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व्यक्ति, प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण आज के समय की मांग

प्रकृति के घटक होने के नाते पर्यावरण वंदन के माध्यम से हमने अपनी संस्कृति, परंपराओं के महत्व को समझा है,प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण, संवर्धन, चिंतन और वंदन की ओर अग्रसर हो …
कमल किशोर डुकलान
प्रकृति के दोहन का सिलसिला यदि इसी तरह जारी रहा, तो यह संभव है कि हम ही न रहें या प्रकृति ही न रहे : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक परम पूजनीय मोहन राव भागवत जी ने प्रकृति बंधन कार्यक्रम अपने उद्बोधन में कहा, यदि स्वार्थवश प्रकृति के दोहन का सिलसिला जारी रहा, तो यह संभव है कि हम ही न रहें या प्रकृति ही न रहे। इसलिए प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण-संवर्धन के गंभीर प्रयास होने चाहिए।
भारतवर्ष की प्रकृति के साथ जीने की सनातन परंपरा जिसे हमारे पूर्वजों ने संभाला वह पुनर्जीवित होनी चाहिए, मजबूत होनी चाहिए। प्रकृति के घटक होने के नाते पर्यावरण वंदन के माध्यम से हमने अपनी परंपराओं को महत्व को समझा है।
परमात्मा ने सम्पूर्ण जीव सृष्टि की निर्मिति अग्नि, जल, वायु तथा प्रकृति आदि से मिलाकर एक सुंदर पर्यावरण की रचना की है। विज्ञान के अति आच्छादन के कारण मनुष्य ने स्वयं को प्रकृति का निर्माता मान लिया,जबकि सत्य यह है कि इस चराचर ब्रम्हांड का आधार मनुष्य या विज्ञान नहीं है,अपितु परमात्मा है। महर्षि वेदव्यास जी ने वेदों में जीव-जगत और पर्यावरण के विविध विषयों को अनेक रूपों में वर्णित किया है। गौं माता जिस प्रकार अपने बच्चे को दूध पिलाकर परिपुष्ट करती है, उसी प्रकार प्रकृति भी जल,वायु,अग्नि द्वारा इस ब्रम्हांड की पुष्टि करती है।


