वन महकमा आग बुझाने में हो रहा नाकाम, विधायक चौधरी ने जताई चिंता
विपक्ष ने वन मंत्री पर लगाये आरोप, नेशनल कार्बेट पार्क की सैर-सपाटे में लगे हैं मंत्री
रुद्रप्रयाग । रुद्रप्रयाग जिले के जंगल वनाग्नि की चपेट में है। रानीगढ़ पट्टी का डोब क्षेत्र का वन रेंज आग से जल रहा है। जंगल के आग की चपेट में आने से वनों को भारी नुकसान पहुंच रहा है और वन महकमा है कि आग बुझाने में नाकाम साबित हो रहा है। तेजी से फैल रही आग के कारण घुरड़ (हिरण) की प्रजातियां भी जान बचाकर ऊंचाई की ओर भाग रही हैं।
उत्तराखण्ड को जहां पूरे विश्व में पर्यावरण संरक्षक राज्य के रूप में जाना जाता है, वहीं पिछले दो सालों से जंगलों में लग रही आग के कारण उत्तराखण्ड आग सुलगाव राज्यों में शामिल हो गया है। विदेशी पर्यटक भी यहां आने से कतरा रहे हैं, क्योंकि आग लगने के कारण देवभूमि की आवोहवा प्रदूषित हो रही है। आला नेताओं एवं अधिकारियों को भी पर्यावरण को लेकर कोई चिंता नहीं है। आग लगने का सबसे बड़ा असर नदियों पर भी पड़ रहा है। जंगलों में आग लगने के बाद जंगलों का कार्बन बरसात के दौरान नालों के जरिये नदियों तक पहुंचता है। जिससे नदी का पारिस्थितकीय तंत्र गड़बड़ा रहा है और इसके दुष्प्रभाव मनुष्य पर पड़ रहे हैं।
हर साल जंगलों में आग लगने से जंगल राख में तब्दील हो जाते हैं और वन महकमा सिर्फ मूकदर्शक बनकर तमाशा देखता है। जंगलों को बचाये जाने के हर बार तरीके ढूंढे जाते हैं। कभी जागरूकता अभियान चलाया जाता है तो कभी क्रू स्टेशन बढ़ाये जाते हैं। यहां तक की स्टॉफों की भी पूरी तैनाती की जाती है, मगर इस सबके बावजूद भी जंगलों में लगने वाली आग पर काबू नहीं पाया जा रहा है। जिससे जंगलों में आग लगने से वनों को भारी नुकसान पहुंचता है और इससे पारिस्थितिकीय तंत्र भी बिगड़ता जा रहा है। इसके अलावा वन्य जीवों का अस्तित्व भी संकट में पड़ रहा है। इन दिनों जनपद के रानीगढ़ पट्टी के जंगलों में भीषण आग लगी हुई है। इसे वन विभाग की सुस्ती ही कहेंगे की जंगलों में आग लगी है और वन महकमा जागरूकता दिखाने के वजाय सोया हुआ है। स्वयं क्षेत्रीय विधायक भरत सिंह चौधरी का घर भी इसी क्षेत्र के नजदीक है और वे भी खुली आंखों से वनों को जलते हुए देख रहे हैं। उन्होंने वनों में लग रही आग पर चिंता जाहिर की है और अधिकारियों को सख्त हिदायत देते हुए शीघ्र आग पर काबू पाने के आदेश दिये।
कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता सूरज नेगी ने कहा कि वन विभाग के अधीनस्थ कर्मचारियों को सीमित उपकरण के साथ आग बुझाने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, जबकि ये नाकाफी साबित हो रहे हैं। वन विभाग के उच्च अधिकारी कार्यालय में बैठकर ही जानकारी ले रहे हैं। ऐसे में आग पर काबू पाया जाना मुश्किल ही है। वनों में आग लगने से पर्यावरणविद् भी काफी चिंतित नजर आ रहे हैं। उनकी माने तो वनों में लगने वाली आग का सबसे बड़ा असर जंगलों में रहने वाले वन्य जीवों पर पड़ रहा है। उत्तराखण्ड के 4500 फीट की ऊंचाई में हिरन की घुरड़ प्रजाति पायी जाती है, जोकि शांत वातावरण में रहती है। यह प्रजाति झुंड में रहती है, जिसमें नवजात शिशु भी होते हैं। जंगलों में आग लगने के कारण ये प्रजातियां तितर-बितर होकर एक-दूसरे से बिछुड़ जाते हैं और नवजात शिशु आग की चपेट में आकर मौत की भेंट चढ़ जाते हैं। हर साल वनों में लगने वाली आग के कारण घुरड़ की प्रजातियां खतरे की कगार आ गयी हैं। वनों में आग लगने का सबसे बड़ा कारण मानव है। मानव द्वारा ही चोटी सी चिंगारी के जरिये वनों को जलाया जा रहा है, मगर जो लोग वनों को खाक में बदल रहे हैं उनका आज तक पता नहीं लग पाया है। विभाग की ओर से वनों के बचाने के लिए सतर्कता बरतने की बातें तो खबू जाती हैं, लेकिन जंगल आग की भेंट चढ़ते जा रह हैं और विभाग दावों तक सीमित रह गया है और जो व्यक्ति जंगलों को आग के हवाले कर रहे हैं उनका तो शायद ही कभी पता लग पायेगा। रानीगढ़ पट्टी का डोब वन रेंज में घुरड़ (हिरण) की सबसे ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। जंगलों में लग रही आग के कारण घुरड़ की प्रजातियां समाप्त हो रही है।