दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के केन्द्र में व्यक्ति

कमल किशोर डुकलान
एकात्म मानववाद के जनक पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी की आज पुण्यतिथि है,भाजपा उनकी पुण्यतिथि को प्रतिवर्ष समर्पण दिवस के रुप में मनाती है।पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक का ऐसा व्यक्तित्व था जिसमें उनके व्यक्तिगत शुचिता और गरिमा के उच्चतम आयाम को देखा जा सकता है।
पण्डित दीनदयाल उपाध्याय को आदर्श कर्म योगी,गंभीर दार्शनिक, समर्पित समाजशास्त्री,कुशल राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री,पत्रकार आदि रूपों में जाना जाता है।आज जहां विश्व के विविध देश समाजवादी एवं पूंजीवादी विचारधाराओं को अपना रहे हैं,वहीं पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी एक एकात्म मानववाद दर्शन के केंद्र में मानव है।
एकात्म मानववाद के दर्शन शास्त्र के क्षेत्र में पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी के अनुसार,समाजवादी एवं पूंजीवादी विचारधाराएं केवल मानव के शरीर व मन की आवश्यकताओं पर विचार करती हैं,जो कि भौतिक वादी उद्धेश्य पर आधरित हैं। मनुष्य के संपूर्ण विकास के लिए
आध्यात्मिक विकास भी उतना ही आवश्यक है. एकात्म मानववाद एक ऐसी विचारधारा है जिसके केंद्र में व्यक्ति, फिर व्यक्ति से जुड़ा परिवार फिर परिवार से जुड़ा समाज, राष्ट्र, विश्व फिर अनंत ब्रह्माण्ड समाविष्ट है.
सभी एक दूसरे से जुड़कर अपना अस्तित्व कायम रखते हैं। इस दर्शन में समाज केंद्रित मानव व्यवहार और उससें संबद्ध आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक व्यवहार की परिकल्पना प्रस्तुत की गई थी।उन्होंने कहा कि मन,आत्मा,बुद्धि,शरीर का समुच्चय ही मानव है तथा चार पुरुषार्थ- धर्म,अर्थ,काम, मोक्ष से पूर्ण मानव ही एकात्म मानव दर्शन का केंद्र बिंदु है।
चार पुरुषार्थ की लालसा मनुष्यों में जन्मजात होती है और समग्र रूप में इनकी संतुष्टि भारतीय संस्कृति का सार है. आज के दौर में एकात्म मानववाद की प्रासंगिकता बनी हुई है क्योंकि यह एकीकृत एवम संधारणीय है।इसमें व्यक्ति एवं समाज की आवश्यकता को संतुलित करते हुए प्रत्येक मानव को गरिमामयी जीवन सुनिश्चित करने की बात रखी गयी।इस दर्शन में न केवल सामाजिक अपितु राजनीतिक,अर्थव्यवस्था, आध्यात्मिक,उद्योग,शिक्षा व लोकनीति जैसे पहलुओं पर व्यापक और व्यावहारिक नीति निर्देश शामिल थे।
दीनदयाल जी के अनुसार हमें अपनी राजनैतिक एवं आर्थिक व्यवस्था का भारतीयकरण करना चाहिए।भारतीयकरण का आधार इन दो शब्दों में है स्वदेशी एवम विकेंद्रीकरण तथा इसकी प्रकिया है स्वदेशी को युगानुकूल तथा विदेशी को स्वदेशानुकूल बनाकर ग्रहण करना चाहिए।पश्चिमी देशों ने भारत की दशा एवं दिशा को काफी प्रभावित किया है।यह प्रभाव आजादी से पहले एवं बाद में भी बना रहा।इसके चलते भारतीयता पीछे छूटती गई।भारतीय मानसिकता को भारतीय संदर्भ में देखने व विकसित करने के लिए प्रयास होने चाहिए।वास्तव में इस वक्त भारतीय मानसिकता का भारतीयकरण बड़ी चुनौती है।अवश्य ही भारतीयकरण के प्रयास हर स्तर पर होने चाहिए।
भारत के प्रधानमंत्री जी की आत्मनिर्भर भारत,वोकल फ़ॉर लोकल,मेड इन इंडिया जैसी नीतियों तथा योजनाओं का इसी ओर प्रयास है।अंत्योदय- ब्रिटिश राज काल भारत के लिए भारत के लिए मुश्किलों से भरा हुआ रहा।इस काल मे अनेक महापुरुषों ने समाज के मार्गदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।
महात्मा गांधी ने जिस प्रकार देश के पिछड़े व निर्धन वर्ग के उत्थान पर अपना ध्यान केंद्रित किया। उसी प्रकार पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी के आचार विचार की झलक हमें वर्तमान सरकार द्वारा चलाई जा रही आत्मनिर्भर भारत,वोकल फ़ॉर लोकल,मेड इन इंडिया जैसी नीतियों तथा योजनाओं में देखने को मिलती है।