बार-बार जन्म नहीं लेते डॉ. रघुनन्दन सिंह टोलिया जैसे व्यक्तित्व
अब नौकरशाहों में वो बात नहीं
योगेश भट्ट
डाक्टर आरएस टोलिया अक्सर कहा करते थे, ‘हम छोटे राज्य जरूर हैं, लोकिन हमारी मानसिकता बौनी नहीं होनी चाहिए।’ प्रदेश को लेकर चिंता उनकी कार्यशैली में हमेशा झलकती थी। मूल रूप से टोलिया प्रदेश की भोटिया जनजाति से ताल्लुख रखते थे। ऐसे में बहुत से लोग यह भी मान सकते हैं कि कि इसी लिए उनका प्रदेश से लगाव रहा होगा, लेकिन और भी बहुत से अफसर हैं जो उत्तराखंड मूल के हैं, मगर उनमें टोलिया जैसी बात नहीं दिखती। टोलिया हर वक्त प्रदेश के लिए समर्पित रहते थे। ऊर्जा से इतना लबरेज कि किसी ने भी उन्हें कभी थकते नहीं देखा। विषयों को गहराई में जाकर समझना और सकारात्मक सोच के साथ हल ढूंढना टोलिया की कार्यशैली का अनिवार्य हिस्सा था। एक नौकरशाह के तौर पर आम जनता के लिए वे राजनेताओं से भी ज्यादा आसानी से सुलभ थे।
जनता के साथ संवाद बनाने की कला उनमें कूट-कूट कर भरी थी। कुछ अलग हटकर काम करने वाले लोगों को प्रोत्साहित करने में वे हमेशा आगे रहते थे। प्रदेश में जैविक खेती, चाय बागान, मशरूम उत्पादन, पुष्प उत्पादन, जड़ू-बूटी उत्पादन और पशुपालन समेत तमाम कुटीर उद्योग उनकी प्लानिंग का हिस्सा थे। उनकी हर प्लानिंग में प्रदेश के भविष्य की चिंता झलकती थी। रिटायरमेंट के बाद जब वे प्रदेश के पहले मुख्य सूचना आयुक्त बने तब भी वे पूरी शिद्दत के साथ राज्य की सेवा में लगे रहे। सबसे अहम बात यह कि पूरे सेवाकाल में उन पर बेईमानी का एक भी दाग नहीं लगा। उनके आलोचकों के पास भी उनके खिलाफ कहने को इससे ज्यादा कुछ नहीं था कि वे ‘एनजीओ मास्टर’ हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो टोलिया वाकई में अद्भुत अफसर थे।
आज के अफसरों में वो बात नहीं है जो टोलिया में थी। आज के नौकरशाह इस कदर मनीमाइंडेड हो चुके हैं कि उन्हें राज्य तथा जनता के हित से कोई सरोकार नहीं है। उनके लिए पद और कुर्सी सिर्फ और सिर्फ पैसा बनाने का जरिया है। उनके अंदर टोलिया जैसी ‘स्पिरिट’ नहीं कि, हर पल प्रदेश के भविष्य के लिए प्लानिंग करें। आज के नौकरशाहों में से ज्यादातर ऐसे हैं, जो फील्ड विजिट पर जाना ही नहीं चाहते। किसी घटना के चलते यदि प्रदेश के किसी इलाके का दौरा करना पड़े तो इन्हें हैलीकाप्टर की दरकार होती है। आज के नौकरशाहों से उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे सड़क मार्ग से प्रदेश के दूरस्थ इलाकों का दौरा करें। आज के अफसरों से यह उम्मीद भी नहीं की जा सकती कि रिटायरमेंट के बाद टोलिया की तरह वे भी अपने पैत्रिक गांव में रहेंगे। आज के नौकरशाहों से यह उम्मीद भी नहीं की जा सकती कि देर रात एक बजे तक काम करने के बाद अगली सुबह वे दस बजे दफ्तर में दिखें। आज के नौकरशाहों से तो यह उम्मीद करना भी बेमानी है कि वि जिस पद पर बैठे हैं उसकी जिम्मेदारी को महसूस करें। एक सत्य यह भी है कि प्रदेश के विकास में डाक्टर टोलिया का जितना योगदान रहा, उस लिहाज से उन्हें मान्यता नहीं मिल सकी। नौकरशाही के लिए वे प्रेरक हो सकते थे। लेकिन सवाल यह है कि क्या आज के नौकरशाह उनसे प्रेरणा ले पाएंगे?
