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भारतीय टीवी इतिहास की सर्वाधिक कमाई करने वाले धारावाहिकों में से एक है ”रामायण”

अद्भूत जानकारी…

जितनी लोकप्रियता ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ ने अर्जित की, उसके शतांश तक भी आजतक कोई पहुँच नहीं पाया

हर सप्ताह इस धारावाहिक को लगभग 10 करोड़ लोग देखते थे

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

श्री रामानन्द सागर (1917-2005) द्वारा निर्मित-निर्देशित ‘रामायण’ टीवी सीरियल के बारे में कुछ । 78 कड़ियों के इस धारावाहिक का मूल प्रसारण 25 जनवरी, 1987 से 31 जुलाई, 1988 तक रविवार के दिन दूरदर्शन पर किया जाता था। श्री रामानन्द सागर ने अपने ही प्रोडक्शन हाउस ‘सागर आर्ट्स’ के बैनर तले इसका निर्माण किया। हर सप्ताह ‘रामायण’ के ताजा एपिसोड के कैसेट दूरदर्शन-कार्यालय भेजे जाते थे। कई बार तो ये कैसेट, प्रसारण के आधे घंटे पहले भी पहुंचे। रामायण की शूटिंग लगातार 550 से ज्यादा दिनों तक चली। इसकी अधिकांश शूटिंग मुंबई से चार घंटे की दूरी पर स्थित उमरगाँव में हुई थी। एक बहुत छोटा-सा गाँव, जहाँ ब्रेड जैसी आम चीज भी नहीं मिलती थी। रामानन्द सागर हर एपिसोड को सोमवार से गुरुवार तक शूट करते। शुक्रवार को एडिट करते और रविवार सुबह प्रसारण के लिए मुंबई भेजते। शूटिंग ज्यादातर रात को होती थी और तड़के सुबह ही पैकअप होता था। एक अनुमान के मुताबिक ‘रामायण’ के एक एपिसोड को बनाने का खर्च लगभग 1 लाख रुपये के आसपास था जो उस समय बहुत ज्यादा था। यह भारतीय टीवी इतिहास की सर्वाधिक कमाई करनेवाले धारावाहिकों में से एक है।

श्री रामानन्द सागर ने सीरियल शुरू करने से पहले ही सभी कलाकारों से सात्विक खान-पान, रहन-सहन का अनुबन्ध किया था। जब तक सीरियल बना, तब तक कलाकारों को मांसाहार, धूम्रपान, मद्यपान और अन्य दुर्व्यसनों से दूर रहना पड़ा। जो कलाकार इनके आदी थे, उन्हें रामानन्द सागर के इस नियम से खीज होती थी। चार साल बाद वही कलाकार पूरी तरह सात्विक बनकर निकले और आज भी उन्हीं नियमों पर चल रहे हैं। रामानन्द सागर ने धारावाहिक को जीवंत बनाने के लिए मुख्य पात्रों के लिए जाति के अनुरूप किरदार तय किए थे। अरुण गोविल क्षत्रिय थे तो उन्हें राम बनाया गया। रावण ब्राह्मण कुल से थे, इसलिए इसके लिए अरविन्द त्रिवेदी को चुना।

नब्बे के दशक में, जब भारत में टीवी का प्रसार बहुत नहीं हुआ था, उस समय हर सप्ताह इस धारावाहिक को लगभग 10 करोड़ लोग देखते थे। इस धारावाहिक के प्रसारण के दौरान ऐसा लगता था मानो पूरा भारत ठहर गया हो। लोग अपना काम-धन्धा छोड़कर टीवी से चिपक जाते थे। उस समय गाँवों में किसी-किसी के पास ही टीवी होता था। जिसके पास टीवी होता था, उसके यहाँ रामायण देखने के लिए पूरा गाँव उमड़ पड़ता था। बाज़ार बन्द हो जाते थे, बसें रुक जाती थीं, कई बार तो ट्रेन भी रुक जाती थी। यहाँ तक कि लोग उन दिनों अपने जीवन में घटी महत्त्वपूर्ण घटनाओं को रामायण में दिखाई जा रही कथाओं के प्रसारण की तिथि से याद रखने लगे थे। रामायण का कोई एपीसोड छूट न जाए, इसके लिए एक दिन पूर्व ही योजना बना ली जाती थी। कई लोगों ने अपनी शादी की तारीख और समय तक बदल दिए ताकि रामायण का एक भी एपिसोड उनसे न छूटे। लखनऊ के एक अस्पताल में मरीजों ने इस बात की शिकायत की थी कि डॉक्टर और नर्स ‘रामायण’ शुरू होते ही उन्हें छोड़कर सीरियल देखने चले जाते थे। राजनीतिक दलों ने भी उस वक्त रैली निकालना बंद कर दिया था। उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री वीरबहादुर सिंह इस धारावाहिक को देखने के दौरान न तो किसी से मिलते थे, न फोन ही उठाते थे। इससे रामायण की लोकप्रियता का अनुमान लगाया जा सकता है। इण्डिया टुडे ने दर्शकों के इस उत्साह को ‘रामायण फीवर’ का नाम दिया।

इस धारावाहिक के कलाकार जीते-जी किंवदन्ति बन गए और ईश्वर के समान पूजे जाने लगे। प्रसारण शुरू होते ही लोग अपने टीवी पर माला डाल देते थे। लोगों का विश्वास था कि ईश्वर साक्षात उनके घर आ गए हैं। विशेषकर राम, सीता और हनुमान की भूमिका निभानेवाले क्रमशः श्री अरुण गोविल, सुश्री दीपिका चिखलिया और श्री दारा सिंह ईश्वर के समान पूजे जाने लगे। वस्तुतः श्री रामानन्द सागर को बड़े और मशहूर कलाकार नहीं चाहिए थे, बल्कि वे चाहते थे कि उनके सीरियल में ऐसे कलाकार काम करें, जो बहुत व्यस्त न हों और एपिसोड के पूरे होने तक आसानी से उपलब्ध भी रहें। इसलिए रामायण में एकाध कलाकारों को छोड़कर लगभग सभी कलाकार बिलकुल नये थे। इसके बाद भी उन्होंने धारावाहिक में प्राण फूँक दिया।

इसके प्रसारण के दौरान ‘रामायण’, भारत और विश्व टेलिविजन-इतिहास में सबसे अधिक देखा जानेवाला कार्यक्रम बन गया और श्री बी आर चोपड़ा के #महाभारत का प्रसारण होने तक यह खिताब इसके पास ही रहा। बाद में रामायण के पुनः प्रसारण और वीडियो प्रोडक्शन के कारण इसने फिर लोकप्रियता प्राप्त की। लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में जून, 2003 तक यह ‘विश्व के सर्वाधिक देखे जानेवाले धार्मिक धारावाहिक’ के रूप में सूचीबद्ध था। पौराणिक कथाओं पर आधारित अब भी कई सीरियल टीवी पर आते हैं, लेकिन जितनी लोकप्रियता ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ ने अर्जित की, उसके शतांश तक भी कोई नहीं पहुँच पाया।

‘रामायण’ में दिखाए जाने वाले गीत “पापियों के नाश को” एक प्रेरक गीत बन गया।

https://youtu.be/R9g7kiK_cCg

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