- ईको टास्क फोर्स की दो कंपनियां गठित करने की घोषणा
- जल, जंगल, जमीन और जन को एक साथ मिलाकर हिमालय बचेगा : डॉ.निशंक
देहरादून : मुख्यमंत्री ने हिमालय संरक्षण के लिए ‘थ्री सी’ और ‘थ्री पी’ का मंत्र दिया। थ्री सी यानी केयर, कंजर्व और को-ऑपरेट एवं थ्रीपी यानी प्लान, प्रोड्यूस और प्रमोट। हिमालय दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने शनिवार को एक स्थानीय होटल में आयोजित सतत् पर्वतीय विकास सम्मेलन का उद्घाटन के अवसर पर अपने सम्बोधन में कही। इस दो-दिवसीय सम्मेलन का आयोजन राज्य के नियोजन विभाग द्वारा किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने राज्य में वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से ईको टास्क फोर्स की दो कंपनियां गठित करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि इन दो कंपनियों में लगभग 200 पूर्व सैनिक सेवा देंगे और आने वाले वर्षों में इस पर लगभग 50 करोड़ रुपए, व्यय का अनुमान है। हिमालय दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री ने वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और अन्य कर्णधारों से देहरादून की रिस्पना नदी को फिर से पुराने स्वरूप में लाने की अपील भी की। मुख्यमंत्री ने कहा कि रिस्पना नदी जिसे पूर्व में ऋषिपर्णा नदी कहा जाता था, उसे फिर से प्रदूषण मुक्त और निर्मल जल से युक्त करने के लिए लोग अपने सुझाव दें।
मुख्यमंत्री ने कहा कि गंगा की परिकल्पना बिना हिमालय के नहीं हो सकती है और देश और दुनिया की गंगा के प्रति आस्था यह व्यक्त करती है कि उनकी हिमालय के प्रति भी आस्था है। हिमालय, भारत का भाल तो है ही, सामरिक दृष्टि से भारत की ढाल भी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके द्वारा पिछले 03 माह से जल संचय जीवन संचय और एक व्यक्ति एक वृक्ष का जो अभियान चलाया जा रहा है, वह हिमालय संरक्षण की दिशा में ही एक कदम है।
उन्होंने कहा कि हिमालय के गांवों से बाहर निकलकर प्रवासी हो चुके लोगों को ‘सेल्फी फ्रॉम माय विलेज’ और जन्मदिन-विवाह की वर्षगांठ जैसे महत्वपूर्ण समारोह को अपने गांव में मनाने की अपील भी इसी दिशा में एक प्रयास है। इसी बहाने लोग अपने गांव में कुछ दिन गुजारेंगे और पर्वतीय प्रदेश से उनका रिश्ता फिर से मजबूत होगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमालय हमारे जीवन के हर सरोकार से जुड़ा हुआ है। भारतीय संस्कृति का जन्मदाता भी हिमालय है। हिमालय की चिंता सिर्फ सरकार करें यह संभव नहीं है, अधिकतम जन सहभागिता की आवश्यकता है। समाज के हर छोटे बड़े प्रयास की आवश्यकता है।
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर नियोजन विभाग द्वारा राज्य की बेस्ट प्रैक्टिसेज को दर्शाने के लिए बनाई गई वेबसाइट ‘‘ट्रांसफॉर्मिंग उत्तराखंड’’ का विमोचन किया। उन्होंने प्रसिद्ध पर्यावरणविद डॉ. अनिल जोशी द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘‘हिमालय दिवस’’ का भी विमोचन किया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद हरिद्वार डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि जल, जंगल, जमीन और जन को एक साथ मिलाकर समन्वित प्रयास करके हिमालय को बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि हर हिमालयी राज्य की अपनी विशेष आवश्यकताएं होती हैं और उनको ध्यान में रखते हुए योजनाओं को नियोजित किए जाने की जरूरत है।
