पार्टी अध्यक्षों को सरकारी बंगले आवंटित किये जाने पर मचा बबाल!
- क्या नैतिकता अब सिर्फ जनता को दिखाने के लिए रह गई!
- जनहित याचिका दायर करने वाले अवधेश कौशल फिर जायेंगे न्यायालय !
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : जहाँ एक तरफ देश भर में सरकारी आवास के मामले में सुप्रीम कोर्ट पूर्व नेताओं के सरकारी बंगलों को खाली करवाए जाने को लेकर गंभीर है और इसी आदेश के तहत उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमन्त्रियों को आवंटित किए गए सरकारी बंगले खाली कराए जा रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड में बिनी किसी नियम के और परम्पराओं का हवाला देकर राज्य संपत्ति विभाग कांग्रेस और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष को सरकारी बंगला आंवटित करता जा रहा है। पूर्व मुख्यमन्त्रियों के मामले में जनहित याचिका दायर करने वाले अवधेश कौशल सरकार के इस फैसले को जहाँ गलत बता रहे हैं वहीँ वे एक बार फिर इस मामले को लेकर न्यायालय जाने की बात कह रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने पूर्व मुख्यमन्त्रियों को सरकारी आवास खाली करने का फ़रमान सुनाया तो नेताओं को आवास आंवटित करने की नियमावली तलाशी जाने लगी। आदेश के बाद उत्तराखंड के सभी पूर्व मुख्यमंत्री सरकारी बंगलों को पहले ही खाली कर चुके हैं ,जबकि उत्तरप्रदेश में एनडी तिवारी को छोड़कर सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों तक ने सरकारी आवास खाली कर दिए हैं। इसके बावजूद उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रदेश अध्यक्षों से सरकारी आवास का मोह नहीं छूट पा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह को सरकारी बंगला आवंटित होने के बाद अब विवाद खड़ा हो गया है।
हालाँकि इस आवंटन में कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह का कसूर कहीं नजर नहीं आता है लेकिन सरकारी बंगले के लिए उनका मोह जरुर कुलांचे मारते तक साफ़ दिखता है जब कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने सरकार से गुजारिश की कि उन्हें एक अदद सरकारी बँगला दिया जाय इस पर सरकार ने भी तुरंत चिड़िया बैठाते हुए उन्हें तत्काल कैबिनेट मंत्री के बराबर सुविधा वाला आवास आवंटित करने का आदेश दे दिया। सूत्रों के अनुसार सरकार कांग्रेस अध्यक्ष के आवेदन को इसलिए दरकिनार नहीं कर पायी क्योंकि इससे पहले से ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ऐसे ही एक सरकारी बंगले पर रह रहे हैं।
सरकारी बंगलों को लेकर अब एक बार फिर विवाद खड़ा होने के साथ ही बयानबाजी का दौर भी शुरू हो गया है। जहाँ एक तरफ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह अभी सरकारी आवास में गए भी नहीं हुए हैं लेकिन उनके गृह प्रवेश से पहले ही बयानों के ज़रिए सरकारी बंगले का मज़ा ले रहे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष से उनकी ठन गई है।
इधर परम्पराओं का सहारा लेकर सरकारी बंगले आवंटित करने वाले राज्य सम्पत्ति विभाग के अधिकारी इस मामले पर कुछ भी बोलने से घबरा रहे हैं।हालाँकि दबी जुबान से यह जरुर स्वीकार करते हैं कि किसी भी राजनीतिक दल के अध्यक्ष को सरकारी आवास देने का कोई नियम नहीं है लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री खंडूड़ी सरकार के समय से शुरू हुई परम्परा आज भी जारी है।
वहीँ जब देश भर में सरकारी आवास के मामले में सुप्रीम कोर्ट भी गंभीर है तो फिर परम्परा के नाम पर यह आवंटन क्यों किया जा रहा है। सरकार और आवास लेने वाले दोनों दलों के नेताओं के बयानों से अब यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या नैतिकता अब सिर्फ जनता को दिखाने के लिए रह गई है, और सरकारी बंगलों का मज़ा लेने में दोनों दलों के नेताओं को गुरेज नहीं है। तब चाहे परम्पराओं का सहारा ही क्यों न लेना पड़ें।