योगेश भट्ट की फेस बुक वाल से
यकीन नहीं होता कि राकेश शर्मा उत्तराखण्ड की सियासत में पैर जमाने का ख्वाब देख रहे हैं। इससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक ये है कि भाजपा जैसी पार्टी से उन्हें टिकट मिलने की चर्चा है। वो भाजपा जो प्रदेश में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर चुनाव मैदान में उतर रही है। राकेश शर्मा इस प्रदेश से जुड़े तमाम घपले-घोटालों से जुड़ा नाम है, और इस बात को प्रदेश का बच्चा–बच्चा जानता है। अलग राज्य बनने के पहले से लेकर पिछले साल तक तकरीबन 16 सालों तक उत्तराखंड में लाट साहब रहे राकेश शर्मा ने क्या-क्या नहीं किया। ये कहना कि, उन्होंने प्रदेश की नस्ल ही बिगाड़ दी, गलत नहीं होगा। अपने सेवा काल में उन्होंने न जाने कितने नेताओं,अफसरों पत्रकारों, ठेकेदारों को भ्रष्टाचार का चस्का लगाया होगा। सरकारी सिस्टम में ‘कमीशन की मीट भात’ का स्वाद इन सबके मुंह शर्मा ने ही लगाया है। प्रदेश में जमीन की लूट का खेल सबसे ज्यादा किसने खेला, इसे सत्ताधारी और विपक्षी दल अच्छे से जानते हैं। राकेश शर्मा संभवत: प्रदेश के एकमात्र नौकरशाह होंगे जो एक दशक से ज्यादा वक्त तक पावर सेंटर बने रहे। चाहे सत्ता में कोई भी दल रहा हो।
अब सवाल उनके नए अवतार का है। क्या उत्तराखण्ड राकेश शर्मा को और बर्दाश्त करने की स्थिति में है? आज वे भले ही नेता बनने के लिए तड़प रहे हैं, पर पहले वे यह तो बताएं कि प्रदेश के लिए उनका क्या योगदान है? उत्तराखंड को भ्रष्टाचार के गर्त में धकेलने के सिवा उन्होंने और किया ही क्या है? वे कोई ऐसा प्रेरक व्यक्तित्व तो नहीं हैं, जिसे जनता सर आंखों पर बैठाए। हर कोई जानता है कि वे धन बल के दम पर जनबल हासिल करना चाहते हैं। प्रदेश में उनकी कोई फालोइंग भी नहीं है। यदि होती तो वे टिकट के लिए भाजपा ,कांग्रेस के चक्कर न लगाते फिरते। इसके बावजूद उनकी हिम्मत की दाद देनी होगी। अच्छा काम करने वाले बड़े-बड़े नौकरशाह भी इतने सालों में उत्तराखंड की सियासत में हाथ आजमाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। लेकिन एक सवाल यह भी है कि यदि राकेश शर्मा को नेता बनना ही है तो वे अपने गृह प्रदेश हिमांचल क्यों नही जाते जहां के कि वे मूल निवासी हैं?
आज प्रदेश के तथाकथित बड़े नेता भले ही शर्मा की राजनीतिक सक्रियता को लेकर सवाल न उठा रहे हों लेकिन फिर भी यह किसी यक्ष प्रश्न से कम नहीं है कि आखिर उत्तराखंड की सियासत का हिस्सा बन कर शर्मा क्या हासिल करना चाहते हैं? ऐसा कौन सा मंसूबा है जिसे पूरा करने के लिए वे इतना बड़ा रिस्क लेने को आतुर हैं। बहरहाल यदि राजनीति में सफल होने के उनका मंसूबा कामयाब होता है तो, प्रदेश की सियासत के लिए यह बड़े खतरे के आगाज से कम नहीं होगा।