त्रिवेंद्र जी देहरादून में जमे बाहरी पत्रकारों से हो जाओ सावधान !
उत्तराखंड को लूटता उत्तराखंडी देख रहा
साभार : हिमालयी लोग डॉट कॉम
नई दिल्ली। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत जी देहरादून में जमे बाहरी पत्रकारों से सावधान रहिए। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का हश्र आपको याद होगा। सभी मानते हैं कि यदि उनका स्टिंग न हुआ होता तो उनका हरा पाना इतना आसान न होता।
स्टिंग के पीछे की कहानी आपको भी मालूम होगी। आपको बता दें कि दिल्ली के मीडिया वालों के लिए पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश आरामगाह बन गए हैं। खासतौर पर उत्तराखंड। दिल्ली से सबसे निकट होने और उत्तराखंड के सीधे साधे लोग होने से उत्तराखंड को दिल्ली के पत्रकार सबसे ज्यादा दोह रहे हैं। कई संपादक तो ऐसे हैं जो राजकीय अतिथि बनकर वहां हर साल एशोआराम फरमाने पहुंच जाते हैं। जबकि ज्यादातर पहाड़ी पत्रकारों की कोई पूछ नहीं है।
सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की। इस पत्रकारों की हर शासन में इनकी मौज रहती है। पहले मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारीे के जमाने से शुरू हुआ यह लूट का धंधा यथावत अब तक जारी है। तिवारी इस गरीब प्रदेश के खजाने से सालाना 17 करोड़ रुपये इन पत्रकारों के लिए विज्ञापन पर लुटाते थे। यह सिलसिला हरीश रावत सरकार तक जारी रहा है।
आपको यकीन आए या न आए लेकिन उत्तराखंड से कुल 3026 दैनिक, साप्ताहिक, मासिक पत्र-पत्रिकाएं छपती हैं। इनमें हिंदी के 2641 हैं। इसमें 332 दैनिक अखबार शामिल हैं। जबकि हिमाचल प्रदेश से 301 व जम्मू-कश्मीर से 293 पत्र-पत्रिकाएं ही निकल रही हैं। यह अलग बात है कि उत्तराखंड में ये दैनिक अखबार वहां सिर्फ विज्ञापन के नाम पर कमाई करने के लिए निकले जा रहे हैं। जानने लायक यह है कि इन्हें प्रकाशित करने वालों में उत्तर प्रदेश बिहार और दिल्ली के मूल निवासी ज्यादा हैं। कई लोग ऐसे हैं जो एक दर्जन से ज्यादा अखबार निकाल रहे हैं जो कि फाइलों तक सीमित हैं और उनको पिछली सरकारों ने जमकर विज्ञापन दिए। बाहरी लोगों की वेबसाइटों को विज्ञापन भी जम कर दिया जाता रहा है।
छोटे अखबार निकालने के साथ ही इन धंधेबाजों ने दूसरे धंधे भी खड़े कर दिए हैं। कारोबार करना गलत हीं है, लेकिन अखबार की आड़ में यह सब हो रहा है। इन अखबारों को सालाना करोड़ों रुपये का विज्ञापन मिलता रहा है जबकि दिल्ली के पत्रकारों के सैर सपाटा पर भी मोटी रकम खर्च की जाती रही है। आरएनआई के आंकड़े बताते हैं कि 31 दिसंबर 2014 तक देशभर से 99660 पत्र-पत्रिकाएं पंजीकृत थीं। देश में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, गुजरात, केरल के बाद सबसे ज्यादा समाचार पत्र उत्तराखंड से प्रकाशित हो रहे हैं। हिमाचल प्रदेश से 301 व जम्मू-कश्मीर से 293 पत्र-पत्रिकाएं ही निकल रही हैं। लेकिन इतने ज्यादा प्रकाशित होने के बाद भी उत्तराखंड में कहीं दिखाई नहीं देते हैं।
फर्जी व धंधेबाज छोटे समाचार पत्र वाले ही नहीं हैं, बल्कि बड़े मीडिया हाउस के पत्रकारों ने भी उत्तराखंड खासतौर पर देहरादून को अपना ठिकाना बनाया है। एक दैनिक समाचार पत्र व एक खबरिया चैनल के संपादकों ने तो अपनी – अपनी कंपनियों के विश्वविद्यालय के लिए देहरादून में जमीन दिलवाने मेंं बड़ी भूमिका निभाई। एक संपादक तो आगरा से बड़े भू माफिया व बिल्डर का धंधा चलाने के लिए वहां लगा रहा व कामयाब भी हो गया। एक एक खबरिया चैनल का मालिक तो वहां अब बिल्डर बन गया है व फ्लैट्स बनवा रहा है। आप आरटीआई डाल कर देख लीजिए हर साल दिल्ली से कितने पत्रकारों के सैर-सपाटे के लिए प्रदेश सरकार ने इंतजाम किए, सच्चाई सामने आ जाएगी। हिमाचल प्रदेश में भी कमोबेश अब यही हालात हैं।