एक अदभुद इंसान थे डॉक्टर आर एस टोलिया
डॉ. राजेन्द्र डोभाल
कुछ वर्ष पूर्व रात १.३० बजे मैं घोर नीन्द में, SMS आया , लगा किसका दिमाग़ ख़राब है आधी रात में! देखा टोलिया जी का मैंसेज है- are you alive? मैंने तुरंत फ़ोन किया good morning sir, yes alive! Ha ha क्या कर रहे हो? मैंने सोचा इम्प्रेशन जमा दूँ। कहा कुछ लिख रहा हूँ। कहने लगे यार आवाज़ में तो दम नहीं लग रहा फिर हाहा!! मैं मुंश्यारी मैं हूँ इंटर्नैशनल माउंटेन इनिशटिव के पहले कार्यशाला हेतु तुम्हारी मदत चाहिए। नैनीताल में करना है आयोजन । मैंने कहा बिलकुल ठीक sir।
बाद में सोचने लगा कितनी चिंता है इन्हें पहाड़ों की । कितने लोग ऐसा सोचते हैं? मैं पिछले १६ सालों से उनसे जुड़ा रहा। कभी भी थकते नहीं थे। कुछ समय पहले ही तो घई साहब की सुपुत्री के विवाह में रामनगर में रात्रि हम दोनो को अचानक बहुत लोगों ने घेर दिया और टोलिया साहब को पूछने लगे आप बूढ़े कब होएँगे? उन्होंने कहा डोभाल बताओ भाई इनको। मैंने कहा बूढ़ा कोई नहीं होता बस शरीर साथ छोड़ता है , आज वही हो गया ।
उनकी बीमारी की ख़बर सुन मैं तुरंत AIIMS गया वहाँ डॉक्टर राकेश कुमार जो उत्तराखंड cadre के अधिकारी दिल्ली में पदस्थ हैं, उनकी सारी व्यवस्थाएँ की हुई थी । टोलियाजी प्रसन्न थे। लेकिन उनकी हालत बहुत जल्दी ख़राब हुई। ये चित्र २१ नवम्बर का है । बहुत ज़ोर देकर बात कर रहे थे मुझसे । मैंने उनको कहा था कि नपलच्याल साहब ( पूर्व मुख्य सचिव? उन्होंने पूछा , जी मैंने कहा। how is शत्रुघन? ठीक सर। नया सी॰एस॰ कौन? मैंने कहा रामास्वामीजी। बहुत अच्छा हो गया।) का आज आपके बारे में एक बेहतरीन लेख आया है। वे जैसे ठीक हो गए। आज हरिद्वार घाट पर नपलच्याल साहब ने मुझे बताया कि इस लेख को बाद में उनकी सुपुत्री प्रीति ने उन्हे पड़ कर सुनाया।
आज सुबह डॉक्टर ए एन पुरोहित का मिस्ड कॉल देखा, फ़ोन किया तो बहुत बुरा लगा, मानसिक रूप से मैं तैयार था । दोनो ने साथ हरिद्वार जाने का इरादा किया लेकिन थोड़ी देर बाद prof पुरोहित का sms पड़ा कि इस आदमी को मैं मरा हुआ नहीं देख सकता। मैं अपनी भावनाओं पर क़ाबू नहीं रख पाउँगा मैं नहीं आऊँगा हरिद्वार !! कमाल की श्रदंजलि दी उन्होंने। घाट पर सब स्तब्ध थे। श्री इन्दु पांडेय बहुत दुखी लग रहे थे मुझे ।
श्रधांजलि ही लिख सकते हैं लेकिन उनकी सोच को आगे लेकर जाना ही सच की श्रदंजलि होगी। ईश्वर उनके परिवार को इस दुःख के समय धैर्य प्रदान करे। ये पोस्ट मैं बड़े दुःख के साथ लिख रहा हूँ। क्योंकि जब मैं परेशान होता था तो उनके पास जाता था या फ़ोन करता था।
निश्छल पहाड़ी अफसर टोलिया जी.
राजेश भारती
साल 2004 की बात है. टोलिया जी चीफ सेक्रेटरी थे. सहारा समय अखबार के लिए बतौर ब्यूरो प्रभारी एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट पर उनका वर्जन लेने विधानसभा गया.उन दिनो सत्र चल रहा था, टोलिया जी नीचे ही मिल गए…उनसे धीरे से मैंने कहा-यूपी में सचिव रहते आप कैलाश मानसरोवर रूट पर एक हेलीकाप्टर गिरा आये थे, उस बारे में बात करनी है. उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और टहलते हुए पार्किंग तक ले गए…चोपर गिरने की पूरी कहानीसुनाई…फिर कहा छापना मत. अगले हफ्ते के अंक में पहले पेज पर हेलीकाप्टर के मलबे के साथ स्टोरी लगी…जाहिर है उन्होंने जरुर पढ़ी होगी.कुछ दिन बाद साथी पत्रकार अर्जुन बिष्ट के साथ उनसे मिलने सचिवालय गए तो उन्होंने उतने ही स्नेह से बिठाया-चाय पिलाई…करीब आधा घंटा उनसे खूब बातें हुई जिनमे पहाड़ की दुर्दशा, अफसरों की काहिली, ठेकेदारों-नेताओं के पापों और मास्टरों के निक्कमेपन पर उनकी चिंता-गुस्सा देखा…वास्तव में वो पहाड़ी अफसर थे जो पहाड़ के दर्द को समझते थे…जितना हो सका उन्होंने पहाड़ के लिये किया भी….अंत में चलते वक्त हंसकर बोले-तुम माने नहीं छाप ही दिया..जबकि वो आधा सच था…कभी फुर्सत से पूरी कहानी बताऊंगा….उनके निश्छल स्वभाव ने मुझे बहुत प्रभावित किया था…वरना अपने खिलाफ खबर छपने पर तमाम अफसर दुश्मनी ठान लेते हैं.