डॉ.अनिल जोशी ने कहा कि उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल जैसे राज्य जो हिमालय की संपदा का अधिक लाभ उठाते हैं, उन्हें भी आगे बढ़कर जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कंज्यूमर को कंट्रीब्यूटर भी होना चाहिए। आईएमआई के सचिव सुशील रमोला ने कहा कि हिमालय को बचाने के लिए सभी स्टेकहोल्डर्ज को साथ में मिलकर प्रयास करने होंगे। उन्होंने हिमालयी राज्यों के इंटर रीजनल पार्टनरशिप पर भी बल दिया। अपर मुख्य सचिव डॉ.रणवीर सिंह ने लोगों का स्वागत करते हुए सतत् पर्वतीय विकास सम्मेलन की आवश्यकता और महत्व को बताया। उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग और पलायन जैसे मुद्दों पर अपने विचार रखे। कार्यक्रम को परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानंद मुनि ने भी संबोधित किया। उद्घाटन सत्र के कार्यक्रम में शासन के वरिष्ठ अधिकारी, पर्यावरणविद्, शिक्षाविद और गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।
- विकास योजना बनाते समय पर्वतीय व दुर्गम क्षेत्र को विशेष रूप से ध्यान में रखना होगाः कौशिक
वहीँ एक अन्य कार्यक्रम में प्रदेश के शासकीय प्रवक्ता व शहरी विकास मंत्री और देहरादून जिले के प्रभारी मंत्री मदन कौशिक ने हिमालय दिवस पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला/गोष्ठी में कहा कि उत्तराखण्ड राज्य का अर्थ देहरादून नहीं है बल्कि इसका सही अर्थ पर्वतीय और दुर्गम क्षेत्र है। अतः विकास योजना बनाते समय पर्वतीय व दुर्गम क्षेत्र को विशेष रूप से ध्यान में रखना होगा।
महिला आईटीआई परिसर सभागार में आयोजित कार्यशाला में आजीविका, पलायन और आपदा विषय पर विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा की चमोली पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जैसे सीमान्त क्षेत्र में विशेष कार्य करने की जरूरत है। इस सम्बन्ध में उन्होंने ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन की कार्य योजना के सन्दर्भ में विशेष ध्यान आकर्षण रखा। प्रभारी मंत्री ने कहा की 17 वर्ष के निर्माण के बाद हिमालय बचाने के लिए पिछले वर्षों में कुछ न कुछ कार्य आवश्यक हुए हैं परन्तु अभी तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है।
उन्होंने कहा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संकल्प से सिद्धि के प्रयास से हम उत्तराखण्ड की आजीविका, पलायन और आपदा विषय के चुनौतियों का आसानी से समाधान कर सकते हैं। हम अपने कार्य का संकल्प लेकर आगे बढ़ेंगे तब निश्चित रूप से हमें सिद्धि मिलेगी। श्री कौशिक ने कहा मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत सरकार के नेतृत्व में आजीविका, पलायन व आपदा की चुनौती से निपटने के लिए संकल्प लिया गया है, इसलिए इसकी सिद्धि आवश्यक मिलेगी।
उन्होंने कहा पलायन राज्य की विशेष चुनौती है, इसे देखते हुए सरकार ने पलायन आयोग का गठन किया। पिछले दिनों हमारी आपदा टीम ने दुनिया को दिखा दिया है, की हम विपरीत परिस्थितियों में कार्य कर सकते हैं। आजीविका के क्षेत्र में सरकार अनेक कार्य कर रही है। प्रभारी मंत्री ने कहा की आज की कार्यशाला में 25 विभागों के माध्यम से जो विषय बस्तु प्रस्तुत किया गया इसके निष्कर्ष को सरकार अपना एजेंडा बनायेगी और क्रमवार रूप में इसे लागू करेगी। इस सम्बन्ध में उन्होंने सरकार के साथ जन सहभागिता पर विशेष बल दिया।
