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अभी तो ‘नब्ज’ ही ‘टटोल’ रही सरकार …

योगेश भट्ट 
धमाकेदार जीत के साथ प्रदेश की सत्ता पर भाजपा की ताजपोशी तो हुई लेकिन महीने भर में सरकार न दिशा तय कर पाई और न ही कोई मजबूत संदेश दे पाई है। हालांकि यह बात भी सही है कि 30 दिन किसी सरकार के आकलन के लिए काफी नहीं हैं, लेकिन कहावत, ‘फर्स्ट इंप्रेशन इज लास्ट इंप्रेशन’ के लिहाज से बात करें तो, एक महीने में सरकार न साख बना पाई, न धाक जमा पाई।

उल्टा भाजपा हाईकमान की पसंद को लेकर सवाल उठने लगे हैं। आखिर उठे भी क्यों न? पड़ोसी प्रदेश उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ लगातार एक्शन में हैं, जिसके चलते वे सुर्खियों में हैं। वहां आम लोगों को बदलाव महसूस होने लगा है। योगी के कई फैसले तो उत्तर प्रदेश की सीमा से बाहर निकल कर वाह-वाही बटोर रहे हैं। महापुरूषों के नाम पर छुट्टियां बंद करने का उनका फैसला देशभर में सराहा जा रहा है। वहां लग रहा है कि वास्तव में सत्ता बदली है। दूसरी ओर उत्तराखंड में सरकार का एक महीना निराशा का भाव भाव दे रहा है।

धमाकेदार जीत के बाद जो उम्मीद का माहौल बना था, वह अब मंद पड़ने लगा है। यह कहा जाने लगा है कि, व्यवस्था वही है, सिर्फ चेहरे बदले हैं। एक महीने का वक्त इतना कम भी नहीं होता है कि सरकार अपनी दिशा न तय कर पाए। लेकिन यहां तो सरकार अभी मानो ‘हनीमून’ से ही बाहर नहीं आ पा रही है। मुख्यमंत्री से लेकर पूरी सरकार अभी तक जश्न और अभिनंदन समारोहों में ही व्यस्त हैं। बड़े निर्णय तो छोड़िए, जिन मुद्दों पर त्वरित एक्शन की दरकार है, सरकार अभी उनकी पहचान तक नहीं कर पाई है। जो निर्णय हुए भी हैं उन पर तमाम सवाल उठ रहे हैं। जिन मुद्दों, खनन और शराब पर पिछली सरकार की किरकिरी होती रही, नई सरकार भी महीने भर उन्हीं मुद्दों में उलझी रही।

प्रदेश भर में शराब के विरोध में आंदोलन चल रहा है और दूसरी ओर सरकार ने शराब के व्यापार को बचाने के लिए सड़कों का ही ‘डिमोशन’ कर दिया। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी सरकार की उस वक्त किरकिरी हो गई जब लोकायुक्त और तबादला एक्ट विधान सभा में पेश होने के बावजूद पास नहीं हुए। लोकायुक्त के मसले पर विपक्ष के साथ होने के बावजूद सरकार ने उसे प्रवर समिति को भेज दिया। सरकार खासकर मुख्यमंत्री की प्रमुख तौर पर उपलब्धि ओम प्रकाश को पावर सेंटर बनाना रही है, जिसका पहले दिन से सरकार के भीतर और बाहर दबी जुबान में विरोध हो रहा है।

सुशासन के नाम पर सरकार के खाते में एक महीने में बड़ी उपलब्धि एनएच घोटाले में सीबीआई जांच की संस्तुति करने के साथ ही 6 पीसीएस अफसरों को सस्पेंड करना रही। सरका इसको लेकर अपनी पीठ भी थपथपा रही है, लेकिन हकीकत यह है कि इस घोटाले के मास्टरमाइंड आला अधिकारी और सफेदपोश अभी तक पकड़ में नहीं आ सके हैं। सीबीआई जांच की सिफारिश कर सरकार ने एक तरह से अपने सिर से बला टाली है। भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस के नाम पर जो छिटपुट कार्रवाईयां हुई हैं उन्हें भी राजनीति से प्रेरित माना जा रहा है।

बहरहाल मुख्यमंत्री के नाम महीने भर में इसके अलावा कोई खास उपलब्धि नहीं रही कि, अपने एक महीने के कार्यकाल की पूर्व संध्या पर उन्होंने आश्रम-अखाड़ों का टैक्स माफ कर दिया। कमोबेश यही स्थिति पूरी सरकार की रही है। मंत्रियों की बात करें, तो सतपाल महाराज अभी तक नए-नए आईडियों में ही उलझे हैं। न्यू आइडिया के बहाने वे खुद को अलग दिखाने की कोशिश में हैं, तो वहीं दूसरे प्रभावशाली मंत्री प्रकाश पंत सरकार की आमदनी बढ़ाने के फेर में खनन और शराब के जंजाल से बाहर नहीं निकल पाए।

कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए मंत्रियों हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य और सुबोध उनियाल की महीने भर की परफारमेंस भी कुछ खास नहीं रही। एक अन्य मंत्री धन सिंह रावत अपने बयानों के चलते खुद को ‘करंट’ वाला नेता दिखाने में जुटे हुए हैं। हालांकि अरविंद पांडे, मदन कौशिक और रेखा आर्य ने जरूर कुछ असर दिखाने की कोशिश की है, लेकिन अभी बदलाव के संकेत दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहे हैं।

कुल मिलाकर प्रदेश की नई सरकार एक महीना बीतने के बाद भी प्रदेश की नब्ज नहीं टटोल पाई है। यह हाल तब है जब न केवल सरकार में, बल्कि समूची भाजपा में एक से एक दिग्गज मौजूद हैं। ऐसे में इसे सरकार की नाकामी ही कहेंगे कि वह प्रचंड जनादेश का अहसास ही नहीं करा पाई है। अभी तक सरकार सिर्फ नब्ज ही टटोल रही है।

devbhoomimedia

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