Tendering :अधिप्राप्ति नियमावली का गलत मतलब निकाल पेयजल निगम में करोड़ों का खेल!
- नियमों की गलत व्याख्या कर सरकार को लगाया करोड़ों का चूना
- स्टिंग मामले में कोई कार्रवाई न होने से और भी बेखौफ
- भैरव गढ़ी पंपिंग पेयजल योजना में करोड़ों का घोटाला
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून: अपनी विवादित कार्यशैली को लेकर चर्चित उत्तराखंड पेयजल निगम के आला अधिकारी का अब इ-टेंडरिंग के नाम से बड़ा घोटाला सामने आया है। स्टिंग होने के बाद और पेयजल मंत्री के मुख्यमंत्री को कार्रवाही के लिए लिखने के बाद भी सरकार द्वारा इस मामले में कोई भी कार्रवाई न किये जाने से और भी बेखौफ हो चुके इस अधिकारी के कार्यकाल में एक ही कार्य की सिविल,यांत्रिक और इलेक्ट्रिकल कार्यों की निविदायें संयुक्त रूप से निकले जाने सहित अपनी चहेती निर्माण कंपनी को ठेके देने का आरोप है। जबकि देश के उच्चतम न्यायालय द्वारा इस तरह की निविदाओं को अलग-अलग कार्य आवंटित कर निविदा निकाले जाने का निर्देश हैं। इतना ही नहीं उत्तराखंड राज्य की तमाम निर्माण एजेंसियां लोक निर्माण विभाग, ग्रामीण अभियंत्रण विभाग,सिंचाई विभाग आदि एक साइट के सिविल, यांत्रिक और इलेक्ट्रिकल कार्यों की अलग-अलग निविदाएँ आमंत्रित करती रहीं हैं।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि पेयजल निगम में सिविल कार्यों के अतिरिक्त यांत्रिक कार्यों और इलेक्ट्रिकल कार्यो के किये अलग-अलग खण्ड निगम के स्थापना काल से ही बनाये गए हैं और पूर्व में इनके द्वारा राज्य में कार्य भी सम्पादित किये जाते रहे हैं। लेकिन वर्तमान में अलग—अलग प्रकृति के कार्यों की निविदाएँ और इन सब खण्डों के कार्यों का एक ही निविदा करने का नया प्रचलन इस आला अधिकारी द्वारा शुरू किया गया है, जिसके चलते यांत्रिक और इलेक्ट्रिकल खंड के तमाम अनुभवी अभियंता बिना काम के खाली बैठने को मजबूर हैं। इतना ही नहीं इस आला अधिकारी ने अधिप्राप्ति नियमावली (प्रिक्योर्मेंट पालिसी) की गलत व्याख्या करके अलग अलग प्रकृति के कार्यों की एक ही निविदा निकालकर राज्य का करोड़ों का नुकसान किया जाना चर्चाओं में है।
ताजा मामला 64 ग्राम सभाओं के पेयजल संकट को दूर करने के लिए बनाई गई भैरव गढ़ी पंपिंग पेयजल योजना का है इस योजना में चहेते ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए सिविल व यांत्रिक कार्य की निविदा तमाम कायदे कानूनों (प्रिक्योर्मेंट पालिसी) को धत्ता बताते हुए एक साथ एक ही निविदा निकाली गई। चर्चाओं के अनुसार सिविल,यांत्रिक और इलेक्ट्रिकल कार्यों की एक ही निविदा निकालने के कारण केवल दो ठेकेदार निविदा में सफल हुए हैं जबकि जानकारी के अनुसार यदि अगर अलग-अलग निविदा निकाली जाती तो निश्चित तौर पर अधिक ठेकेदार निविदा में आते और अधिक प्रतिस्पर्धात्मक दरें तो प्राप्त ही होती साथ ही राज्य का लाखों रूपया भी बच सकता था । चर्चा तो यहाँ तक है कि इस पम्पिंग योजना में निविदा प्रक्रिया का जमकर उलंघन किया गया है,और चहेते ठेकेदार को काम देने के लिए कागजों में कई तरह से गोड-गाड़ तक किया गया है।
गौरतलब हो कि अधिप्राप्ति नियमावली (प्रिक्योर्मेंट पालिसी) को लेकर कई राज्यों के उच्च न्यायालयों द्वारा बार-बार दिए गए तमाम निर्णयों और आदेशों के तहत यांत्रिक अथवा इलेक्ट्रिकल कार्य सिविल के साथ करना पूरी तरह गलत बताया गया है। सबसे ताज्जुब की बात यह है कि एक तरफ आला अधिकारी द्वारा निविदाओं को स्लाइस ना करने की बात कह कर सिविल और यांत्रिक कार्यों की संयुक्त निविदा निकाली जाती है, तो वहीँ भैरव गढ़ी पेयजल योजना में सिविल कार्यों की दो अलग-अलग स्लाइस में निविदा निकाली गई है। चर्चाओं के अनुसार सेटिंग. फिक्सिंग और लेनदेन के मामले में माहिर इस संस्थान के आलाधिकारी ने राज्य के तमाम बड़े कार्यों की निविदाओं में टेंडर प्रक्रिया में नियमों को ताक पर रख कर करोड़ों रुपये की चपत सरकार को लगाई अब तक लगायी है। पेयजल निगम के निर्माण विंग में भी इस आलाधिकारी द्वारा फर्जी अनुभव लगाकर करोड़ों के टेंडर अपने चहेते ठेकेदारों को दिए जाते रहे हैं।
निर्माण विंग में काम करने वाले ठेकेदारों ने पेयजल मंत्री, प्रबंध निदेशक को इस प्रक्रिया के विरूद्ध कई बार ज्ञापन दिया है लेकिन इस आलाधिकारी की पैठ के चलते किसी भी अधिकारी ने अब तक की जा रही लूट की जांच तक करवाने की जहमत नहीं उठायी बल्कि वह भी इनकी लूट में शामिल हो गए। वहीँ इस मामले में सुनवाई न होने पर ठेकेदारों ने अलग-अलग प्रकृति के कार्यों की अलग-अलग निविदाएँ आमंत्रित करने के लिए न्यायालय में याचिका दी है जिसमें से एक पर उच्च न्यायलय द्वारा निर्णय दिया जा चुका है जबकि एक अन्य याचिका पर अगले माह निर्णय अपेक्षित है । इतना ही नहीं इस याचिका को देखते हए दो निविदाओं पर उच्च न्यायालय ने स्थगन भी लगा रखा है। चर्चा है कि यदि नियमानुसार यदि नीचे के अधिकारी सिविल तथा यांत्रिक और इलेक्ट्रिकल कार्यों के टेंडर अलग-अलग करने का प्रस्ताव भेजते हैं तब भी ये आला अधिकारी उन्हें टेंडर एक में करने की आदेश देकर फ़ाइल को लटका और अटका देता है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि केवल इसी अधिकारी के बीते सात साल के कार्यकाल से ही इस विभाग में संयुक्त टेंडर का घाल मेल चलता रहा है। चर्चा यहाँ तक है कि यह अधिकारी हर टेंडर को अपनी निर्धारित सीमा के अंतर्गत लाने का प्रयास करता है ताकि जिससे सेटिंग गेटिंग का खेल ’’खेल’’सके। चर्चा तो यहाँ तक है कि आज तक जितने भी इस तरह के संयुक्त टेंडर इस अधिकारी के कार्यकाल में हुए हैं उनकी जांच कराई जाए तो निकल कर आएगा कि यह अधिकारी ने कितना उत्तराखंड को अब तक कितना चूना लगाया है।