क्षेत्रीय विधायक उमेश शर्मा ‘काऊ’ सरकार ईमानदारी से कार्य कर रही है, इसलिए पलायन अवश्य रूकेगा। विधायक खजान दास ने कहा वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली प्रधानमंत्री रोजगार योजना, अनेक स्वरोजगार योजना के माध्यम से सरकार आजीविका पर विशेष कार्य कर रही है। विधायक गणेश जोशी ने कहा देहरादून बासमती चावल, लीची के लिए प्रसिद्ध है लेकिन आज बाहर के चावल और लीची और चावल बाजार में मिल रहे हैं। इसके लिए हम सब जिम्मेदार हैं। विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने कहा पर्यावरण के साथ मनुष्य का सह-अस्तित्व जरूरी है। आर्गेनिक उत्पाद के माध्यम से हम विश्व में अपनी पहचान बना सकते हैं। विधायक सहदेव पुण्डीर ने कहा जलवायु परिवर्तन के लिए वृक्षारोपण जरूरी है। इस अवसर पर गोष्ठी में उद्यमी स्वयं सहायता समूह के प्रतिनिधि, डीएम एसए मुरूगेशन, सीडीओ जीएस रावत, इत्यादि उपस्थित थे।
हिमालय और पर्यावरण को बचाये रखना हम सबका दायित्वः प्रीतम सिंह
देहरादून । उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने हिमालय बचाओ पर्यावरण बचाओ गोष्ठी कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि आज हिमालय और पर्यावरण को बचाये रखना आप और हम सबका दायित्व है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्डवासियों की इसलिए भी अधिक जिम्मेदारी है कि यहां से अलकनन्दा, भागीरथी, यमुना, काली, सरयू, पिन्डर, मंदाकनी जैसी सदा नीरा पवित्र नदियां पूरे देशवासियों की व्यास बुझा रही है। उन्होंने कहा कि चूकिं गंगा नदी हमारे यहां से बनकर जाती है सबसे पहले उसका संरक्षण करना भी हमारा सामुहिक दायित्व एवं कर्तव्य है।
उन्हांने कहा कि आज देश में गंगा नदी की सफाई के संबंध में तमाम तरह के दावे किये जा रहे है। परन्तु गंगा नदी का पानी इतना स्वच्छ है इसका आंकलन आप स्वयं कर सकते है। प्रीतम सिह ने कहा कि हिमालय और गंगा के संरक्षण के लिए केन्द्र सरकार को अलग से नीति तैयार करने की आवश्यकता है। ग्वोबल वार्मिंग की वजह से आज ग्लेशियर पिघल रहे है नदियों का पानी कम होता जा रहा है। प्रीतम सिंह ने कहा कि पर्यावरण के बिना हमारा जीवन अधूरा है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड की धार्मिक, सांस्कृतिक विशिष्टता के साथ-साथ पर्यावरण में भी देश में अग्रणी स्थान रखता है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में 67 प्रतिशत वनाछादित एवं 18 हिमाछादित क्षेत्र हैं। उत्तराखण्ड राज्य वर्षा से पर्यावरण की रक्षा कर पर्यावरण को सुन्दर और शुद्व बना रहा है। गोष्ठी में उपस्थित कार्यकर्ताओं को वरिष्ठ नेत्री बाला शर्मा द्वारा हिमालय संरक्षण के लिए शपथ दिलाई।
गोष्ठी में पूर्व मंत्री हीरा सिंह बिष्ट, विधायक आदेश चौहान, पूर्व विधायक जोत सिंह गुनसोला, राजकुमार, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट, महामंत्री राजेन्द्र सिंह भण्डारी, जयपाल जाटव, राजपाल खरौला, नवीन जोशी, याकूब सिद्विकी, मुख्य प्रवक्ता मथुरा दत्त जोशी, प्रमोद कुमारसिंह, लाल चन्द शर्मा, राजेन्द्र शाह, प्रवक्ता गरिमा महरा दसौनी, अजय सिंह, नवीन पयाल, गिरीश पुनेड़ा, भरत शर्मा, अशोक वर्मा, डॉ. आर. पी. रतूड़ी, महानगर अध्यक्ष पृथ्वीराज चौहन, जिलाध्यक्ष यामीन अंसारी, दीप बोहरा, सुनीता प्रकाश, परिणीता बडोनी, शानित रावत, कमलेश रमन, आई.टी. अमरजीत सिंह, ताहिर अली, पार्षद जगदीश धीमान, अशोक कोहली, अर्जुन सोनकर, राजेश चौधरी, आनन्द त्यागी, राजेश शर्मा, ललित भद्री, अनिल गुप्ता, हेमन्त कोठयारी, सुनित राठौर, धर्म सिंह पंवार, महेश जोशी, पंकज मैसून, कृष्ण प्रसाद शर्मा, कुंवर सिंह यादव, सावित्री थापा, विनोद कुमार गोयल, भगवती प्रसाद सेमवाल, मोहन काला, बिरेन्द्र बुटोला आदि उपस्थित थे।