रक्षासूत्र के बहाने अपने देश व समाज को एकसूत्र में पिरेाकर रखने का भी संकल्प
कमल किशोर डुकलान
विविध संस्कृतियों के देश भारत में उत्सव,पर्वों की एक महान श्रृंखला चली आ रही है। उसी कड़ी में श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन प्रतिवर्ष रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व का भारतीय समाज व संस्कृति में अत्यंत महत्व है। रक्षाबंधन का उद्देश्य बहिन द्वारा भाई के हाथों में रक्षासूत्र बंधवाना ही मात्र उददेश्य नहीं है अपितु रक्षाबंधन का महत्व वर्तमान राजनैतिक, सामाजिक परिस्थितियों में और भी अधिक बढ़ जाता है।
वर्तमान कोरोना संक्रमणकाल में देश चीन द्वारा फैली जैविक हथियार के रूप में फैली महामारी एवं चीन द्वारा सीमा विवाद पर अतिक्रमणकारी शक्तियों के कारण चारों ओर से चुनौतियों से घिरा है। हम इस रक्षासूत्र के बहाने अपने देश व समाज को एकसूत्र में पिरेाकर रखने का भी संकल्प लेते हैं। रक्षाबंधन मेें राखी या रक्षासूत्र का विशेष महत्व है। यह राखी कच्चे सूत जैसी वस्तु से लेकर रंगीन कलाव, रेशमी धाग, सोने या चांदी जैसी महंगी वस्तु की भी हो सकती है। राखी बांधने का प्रचलन समाज में व्यापक है। लगभग पूरे भारत में यह पर्व मनाया जाता है।
भारत में तो आधुनिक युग में जहां इस पर्व का भी डिजिटलाइजेशन व सोशल मीडियाकरण हो गया हैं वहीं दूसरी ओर भारतीय राजनीति में भी इस पर्व को बड़े ही उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। सभी राजनेतिक दलों के नेतागण एक दूसरे को राखी बांधते हैं व आपसी राजनैतिक वैमनस्य को भुलवाकर एक दूसरे को रक्षाबंधन पर्व की बधाई देते हैं। नेताओं के राखी बंधवाने से समाज मे राष्ट्रीय एकता व समाजिक समरसता की भावना जागृत होती है। भारत के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति सहित सभी उच्चपदों पर विराजमान लोग रक्षासूत्र बांधकर देश की व समाज की सुरक्षा करने का वचन लेते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अपने छ: प्रमुख उत्सवों में से एक रक्षाबंधन का पर्व है। जिसे संघ के स्वयंसेवक उमंग व उत्साह के साथ मनाते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रक्षाबंधन उत्सव को सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए मनाता है और समाज की रक्षा का संकल्प लेता है।
प्राचीनकाल से ही अपने देश के उत्सव सामाजिक समरसता एवं सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ाने वाले हैं ।रक्षाबंधन उत्सव इसी परम्परा की एक कड़ी है। रक्षासूत्र में भाई बहन का अटूट स्नेह बंधन गुंथा हुआ है। इनमें छिपा है नारी के सम्मान की रक्षा के लिए सर्वस्व समर्पण करने वाले वीर पुरूषों का इतिहास। राजा बलि के साम्राज्यवाद से पृथ्वी को मुक्त कराने की वामनावतार की अदभुत गाथा को आजकल हम सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रसार भारती द्वारा दूरदर्शन पर दिखाये जा रहे बिष्णु पुराण धारावाहिक में देख ही रहे हैं। रक्षासूत्र से जन -जन के हृदय को जोड़ने का नाम ही रक्षाबंधन है। समाज में अभी भी ऊंच-नीच,छूत-अछूत, जातिवाद,क्षेत्रवाद का भाव विद्यमान हैं। हमें अपने सामने भगवान श्रीराम के आदर्श चरित्र को सामने रखना चाहिए । जिसमें भगवान श्री राम ने निषादराज का आतिथ्य,भीलनी शबरी के बेर आदर और स्नेह के साथ ग्रहण किये। रक्षाबंधन के पर्व पर हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम भेदभाव, छूआछूत की दीवारें ढहा देंऔर संकल्प लें कि हम सब भारतमाता की संताने हैं। हम सब इस विशाल हिंदू समाज के अंग हैं।
