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क्रूर राजनीति को धर्म ही सही राह पर लाता है : सुरेंद्र जैन

जहां संविधान की सीमाएं समाप्त होती है, वहीं धर्म की शुरू होती है : सुरेन्द्र जैन 

‘क्रूकसेड’ और ‘जिहाद’ का इतिहास रक्तरंजित इतिहास

राजा धर्म को भूल जाये तो उसे स्मरण कराना धर्म का कर्तव्य है : गुरुदेव सिंह वारने

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

धर्म-राजनीति का भी अपना महत्व है जिसे समझना आवश्यक : विजय जी 

इस अवसर पर विश्व संवाद केन्द्र के निदेशक विजय कुमार ने कहा कि हिन्दू जीवन प़द्धति में धर्म का विशेष महत्व है जैसे पिता-पुत्र, पति-पत्नी, गुरु-शिष्य, राजा-प्रजा प्रत्येक को अपना-अपना धर्म निभाना होता है।

उसी प्रकार धर्म-राजनीति का भी अपना महत्व है जिसे समझना आवश्यक है जो इस विशेषांक में प्रस्तुत है।

देहरादून: विश्व हिन्दू परिषद के संयुक्त महामंत्री व पूर्व प्राचार्य हिन्दू महाविद्यालय रोहतक सुरेन्द्र जैन ने धर्म के महत्व के बताते हुए कहा कि क्रूर राजनीति को धर्म ही सही राह पर लाता है।  उन्होंने कहा कि अभी तक हम धर्म का सही अर्थ नहीं समझ पाये हैं, धर्म का सम्बन्ध किसी पंथ या पूजा पद्धति से नहीं है।

उन्होंने कहा धर्म का अर्थ व्यापक है और धर्म एक विशेष प्रकार का चिन्तन व आचरण है। उन्होंने धर्म के अर्थ को समझाते हुये कहा कि हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि जो लोक व परलोक का कल्याण करता है और सबको अपने जैसे समान रूप से देखे वही धर्म है।

सम्बोधन से पूर्व  हिमालय हुंकार पाक्षिक पत्रिका का ‘धर्म और राजनीति’ विशेषांक का विमोचन महादेवी कन्य पाठशाला के सभागार में सम्पन्न हुआ।

कार्यक्रम के बतौर मुख्य वक्ता श्री जैन ने कहा कि देश में यह बात फैलाई जा रही है कि राम मन्दिर के बाद देश को हिन्दू राष्ट्र बनाया जा रहा है। परन्तु हिन्दू धर्म क्या है इसको समझना चाहिए।

 पाश्चात्य भाषा ‘सेक्युलर’ में धर्म को नहीं समझा जा सकता उसके लिए सही धारणा का होना जरूरी है। क्योंकि सही अर्थों में मनुष्य की पावन व कल्याणकारी धारणा का नाम ही धर्म है और जहां संविधान की सीमाएं समाप्त होती है, वहीं धर्म की शुरू होती है। इसी लिए हम कहते हैं कि ‘‘गर्व से कहो हम हिन्दू हैं।’

उन्होंने बताया कि ‘क्रूकसेड’ और ‘जिहाद’ का इतिहास रक्तरंजित इतिहास है, जबकि हमारा हिन्दू धर्म दर्शन की गौरवशाली परम्परा रही है क्योंकि ऋषि कणाद ने व मनुस्मृति, भगवत गीता आदि में मावन जीवन के मूल्यों का व्याख्यान किया है और यही नहीं देश के सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू धर्म को परिभाषित करते हुए कहा कि ‘‘हिन्दू धर्म पूजा पद्धति नहीं है, यह जीवन जीने की कला है।’’

उन्होंने बताया कि धर्म, दण्ड से भी ऊपर है, स्वराज्य को महात्मा गांधी ने रामराज्य माना था। गांधी का हिन्द स्वराज, एकात्म मानववाद इन दोंनों में बहुत ही समानता है क्योंकि राजनीति में धर्म की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। धर्म के बिना कल्याणकारी राजीनीति नहीं हो सकती।

उन्होंने विशेषांक के राजनीति शब्द की विवेचना करते हुए कहा कि प्रशासन उसके लिए नीति और नीति के लिए पद्धति यही राजनीति है। वर्तमान राजनीति में अधिकारों की सभी बात करतें हैं परन्तु अपने संवैधानिक कत्र्वयों की कोई भी चर्चा होनी चाहिए।

श्री जैन ने कहा कि राज किसी का भी हो परन्तु भारत हिन्दू राष्ट्र है और रहेगा, कोई इसे बदल नही सकता। राम-राज्य की कल्पना आज के समय में ‘जीवन मूल्य’ स्थापित करने का उद्देश्य है। धर्म का अनुसरण करने वाले ही कल्याणकारी योजनाएं चला सकते हैं। हिन्दू धर्म कभी भी ‘थियोक्रेटिक’ नहीं हो सकता। धर्म उदासीन और शून्य तो बिल्कुल भी नहीं हो सकता। देश का विकास केवल धर्म के मार्ग पर चल कर ही सम्भव है।

कार्यक्रम के अध्यक्ष गुरुदेव सिंह वारने अध्यक्ष गुरु नानक देव एजूकेशनल सोसायटी ने कहा कि राजा धर्म को भूल जाये तो उसे स्मरण कराना धर्म का कर्तव्य है। सिख धर्म में राम राज्य को महान व श्रेष्ठ माना गया है। धर्म राजनीति को नियंत्रित करता है, जहां राजनीति भटक जाये तो वहां धर्म उसे ठीक करेगा।

इस अवसर पर विश्व संवाद केन्द्र के सचिव राजकुमार टोंक ने विश्व संवाद केन्द्र की पृष्ठभूमि व कार्यो के बारे में बताया। हिमालय हुंकार के इस विशेषांक के सम्पादक राजेन्द्र पत में मंच संचालन किया और संवाद केन्द्र के अध्यक्ष सुरेन्द्र कुमार मित्तल ने सभी आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापित किया।

इस अवसर पर क्षेत्र कार्यवाह शशिकान्त दीक्षित, प्रान्त प्रचारक युद्धवीर, सह प्रान्त व्यवस्था प्रमुख अनिल मित्तल, सह प्रान्त प्रचार प्रमुख संजय, प्रज्ञा प्रवाह क्षेत्र संगठन मंत्री भगवती प्रसाद, हिमालय हुंकार सम्पादक रणजीत सिंह ज्याला सहित कई विद्वत जन उपस्थित थे।

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