पत्रकारिता का असली सर्टिफिकेट टोलियाज़ी की वज़ह
अनुपम त्रिवेदी
मुझे पत्रकारिता का असली सर्टिफिकेट टोलियाज़ी की वज़ह से मिला. चीफ सेक्रेटरी रहते इनका एक लेटर आंध्रा प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी को गया. जिसमे लिखा था में बतौर ETV रिपोर्टर तब की सरकार के खिलाफ हूँ. मंशा ये थी की सरकारी मशीनरी के थ्रू मॅनेज्मेंट पर दवाब डाला जाए, रिपोर्टr को पैदल करने के लिए. पर तब के मॅनेज्मेंट ने मुझ पर विश्वास किया और वो सरकारी काग़ज़, रद्दी की टोकरी के हवाले हुआ.
इतिहास बन गया नींव का एक पत्थर
योगेश भट्ट
हर काल में कुछ ऐसी शख्सियतें जरूर होती हैं जो हर हाल में अपनी मौजूदगी का एहसास कराती हैं। डाक्टर आरएस टोलिया भी एक ऐसी ही शख्सियत थे। जो लोग उत्तराखण्ड को करीब से जानते हैं, जो उत्तराखण्ड के बनने बिगड़ने के गवाह हैं, वो जानते हैं कि मौजूदा उत्तराखण्ड की नींव के पत्थरों में से एक थे डाक्टर टोलिया। बहुमुखी प्रतिभा और असाधारण ऊर्जा के धनी टोलिया को उत्तराखण्ड की संपदा कहा जाए तो गलत नहीं होगा। उनकी पहचान सिर्फ एक नौकरशाह या प्रदेश के पूर्व मुख्यसचिव के तौर पर ही नहीं बल्कि इससे इतर उनकी एक पहचान उत्तराखण्ड के लिए रही है। सोलह साल के उत्तराखण्ड में आज जितना भी भला बुरा है उसमें टोलिया की अहम भूमिका रही है। इन सालों में प्रदेश में जहां-जहां भी जो कुछ अच्छा दिखता है, उसका बहुत श्रेय डाक्टर टोलिया को जाता है। उत्तराखण्ड की जितनी गहरी समझ उन्हें थी, आज के दौर में संभवत: उतनी किसी और नौकरशाह या राजनेता को नहीं होगी। पहाड़ तो मानो उनकी आत्मा में रचता बसता था।
डाक्टर टोलिया उन चंद अफसरों में थे जो राज्य बनने के वक्त से महत्वपूर्ण भूमिका में थे। राज्य की घोषणा के बाद जब उत्तराखण्ड वजूद में आना था, राजधानी बननी थी, सारी व्यवस्थाएं खड़ी की जानी थीं तब टोलिया ने अपनी असाधारण क्षमता का शानदार प्रदर्शन किया। राज्य बनने के बाद उत्तर प्रदेश से बंटवारे की प्रक्रिया गतिमान थी, अफसरों से लेकर जमीन तक का बंटवारा होना था। नए सिरे से एक पूरा राजतंत्र स्थापित होना था। चारों और अफरातफरी का माहौल और वक्त बहुत कम। हर दिन लगता था कि 9 नवंबर 2000 तक पूरी तैयारियां हो पाना असंभव है। लेकिन जब डाक्टर टोलिया को कमान सौंपते हुए संयोजक नियुक्त किया तो सब कुछ मानों चौगुनी गति से होने लगा। टोलिया उस वक्त कुंमाऊ के आयुक्त थे। जिस दिन उनके आदेश हुए उसी दिन वे नैनीताल से देर रात देहरादून पहुंचे और सीधे अस्थाई विधानसभा का मुआयना करने जा पहुंचे। रात-दिन खुद खड़े रहकर उन्होंने वो सब कर दिखाया जिसको लेकर संशय था। विधानसभा, सचिवालय, मुख्यमंत्री आवास, राजभवन, आदि तमाम इंतजाम जैसे-तैसे पूरे कराए गये।
