिन भगवान बदरीनाथ व बाबा केदार की कृपा तो वहां सुबह से ही दिल खोल कर बरसने लग गई थी। कुदरत ने भी उल्लासिल भराड़ीसैण का श्रंृगार बर्फ की श्वेत चादर से कर दिया था। पहले से तो यह सत्र भी अन्य सामान्य सत्र की ही तरह चल रहा था। सूबे का माहौल भी एकदम शांत था। इसी बीच मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया। संचार क्रांति के युग में यह खबर चंद पलों में ही पूरे राज्य से देश भर में फैल गई। सीएम त्रिवेंद्र के इस निर्णय से पूरा सूबा उल्लासित हो गया। और राज्य आंदोलन के शहीदोें की पुण्य आत्माओं की भी जरूर ठंडक मिली होगी।
इस ऐतिहासिक घटनाक्रम से विरोधी तो चारों खाने चित हो गए और विपक्षी दलों के सूरमां भी हाथ मलते ही रह गए। फैसले ने पूरे राज्य के आवाम में एक तरह से प्राण फूंक दिए। और इसी फैसले ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी प्रदेश को सबसे बड़ा और लोकप्रिय जननेता बना दिया। इससे पूर्व मंे तथाकथित सूरमांओं के सारे प्रयास भोथरे साबित हो गए। बर्फ की ठंडक के साथ उल्लास की गरमाहट के बीच गैरसैण विधान सभा के प्रांगण में मिष्टान बांटे गए और फोटोशूट भी हुआ। उसके बाद तो मानो गैरसैण के साथ पहाड़ की उम्मीदों को पंख लग गए। सही मायनों में राज्य आंदोलन की मूल भावना का सम्मान के साथ पहाड़ की पीड़ा को भी अब जाकर समझा गया। देवभूमि के हितैषियों और विकास की सोच रखने वालों ने इस फैसले को हाथों हाथ लिया। और तथाकथित झंडाबरदारों की खिसयाहट भी कहीं छिपी नहीं रह सकी। इस एक साल में सरकार ने गैरसैण को राजधानी के तौर पर विकसित करने के कई बड़े फैसले भी ले लिए हैं। ठगे से बैठे उत्तराखंड के जनमानस को सीएम त्रिवेंद्र ने आज ही के दिन एक बड़ा तोहफा दिया। ऐसे में जश्न तो बनता है।