दिल्ली और मुंबई के दलाल पथ पर अब तक बिकते रहे उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों में शुमार न होने का खामियाजा उत्तराखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत को भुगतना पड़ रहा है अन्यथा दिल्ली में दलालों के हाथों बिक चुके कुछ नेता और उनके दिल्ली और देहरादून के कुछ पिछलग्गू कथित पत्रकार उनकी शान में कसीदे नहीं पढ़ते। लेकिन उत्तराखंड के पर्वतीय इलाके के बुद्धिजीवियों और जनता को उनके मुख्यमंत्री पर फक्र है कि उनका मुख्यमंत्री सूबे के पूर्व मुख्यमंत्रियों और नेताओं की तरह दिल्ली और देहरादून के दलालों के हाथों कॉफी शॉप या बंद कमरों में नहीं बिकता है।
बात निकली है कि उत्तराखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री दिल्ली और देहरादून के दलालों को घास नहीं डालते हैं तो कुछ लोगों ने उनका विरोध शुरू कर दिया लेकिन उन्हें नहीं मालूम कि उत्तराखंड के इस मुख्यमंत्री को वे चाहे कितना भी बदनाम करने की कोशिश क्यों न करें छींटे उन्ही के मुंह और कपड़ों पर नज़र आयेंगे। अब तक उत्तराखंड में दलाली के धंधे से मात्र 18 वर्षों में खगपति से करोड़पति बनने वालों को उत्तराखंड प्रदेश से लेकर राजधानी देहरादून तक की जनता और अधिकारी सब जानते हैं ।
लिहाज़ा मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र के मुख्यमंत्री बनते ही उन्हें साधने की कोशिशें होने लगी, उन्हें कुछ नेताओं और दलालों के मार्फ़त बड़ी-बड़ी पार्टीयों में ले जाने का ताना -बाना बुना जाने लगा और कुछ हद तक वे सफल भी हुए लेकिन जब तक उनके मंतव्य मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र के सामने आते उससे पहले ही वे बेनकाब हो गए और उनका मुख्यमंत्री को फंसाने का सारा चक्रब्यूह ध्वस्त हो गया। इसके बाद उन्होंने उनके परिजनों को अपने जाल में फंसाने का ताना-बाना बुना लेकिन यहाँ भी उनकी एक न चली कहावत है कि ”जिसके ऊपर तू हो स्वामी सो दुःख कैसे पावै”