आज सोलह साल बाद इसे संयोग ही कहा जाए कि उस वक्त जहां जो व्यवस्था निर्धारित हुई, वह आज भी वहीं पर है। मसलन विधानसभा, सचिवालय, राजभवन और मुख्यमंत्री आवास, इन सबकी बनावट व आकार भले ही बदले हों लेकिन स्थल वही हैं। डाक्टर टोलिया नए राज्य के पहले एफआरडीसी (वन एवं ग्राम्य विकास आयुक्त) रहे। उसी वक्त लोगों ने जाना कि एफआरडीसी भी कुछ होता है। उनकी एक खासियत रही, जहां रहे जिस पद पर रहे उसे जीवंत कर दिया। उनकी ऊर्जा का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि रात के 1 बजे तक दफ्तर में काम निपटाने के बाद अगले दिन सुबह दस बजे वे कुर्सी पर होते थे। काम करने का उनका अपना अलग अंदाज रहा, यही कारण भी रहा कि उनकी अच्छी खासी फालोइंग रही। उनके बारे में कहा भी जाता था कि टोलिया आधे अफसर हैं और आधे नेता। बतौर नौकरशाह उनकी छवि एक अच्छे रणनीतिकार ‘प्लानर’ की तो रही, लेकिन प्लानिंग को अमल में लाने वाली ‘टीम’ की कमी उन्हें भी खलती रही। बेहद सादगी पसंद इस नौकरशाह के साथ सिस्टम कदमताल ही नहीं कर पाया। इसके बावजूद प्रदेश में राजस्व, वन, कृषि, उद्यान, पशुपालन जैविक खेती से जुड़ी तमाम संस्थाएं जो आज वजूद में हैं, डाक्टर टोलिया की देन हैं।
उस दौर में यह भी कहा जाता रहा कि अगर अच्छा राजनैतिक नेतृत्व मिल जाए तो डाक्टर टोलिया का बतौर मुख्यसचिव बेहतर उपयोग हो सकता है। लेकिन हुआ उल्टा। बतौर मुख्यसचिव तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी को टोलिया नहीं भाए। उनकी गुडबुक के अधिकारी एम रामचंद्रन, एनएन प्रसाद, अमेरंद्र सिन्हा, संजीव चोपड़ा, आदि थे। नौकरशाही में अघोषित विभाजन कर मुख्यसचिव के समांतर एक अपर मुख्य सचिव नियुक्त कर एनडी तिवारी साफ संदेश भी दे चुके थे। बतौर नौकरशाह डा टोलिया की पारी वहां लगभग खत्म हो चुकी थी। भारत सरकार में उन्हें अनुसूचित जनजाति मामलों का सचिव नियुक्त किया गया, लेकिन वे नहीं गए और बाद में वीआरएस लेकर प्रदेश के प्रथम मुख्य सूचना आयुक्त नियुक्त हुए। आज प्रदेश में सूचना आयोग जहां खड़ा है, वह उनका अकेले अपने दम पर शुरु किया प्रयास है। प्रदेश में आरटीआई का खौफ उनकी ही कोशिश का परिणाम है। उनकी नौकरशाही की पारी की खास विशेषता यह रही कि पूरे सेवाकाल के दौरान उन पर एक भी घपले घोटाले का आरोप नहीं लगा।
बतौर नौकरशाह उनकी छवि एक ईमानदार आईएएस की रही। इससे उनके धुर विरोधी भी इनकार नहीं करते। रिटायरमेंट के बाद अपनी दूसरी पारी में टोलिया पहले से अधिक व्यस्त और चर्चा में रहे। कभी इतिहासकार की भूमिका में रहे तो कभी शोघार्थी की तो कभी शिक्षक और यायावर की भूमिका में रहे। भूमि व राजस्व संबंधी कानूनों पर उनकी पुस्तक बेहद महत्वपूर्ण बताई जाती है। वहीं उनके द्वारा लिखी गई ब्रिटिश कुमांऊ गढ़वाल का इतिहास समेत कई और अहम पुस्तकें भी धरोहर के रूप में मौजूद हैं। उत्तराखण्ड से जुड़ा हर विषय, चाहे वो ब्रिटिश काल से चल रहे कायदे कानून व व्यवस्थाओं का विषय हो या फिर भोगोलिक परिस्थितियों का ज्ञान, टोलिया अपने आप में एक संग्राहलय थे। बहुत बड़ा व्यक्तित्व था डाक्टर टोलिया का जो अब हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो चुका है। ऐसा संभव ही नहीं जब-जब उत्तराखण्ड का इतिहास लिखा जाए तो डाक्टर रघुनंदन टोलिया का जिक्र न आए।