शरीर, मन, बुद्धि का शुद्धिकरण ही मां दुर्गा की स्तुति
Purification of body, mind and intellect is praise of Maa Durga.
मानव चेतना के अन्दर सतोगुण रजोगुण और तमोगुण व्याप्त हैं। मानव चेतना के इन्हीं तीन गुणों का प्रकृति के साथ उत्सव को नवरात्रि कहते है। संकल्प और साधना के लिए ही वर्ष में दो बार नवरात्र का प्रावधान किया गया है।
परब्रह्म की प्रकृति स्वरूपा शक्ति आह्लादित होती है। इसीलिए हम नवरात्र में शक्ति की आराधना करते हैं। आदि शक्ति स्वरूपा स्त्री,लक्ष्मी,गौरी,सरस्वती का रुप धारण करती है। दुर्गा,काली,शिवा, धात्री आदि अनेक रूपों में हम अखिल ब्रह्माण्ड में मातृ तत्व के रूप में व्याप्त इसी एकमात्र शक्ति का नवरात्र में आह्वान करते हैं और इस भाव से भरते हैं कि इस धरती पर मां की तरह कोई शक्ति निरंतर हमारा सृजन और पालन करती रहें। हम सब उसकी संतानें हैं,परंतु जब कभी हम अहंकार में उस शक्ति को नकारने का उपक्रम करने लगते हैं या सृष्टि को बाधा पहुंचाते हैं तो वह शक्ति चंडी का रूप धारण कर हमें रोकती है। दुर्गा सप्तशती में मां की स्तुति में कहा भी गया है:-
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“या देवी सर्वभुतेषु चेतनेत्यभिधीयते”
नवरात्रि का पर्व माँ के अलग-अलग रूपों को निहारने और उत्सव मनाने का पर्व है। जिस प्रकार शिशु अपनी माँ के गर्भ में 9 महीने रहता है, वैसे ही हर मानव अपने आप में परा प्रकृति में रहकर-ध्यान में मग्न होने का नवरात्र का महत्व है। जब हम दशवें दिन परा प्रकृति से बाहर निकलते है तो सभी जीव-जंतुओं में नव चेतना का सृजनात्मक प्रस्सपुरण जीवन में आने लगता है।
आखिरी दिन जब हम मां दुर्गा के दशवें रुप सिद्धिदात्री के रूप में विजयोत्सव मनाते हैं तो हम मानव चेतना के तीनो गुणों के परे त्रिगुणातीत अवस्था में आ जाते हैं। हमारे अन्दर काम,क्रोध,मद,मत्सर, लोभ आदि जितने भी राक्षसी प्रवृति दुर्गुण हैं उसका हनन करके विजय का उत्सव मनाते है।
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रोजमर्रा की जिंदगी में जो मन फँसा रहता है उसमें से मन को हटा करके जीवन के जो उद्देश्य व आदर्श हैं उसको निखारने के लिए यह उत्सव मनाया जाता है। एक तरह से हम अपने मन के अन्दर की सकारात्मक ऊर्जा को पुनः रिचार्ज करते हैं। एक तरह से जब व्यक्ति अपने काम करते-करते थक जाता है तो इस थकान से मुक्त होने के लिए इन 9 दिनों में शरीर,मन,बुद्धि की शुद्धिकरण का पवित्र पर्व मां दुर्गा की स्तुति नवरात्रि है।