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सरहद के तीर्थ पर दर्शन और स्नान

  • 18 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित देवताल सरोवर में स्नान
  • देवताल को छुआ तो लगा कि सीमा के प्रहरियों के चरण छू लिये

गोपेश्वर से क्रांति भट्ट 

भारत और चीन के बीच  सीमा विवाद के कारण सम्बंधों में तपिश आ गयी थी । हालांकि ये तपिश अब कुछ ठंडी पड गयी है । भारत . भूटान और चीन की सीमा  के बीच ” डोक ला ” को लेकर यह तनाव पैदा हो गया था। दोनो देश की सेनाऐं  मुठ्ठियां भींचे अपनी अपनी जगह पर तनतनाती रही । इस बीच उत्तराखंड के ” बडाहोती ” में भी चीन की हमेशा की तरह हरकत सुर्खियां बनी ।

उत्तराखण्ड और की चीन तिब्बत से लगभग 400 से अधिक किमी की सीमा है  चमोली जिले में माणा पास से लेकर रिम खिम व अन्य सीमा चौकियां हैं । इन सरहदों पर भारत के कई पवित्र तीर्थ स्थल हैं । विशेष रुप से हिमालयी सरोवर या कुंड जिन्हें ताल भी कहते हैं । बडाहोती नीती मलारी के करीब ” पार्वती कुंड है तो माणा पास के करीब ” देव ताल और सरस्वती कुंड । इन तीर्थ स्थलों  और कुंडों पर भारत की धर्म परायण जनता सदियों से जातीं हैं। विशेष कर उत्तराखंड की सरहद से लगे गांवों की स्थानीय जनता ।

सीमा के प्रहरी के साथ साथ आस्था के प्रहरी के रूप में भी लोग सरहद से लगे तीर्थ स्थलों पर जाते हैं।  यह डगर बडी कठिन भी है । क्योंकि सीमा पार से ऐतराज भी होता है । पर सीमा के प्रहरी और आस्था के विनम्र यात्रियों पर सीमा के ऐतराज का कोई फर्क नहीं पडता । बींजिग औलम्पिक के दौरान नीती मलारी घाटी की महिलाएं बडी आस्था से बडाहोती के करीब पार्वती कुंड तक गयीं  हालांकि तब  चीनी सैनिकों ने  ऐतराज करने की असफल कोशिश भी की ।

इस बार चीन भारत के  सीमा के बीच भारत के तीर्थ यात्रियों का एक दल ” देवताल ” के लिए निकला । और बडे अदम्य साहस के साथ देवताल के दर्शन . स्नान के बाद सुरक्षित वापस आया ।  भारत के आखिरी गांव माणा से 52 किमी आगे भारत के माणा पीक या माणा पास कुछ पीछे ” देवताल की यह यात्रा इस लिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि सीमा की रक्षा के लिए जहां हमारे जांबाज सैनिक मुस्तैदी से  सीमा पर विकट परिस्थितियों के बाबजूद भी डटे खडे हैं वहीं सरहद के तीर्थों  तक अपनी आस्था और मौजूदगी जताना भी जरूरी है । इस भावना के साथ भारत के साहसिक तीर्थ यात्री . संत पूर्व काबीना मंत्री मोहन सिंह गांव  वासी के नेतृत्व में ” सरहद के तीर्थ देवताल पहुंचे । इस यात्रा का मकसद भले ही विशुद्ध रुप से तीर्थ दर्शन रहा हो । पर इस विकट यात्रा ने सीमा पार चीन को भी सादगी और सरलता से यह संदेश दिया कि  ” हम हैं सरहद के तीर्थ यात्री “।

उल्लेखनीय है कि ”सीमा दर्शन” की योजना भूत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी की थी । उन्होंने ने सीमा के दर्शन भारत के लोगों विशेष कर सीमा से लगे राज्यों की जनता के लिए परिकल्पित की थी ताकि लोग अपनी सीमाओं के दर्शन कर सकें । वहीँ इस योजना को वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्य रूप में परिणित किया है इस योजना से जहाँ गैर आबादीय सीमावर्ती इलाकों सेना का भी मनोबल बढ़ता है वहीँ ऐसे इलाकों में  आवाजाही से दुश्मन देशों को यह सन्देश भी जाता है कि ये स्थान निर्जन नहीं हैं।

बदरीनाथ की धर्म ध्वजा के साथ यह यात्रा दिनांक …. को बदरीनाथ के दर्शन के बाद माणा से निकली । हर उम्र के लोग थे इस यात्रा मे। यात्रा दल का नेतृत्व किये पूर्व मंत्री मोहन सिंह गाव वासी पहले भी देवताल की यात्रा कर चुके हैं । तीसरी बार की यात्रा करने के बाद कहा ” भारत का यह देवताल वह ताल है । जहां देवता तो स्नान करते ही हैं भगवान ” श्री कृष्ण भी यहाँ आते थे । उनके चेहरे पर खिली प्रसन्नता बताती है कि आस्था के लिए उम्र कोई बाधा नहीं संकल्प महत्वपूर्ण है । पत्रकार राजेंद्र जोशी पहली बार सरहद के ताल सरोवर तक आये । यात्रा से उनके चेहरे पर अदभुत प्रसन्नता दिखी । कहते हैं इस  हिमालयी तीर्थ कुंड को देख कर विश्वास को शक्ति मिली कि भारत और हिमालय ही देवताओं की तपो भूमि है । पेशे से अध्यापक सत्येन्द्र सिंह कहते  हैं  देवताल को छुआ लगा कि सीमा के प्रहरियों के चरण छू लिये।इसी तरह अन्य यात्रियों में अभिषेक भंडारी, भाष्कर डिमरी, मस्तराम उनियाल आदि ने जब वहां का प्राकृतिक नज़ार देखा तो उनके मुँह से निकला हर शब्द महादेव को याद कर रहा था इस अलौकिक दृश्य से वे अभिभूत तो थे ही साथ ही भारतीय सेना के जांबाज़ जवानों के हौसले को भी उन्होंने सलाम किया।  

devbhoomimedia

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