Uttarakhand

प्रस्तावित लोकायुक्त विधेयक भ्रष्टाचारियों पर कम, पत्रकारों पर अधिक कठोर

देहरादून । उत्तराखंड का प्रस्तावित लोकायुक्त विधेयक 2017 भष्टाचारियों पर तो कम सख्त है लेकिन पत्रकारों सहित बयान प्रकाशित करने व देने पर अधिक सख्त है। ऐसे प्रावधानों को हटाने व इसे भ्रष्टाचारियों के प्रति मजबूत बनाने के लिये समाज सेवी तथा सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट ने प्रवर समिति को 15 सुझाव भेजे हैं।

काशीपुर निवासी समाज सेवी तथा सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट के अनुसार इस विधेयक से पत्रकारों सहित सभी व्यक्तियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगाया गया है। प्रस्तावित उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक 2017 की धारा 56 का लोकायुक्त को हाईकोर्ट के समान न्यायालय अवमान की शक्ति देने वाला प्रावधान बहुत खतरनाक है। इसके मीडिया कर्मियों सहित लोकायुक्त के प्रतिकूल कोई भी बयान देने व खबर व लेख प्रकाशित व प्रसारित करने वाले व्यक्तियों के विरूद्ध दुरूपयोग की भारी संभावनायें है। इससे लोकायुक्त निरंकुश हो सकता है।

श्री नदीम ने प्रवर समिति को भेजे अपने 15 संशोधनों के सुझावों में इस प्रावधान को हटाने का सुझाव दिया है। उनके अनुसार लोकायुक्त न तो उच्च न्यायालय है और न ही उसे उच्च न्यायालय जैसी कोई शक्ति है वह केवल भ्रष्टाचार के मामलों में जांच एजेन्सी है। इसलिये अवमानना के लिये धारा 56 में उच्च न्यायालय को प्राप्त न्यायालय अवमान की शक्तियां देना खतरनाक है। इससे लोकायुक्त के अध्यक्ष व सदस्यों के निरंकुशों जैसा व्यवहार करने की संभावना रहेगी जिसकी खबरें भी प्रकाशित नहीं हो सकेंगी। क्योंकि जो उसके विरूद्ध बयान देगा या उसकी खबर या लेख छापेगा या प्रसारित करेगा वह धारा 56 में उल्लेखित अवमानना के अन्तर्गत आयेगी और इसके लिये उसे ऐसे व्यक्ति को स्वयं छः माह तक की सजा देने की शक्ति होगी।

लोकायुक्त विधेयक की धारा 56(2) के अनुसार यदि कोई व्यक्ति लोकायुक्त पर अनुचित दबाव बनाने अथवा लोकायुक्त को विवादित करने अथवा लोकायुक्त की अवमानना करने अथवा लोकायुक्त की अधिकारिता में कमी लाने अथवा लोकायुक्त के कार्य में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से किसी लेख का प्रकाशन एवं प्रसारण करता है ऐसा व्यक्ति लोकायुक्त की अवमानना का दोषी माना जाएगा।एक ओर तो लोकायुक्त के विरूद्ध कोई लेख प्रकाशित या प्रसारित करने पर सजा देने की शक्ति दी गयी। वही भ्रष्टाचारियों के विरूद्ध की गयी लोकायुक्त की सभी सिफारिशों को मानने को सरकार बाध्य नहीं है। धारा 32 में लोकायुक्त की सिफारिशों को प्रशासनिक कारणों से साध्य न होने का बहाना करके न मानने की पूरी छूट दे दी गयी है वहीं धारा 47 में वार्षिक रिपोर्ट में की गयी सिफारिशों को मानना जरूरी नहीं है, केवल इसके न मानने के कारण देना पर्याप्त है।

लोकायुक्त विधेयक भ्रष्टाचार के आरोपियों के प्रति नर्म है। जहां धारा 53 में जिस व्यक्ति के विरूद्ध भ्रष्टाचार की शिकायत की गयी है उसके मांगने पर लोकायुक्त द्वारा उसे निःशुल्क कानूनी सहायता दिलवाने का प्रावधान है वहीं शिकायत झूठी, क्षुद या तंग करने वाली पाये जाने पर एक साल तक की सजा और एक लाख तक के जुर्माने का प्रावधान है इसके अधिकारिक्त धारा 45 में जिसके विरूद्ध शिकायत की गयी उसे नुकसान का मुआवजा पाने का भी अधिकार दिया गया है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री को अतिरिक्त संरक्षण देते हुये पांच में से चार लोकायुक्त के सदस्यों का अनुमोदन तथा बंद कमरे में कार्यवाही तथा शिकायत पर कार्यवाही गोपनीय रखने का प्रावधान किया गया है। इसके अतिरिक्त धारा 52 में भ्रष्टाचार के मामलों में सिविल न्यायालयों की अधिकारियों पर रोक लगायी गयी है।

श्री नदीम ने अपने 15 सुझावों में लोकायुक्त नियुक्त करने की समय सीमा अधिकतम 120 दिन निर्धारित करने, लोकायुक्त नियुक्ति के लिये हिन्दी में कार्य करने का ज्ञान तथा पांच वर्ष पहले से किसी राजनैतिक दल का सदस्य न होने का प्रतिबन्ध लगाने, चयन समिति तथा खोजबीन समिति की सिफारिश के लिये समय सीमा निर्धारित करने, मुख्यमंत्री को अतिरिक्त सरंक्षण न देने, अभियोजन प्रारम्भ करने की मंजूरी के लिये समय सीमा निर्धारित करने, लोकायुक्त की सिफारिश बाध्यकारी होने, सम्पत्ति घोषणा न करने व गलत करने वालों के विरूद्ध लोकायुक्त द्वारा कार्यवाही करने, लोकायुक्त की वार्षिक रिपोर्ट में दिये सुझाव बाध्यकारी होने तथा रिपोर्ट राज्यपाल को देने तथा विधानसभा में रखने की समय सीमा निर्धारित करने, अवमानना संबंधी प्रावधान हटाने, लोकायुक्त में हिन्दी का प्रयोग अनिवार्य करने तथा लोकायुक्त को कुप्रशासन की शिकायतों पर कार्यवाही करने की शक्ति देने संबंधी सुझाव शामिल है।

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