जिसने टिहरी रियासत के छक्के छुड़ा दिए थे ऐसे थे श्री देव सुमन

“हुवा अंत पचीस जुलाई सन चौवालीस में तैसा, निशा निमंत्रण की बेला में महाप्राण का कैसा?
मृत्यु सूचना गुप्त राखी शव कम्बल में लिपटाया, बोरी में रख बाँध उसको कन्धा बोझ बनाया।
घोर निशा में चुपके चुपके दो जन उसे उठाये, भिलंगना में फेंके छाप से छिपते वापस आए।”

यह वीर है उस पुण्य भूमि का, जिसको मानसखंड , केदारखंड, उत्तराखंड कहा जाता है, स्वतंत्रता संग्रामी श्री देब सुमन किसी परिचय के मोहताज़ नही हैं, पर आज की नई पीड़ी को उनके बारे में, उनके अमर बलिदान के बारे में पता होना चाहिए, जिससे उन्हें फक्र हो इस बात पर की हमारी देवभूमि में सुमन सरीखे देशभक्त हुए हैं।
सुमन जी का जनम 15 मई 1915 में टिहरी के पट्टी बमुंड, जौल्ली गाँव में हुआ था, जो ऋषिकेश से कुछ दूरी पर स्थित है। पिता का नाम श्री हरी दत्त बडोनी और माँ का नाम श्रीमती तारा देवी था, उनके पिता इलाके के प्रख्यात वैद्य थे। सुमन का असली नाम श्री दत्त बडोनी था। बाद में सुमन के नाम से विख्यात हुए।प्रख्यात गाँधी- वादी नेता, हमेशा सत्याग्रह के सिधान्तों पर चले। पूरे भारत एकजुट होकर स्वतंत्रता की लडाई लड़ रहा था, उस लडाई को लोग दो तरह से लड़ रहे थे कुछ लोग क्रांतिकारी थे, तो कुछ अहिंसा के मानकों पर चलकर लडाई में बाद चढ़ कर भाग ले रहे थे, सुमन ने भी गाँधी के सिधान्तों पर आकर लडाई में बद्चाद कर भाग लिया। सुन्दरलाल बहुगुणा उनके साथी रहे हैं जो स्वयं भी गाँधी वादी हैं।
प्रजातंत्र का जमाना था, लोग बाहरी दुश्मन को भागने के लिए तैयार तो हो गए थे पर भीतरी जुल्मो से लड़ने की उस समय कम ही लोग सोच रहे थे और कुछ लोग थे जो पूरी तरह से आजादी के दीवाने थे, शायद वही थे सुमन जी, जो अंग्रेजों को भागने के लिए लड़ ही रहे थे साथ ही साथ उस भीतरी दुश्मन से भी लड़ रहे थे। भीतरी दुश्मन से यह तात्पर्य है उस समय के क्रूर राजा महाराजा। टिहरी भी एक रियासत थी, और बोलंदा बद्री (बोलते हुए बद्री नाथ जी) कहा जाता था राजा को। श्रीदेव सुमन ने मांगे राजा के सामने रखी, और राजा ने 30 दिसम्बर 1943 को उन्हें गिरफ्तार कर दिया विद्रोही मान कर, जेल में सुमन को भारी बेडियाँ पहनाई गई, और उन्हें कंकड़ मिली दाल और रेत मिले हुए आते की रोटियां दी गई, सुमन तीन मई 1944 से आमरण अन्न शन शुरू कर दिया, जेल में उन्हें कई अमानवीय पीडाओं से गुजरना पड़ा, और आखिरकार जेल में 209 दिनों की कैद में रहते हुए और 84 दिनों तक अन्न शन पर रहते हुए 25 जुलाई 1944 को उन्होंने दम तोड़ दिया। उनकी लाश का अन्तिम संस्कार न करके भागीरथी नदी में बहा दिया । मोहन सिंह दरोगा ने उनको कई पीडाएं कष्ट दिए उनकी हड़ताल को ख़त्म करने के लिए कई बार पर्यास किया पर सफल नही हुआ।
कहते हैं समय के आगे किसी की नही चलती वही भी हुआ, सुमन की कुछ मांगे राजा ने नही मानी, सुमन जो जनता के हक के लिए लड़ रहे थे राजा ने ध्यान नही दिया, आज न राजा का महल रहा, न राजा के पास सिंहासन। और वह टिहरी नगरी आज पानी में समां गई है। पर हमेशा याद रहेगा वह बलिदान और हमेशा याद आयेगा क्रूर राजा।
टिहरी राजशाही के खिलाफ 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद शहादत देने वाले श्रीदेव सुमन को उनके शहादत दिवस(25 जुलाई 1944) पर नमन.श्रीदेव सुमन की शहादत इस बात का एक और प्रमाण थी कि क्रूरता के मामले में देसी रियासतों के राजे-रजवाड़े भी अंग्रेजों से कुछ कम न थे.श्रीदेव सुमन जिन नरेंद्र शाह के राज में शहीद हुए,वे अंग्रेजियत से भरपूर थे.इसीलिए क्रूरता का मॉडल भी उनका अंग्रेजों जैसा ही था.वो तिलाड़ी का गोलीकांड हो, श्रीदेव सुमन और आखिरी में कामरेड नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी की शहादत हो,सभी टिहरी राजशाही के क्रूर-हत्यारे और जनविरोधी चेहरे की गवाही देते हैं.श्रीदेव सुमन की महाराजा के अधीन उत्तरदायी शासन,जुलूस निकालने और सभा करने जैसी मांगें भी राजा नरेंद्र शाह को गवारा नहीं हुई.आखिर राजशाही को उत्तरदायी होने की बात वे सोच भी कैसे सकते थे ! राजशाही तो लुटेरी हो सकती है,प्रजा को गुलाम समझने वाली हो सकती है,वह उत्तरदायी कैसे हो सकती है?
श्रीदेव सुमन के शहादत दिवस पर उन्हें याद करते हुए,यह गहरी टीस उठती है कि न केवल राजशाही की प्रवृत्तियों को हम लोकतंत्र में ढो रहे हैं,बल्कि उस खूनी इतिहास वाले राजपरिवार के वारिसों को भी लोकतंत्र में अपने प्रतिनिधि के तौर पर ढो रहे हैं.पिछले वर्ष राजपरिवार पर ऐसी ही टिप्पणी पर एक मित्र ने लिखा कि उनके पुरखों के हाथ खून से रंगे थे तो इसमें राजपरिवार के वर्तमान वारिसों का क्या दोष? सवाल है कि राजपरिवार के जो वर्तमान वारिस हैं,उनकी, उस खूनी राजपरिवार के सदस्य होने के अतिरिक्त और कौन सी योग्यता है,जिसके बल पर वो टिहरी लोकसभा का टिकट कभी कांग्रेस और कभी भाजपा से पाते रहे हैं? वे उसी अतीत पर खड़े हो कर वर्तमान में लोकतंत्र में भी राजतंत्र वाली सुख-सुविधाएं भोग रहे हैं,जो अतीत तिलाड़ी के मैदान में घेर कर क़त्ल किये असंख्य रंवाल्टो,श्रीदेव सुमन,नागेंद्र सकलानी,मोलू भरदारी जैसे कई नाम-अनाम शहीदों के खून से रंगा हुआ है.
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