रक्षाबंधन पर्व का भारतीय पुराणों व साहित्य में वर्णन मिलता है। मुगलकालीन व स्वाधीनता संग्राम में भी रक्षाबंधन पर्व के महत्व व अनेक प्रसंगों का उल्लेख मिलता है। अब फिल्मी दुनिया व टी वी के क्षेत्र में भी रक्षबंधन पर्व को दिखाया जाता है। जिसके चलते इस पर्व का खूब प्रचार- प्रसार भी हो रहा है तथा इस पर्व का उपयोग राजनैतिक दल व सामाजिक संगठन अपने हित साधन मे भी करने लग गये है। देश की लगभग सभी सरकारें इस पर्व का उपयोग नारी शक्ति को अपने पक्ष में करने के लिए तमाम तरह की घोषणाएं भी करती हैं। रक्षाबंधन पर्व का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जनजागरण के लिए भी सहारा लिया गया।
बंगाल में रवींद्र नाथ ठाकुर ने बंगभंग का विरोध करते समय रक्षाबंधन पर्व को बंगाल निवासियों के लिये पारस्परिक एकता का प्रतीक बनाकर इस पर्व का राजनैतिक उपयोग प्रारम्भ किया। 1905 में उनकी प्रसिद्ध कविता मातृभूमि वंदना का प्रकाशन हुआ। लार्ड कर्जन ने बंगभंग करके वंदेमातरम के आंदोलन से भड़की एक छोटी- सी चिंगारी को शोले में बदल दिया। 16 अक्टूबर 1905 के दिन बंगभंग की नियत घोषणा के दिन रक्षाबंधन की योजना साकार हुई और लोग गंगा-स्नान करके सड़कों पर उतर आये। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित तमाम हिंदू संगठनों की ओर से समाािजक समरसता ओर विश्व बंधुत्व की भावना को प्रबल बनाने के लिए रक्षासूत्र बांधने का आयोजन किया जाता है।
भारत के प्रत्येक प्रांत में यह पर्व किसी न किसी नाम से जाना जाता है। उत्तरांचल में इस पर्व को श्रावणी के नाम से जानते हैं। अमरनाथ यात्रा का समापन भी रक्षाबंधन के दिन होता है। महाराष्ट्र में इस दिन लोग नदी या समुद्र के किनारे एकत्र होते हैं और पवित्र होकर नया जनेऊ धारण करते हैं। यही कारण है कि इस दिन मुंबई के समुद्र तट नारियल के फलों से भर जाते हैं।राजस्थान में यह पर्व रामराखी और चूड़ाराखी के नाम से जाना जाता है। तमिलनाडु ,केरल ,महाराष्ट्र और ओडिशा के दक्षिण में इस पर्व को अवनिअवित्तम कहते हैं। यज्ञोपवीत धारी ब्राहमणों के लिए यह दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन पवित्र होने के बाद ऋ़षियों का तर्पण करके नया जनेऊ धारण किया जाता है। स्वच्छ जीवन प्रारम्भ करने की प्रतिज्ञा की जाती है। व्रज में हरियाली तीज से लेकर श्रावणी पूर्णिमा तक समस्त मंदिरों में श्री कृष्ण जी झूलें विराजमान रहते हैं। रक्षाबंधन के दिन झूलन दर्शन समाप्त होता है।
अनेक साहित्यिक ग्रंथोें में रक्षाबंधन का उल्लेख मिलता है। एक प्रकार से देखा जाये तो रक्षाबंधन नारी अस्मिता व उसकी रक्षा का पर्व तो है ही साथ ही सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने का भी पर्व है। लेकिन दुर्भाग्य से आज भी देश में नारी उत्पीड़न तेजी से बढ़ रहा है। रक्षासूत्र बंधवाने का काम समाज में तभी सफल होग जब देश का युवा नारी को सम्मान दें तथा वर्तमान समय में बढ़ रही अपराधिक वृत्तियों के रोकथाम में युवा सहायक बनें। आज बहनें अपने घर परिवार में ही सुरक्षित नहीं हैं। अतः रक्षाबंधन का पर्व समाज में तभी सार्थक माना जायेगा जब हमारी बहनें व नारी शक्ति हर जगह अपने आपको पूर्ण रूप से सुरक्षित महसूस कर सकें। यह पर्व पूरी तरह से सामाजिक समरसता लाने व देश को एकता के सूत्र में पिरोकर रखने का पर्व है।