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दिल्ली में रहने वाले पहाड़ के लोग अब समझने लगे हैं राजनीतिक बातें !

चालीस लाख उत्तराखंड के प्रवासियों को नहीं दिया राजनीती में कोई स्थान 

केजरीवाल ने उत्तराखण्ड के प्रवासियों को जीतने के बाद नहीं दिया कोई स्थान 

पर्वतीय प्रकोष्ठ के अध्यक्ष अर्जुन सिंह राणा,विनोद बछेती, मदनमोहन ढौंढियाल, राजेन्द्र बिष्ट,सहित लगभग 16 लोग हैं चुनाव लड़ने को तैयार 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

नई दिल्ली : दिल्ली में विधान सभा चुनावों की आहट लगभग 40 लाख उत्तराखण्ड के प्रवासियों के लिए दिल्ली में राजनीतिक सम्मान का प्रश्न खड़ा कर रहा है। जिस आम आदमी पार्टी को उत्तराखण्ड के प्रवासियों ने दिल्ली में इज्जत का स्थान दिलवाया, उसी पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल ने उत्तराखण्ड के प्रवासियों को जीतने के बाद कोई स्थान नहीं दिया। विधान सभा चुनावों से पहले अरविन्द केजरीवाल ने टिकटों की बंदरबांट ऐसे कर दी थी कि उत्तराखंड के दिल्ली में रह रहे चालीस लाख प्रवासियों को कोई जगह नहीं दी। पिथौरागढ़ के मूल निवासी हरीश अवस्थी को रिठाला में लगभग 55 हजार वोट पड़ने के बाद भी उनको आम आदमी पार्टी के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता का स्थान केजरीवाल ने दिया। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं गढ़वाली, कुमाउनी और जौनसारी के झुनझुने बेचने वाले केजरीवाल उत्तराखण्डियों के प्रति कैसी सोच रखते हैं। यहाँ पर दिल्ली के विकास की बात नहीं हो रही है,जिस पर नजर दौड़ाएं तो उत्तराखंडियों को विकास वाले कामो से केजरीवाल ने दूर रखा क्योंकि वे ईमानदार होते हैं।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली की आबादी लगभग दो करोड़ हो चुकी है और इसमें निरंतर बढ़ोतरी हो रही है.अगर सयुंक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के आंकड़े को देखा जाय तो दिल्ली में उत्तराखण्ड के 65 लाख प्रवासी निवास करते हैं। बीजेपी ने पिछली विधानसभा चुनावों में उत्तराखण्ड प्रवासियों को लगभग दो -तीन टिकट दिए ,जो जनसँख्या के हिसाब से नाकाफी रहा। फिर भी बीजेपी में उत्तराखंडियों का सम्मान है और दिल्ली में जिस प्रकार ईमानदारी के चोले वाले चेलों ने जिस प्रकार विजय पायी अब उसके लिए उनको स्टील के चने चबाने पड़ेंगे।

पूर्वी दिल्ली में उत्तराखंड के प्रवासी जीत और हार को तय करने की स्थिति में हैं तो वहीँ पश्चिमी दिल्ली के मटियाला,उत्तमनगर ,पालम और द्वारिका में उत्तराखंड के प्रवासियों की अच्छी जनसँख्या निवास करती है। इन क्षेत्रों से उत्तराखंड के प्रवासी जीत और हार का आंकड़ा तय कर सकते हैं।

पर्वतीय प्रकोष्ठ बीजेपी दिल्ली राज्य की इस महीने एक मीटिंग में बात उठाई गयी थी कि उत्तराखंड के बीस प्रत्याशियों को विधान सभा टिकट के लिए बीजेपी के दिल्ली राज्य एवं बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से बात की जाय। जब नाम मांगे गए तो इनमे पर्वतीय प्रकोष्ठ के अध्यक्ष अर्जुन सिंह राणा,विनोद बछेती,मदनमोहन ढौंढियाल, राजेन्द्र विष्ट ,आदि लगभग 16 नामो की सूची प्रकाश में आयी। अर्जुन सिंह राणा ,और विनोद बछेटी जी जहाँ पूर्वी दिल्ली से टिकट लेने की दावेदारी में हैं तो वहीँ मदन मोहन ढौंडियाल का नाम मटियाला विधानसभा जहाँ उत्तराखंड के प्रवासियों की घनी आवादी है ,से लिया जा रहा है। अब दिल्ली की बीजेपी और बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व तय करेगा,क्या करना है।

कुछ को छोड़ कर अधिकांश उत्तराखंड के प्रवासी जो बीजेपी में हैं आर्थिक स्थिति उनकी चुनाव में साथ नहीं दे रही है। अगर पार्टी चुनाव योग्यता के आधार पर लड़ाती है तो इनमे शतप्रतिशत उत्तराखंडी विधानसभा चुनाव जीत सकते हैं। जब मटियाला से मदनमोहन ढौंडियाल जी जो एक भूतपूर्व सैनिक और सेवानिवृत अधिकारी (गृह मंत्रालय ,भारत सरकार ) हैं ,इस विषय पर मीडिया ने संपर्क किया तो उन्होंने कहा -मटियाला में पहाड़ के लोगों की घनी आवादी जरूर है ,लेकिन बीजेपी नेतृत्व जो तय करेगा उसके आधार पर एक अनुशासित सैनिक की तरह मैं काम करूँगा। फ़िलहाल मैं दिल्ली कैंट और मटियाला क्षेत्र का पर्वतीय प्रकोष्ठ बीजेपी से प्रभारी हूँ।

कांग्रेस ने उत्तराखंड से बहुत लिया है लेकिन इसके बदले उत्तराखंड को उन्होंने कुछ नहीं दिया, इसलिए अगिनत उत्तराखंडी कांग्रेस से आज कटे हुए हैं। कांग्रेस अगर विधान सभा चुनावों के टिकट पहाड़ियों को देती भी है तो चुनावों के परिणाम क्या होंगे ,सबको पता है। जब टिकट उनको पहाड़ियों को देना था तब कांग्रेस ने उनको हाशिये पर डाल दिया था। कुलमिला कर इस बार दिल्ली विधान सभा चुनावों में बीजेपी हो या कांग्रेस अथवा आम आदमी पार्टी उत्तराखंड के प्रवासियों के सामने सब नतमस्तक होंगे। इसका मुख्य कारण है पहाड़ के लोग अब बातें समझने लगे हैं।

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