पंत के आगे नतमस्तक पंत !

- आबकरी महकमे में बह रही उल्टी गंगा !
- सोमवार सायं की गयी हर तैनाती के पीछे कोई न कोई खेल : सूत्र !
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देवभूमि मीडिया डॉट कॉम की खबर आज उस वक़्त सही साबित हुई जब सोमवार सायं आबकारी विभाग ने बम्पर ट्रान्सफर की सूची जारी कर डाली। साल के बीच में किये गए इन स्थानान्तरणों पर जहाँ सवालिया निशान लग रहे हैं वहीँ भाजपा की जीरो टालरेंस की नीति भी सवालों के घेरे में आ गयी है।
जी हां आबकारी महकमे में उल्टी गंगा बह रही है । मुख्यमंत्री के जीरो टालरेंस के दावे को उनके मंत्री और अधिकारी उन्हीं की आड़ में पलीता लगा रहे हैं। चर्चा है कि विभाग के मंत्री प्रकाश पंत इन दिनों विभाग के ही एक ज्वाइंट कमिश्नर टीके पंत के आगे नतरमस्तक हैं । चर्चा है कि विभाग के इस चर्चित अधिकारी को मंत्री की पूरी शह है । नतीजा इस अधिकारी को मनमानी की पूरी छूट दे दी गयी है। आलम यह है कि विभाग के तमाम नीतिगत मसले यह अधिकारी तय कर रहा है, शासन की न तो नीतिगत मसलों में कोई भूमिका है और न ही विभागीय अफसरों की तैनाती में। इसी अधिकारी की शह पर अभी पिछले दिनों आबकारी नीति में बडा बदलाव किया गया, जिसमें देशी शराब पर डयूटी बढा दी गयी । इसका सीधा फायदा शराब माफिया को पहुंचा, सूत्रों की मानें तो अकेले इसी अधिकारी ने इस फैसले को अंजाम तक पहुंचाया जिसमें करोडों रुपये का खेल हुआ।
विभागीय मंत्री की छवि पर भी उस वक्त सवाल उठा था,लेकिन तर्क यह दिया गया कि विभागीय ठेकेदारों को घाटे से बचाने के लिये यह किया गया। जबकि हकीकत यह है कि नीति से जुडे इस अहम फैसले पर अगले वित्तीय वर्ष में ही कोई फैसला लिया जाना चाहिए था। बहरहाल इसके बाद आबकारी मुख्यालय में एक अन्य आदेश के तहत मुख्यालय से अन्य अधिकारियों को बाहर करने का खेल शुरु हुआ । इस खेल में मुख्यालय के सभी वरिष्ठ अधिकारियों को मुख्यालय से बाहर कर दिया गया, ताकि बेरोकटोक टीके पंत अपने मनमाने फैसले करा सकें । इस क्रम में विभाग के दो अपर आयुक्तों को पद न होने के बावजूद गढवाल और कुमाऊं मंडल में तैनाती के नाम पर मुख्यालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
यह खेल भी इसीलिये हुआ कि पंत जो फाइल तैयार करें उस पर किसी अन्य की नजर ही न पडे और सीधे वह मात्र रबर की मुहर बन चुके आयुक्त और मंत्री के जरिये उसे अंजाम तक पहुंचा सकें । चर्चा है कि विभागीय मंत्री ने टीके पंत की इस योजना को मुकाम तक पहुंचाने में पूरी मदद की । इसके बाद विभाग में बडे पैमाने पर तमाम नियमों और कायदों को दरकिनार करते हुए बीच सत्र में तबादले कर दिए गये। चर्चा है कि बीच सत्र में तबादले इसलिये किये गए ताकि उसका शक विभागीय मंत्री पर न जाए । बीच सत्र में किये गए इन तबादलों पर अब यह प्रचारित किया जा रहा है कि मुख्यमंत्री ने शराब ओवररेटिंग की शिकायत पर यह निर्णय लिया, लेकिन दिलचस्प यह है कि इसमें भी पूरा खेल दोनों पंतों ने ही खेला।
देहरादून जहां से सर्वाधिक ओवररेट की शिकायत आ रही है वहां के जिला आबकारी अधिकारी का तबादला नहीं किया गया यह मामला भी सवालों के घेरे में है। इस जिले में तैनात अधिकारी टीके पंत का विश्वसीनीय होने के साथ ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का भी खास बताया जाता है। प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद आबकारी विभाग में सबसे पहले इसी अधिकारी की तैनाती दून में की गयी थी, जो अपने आप में चौकाने वाला फैसला था। जबकि विभागीय आंकड़े और सूत्र यह बताते हैं कि अल्मोडा में तैनात यह अधिकारी अल्मोडा जिला चलाने में पूरी तरह नाकाम रहा।उसके बाद भी इसकी राजधानी में तैनाती चर्चाओं में है।
आश्चर्य और चर्चा यह है कि उस वक्त इस अधिकारी को देहरादून लाने के लिये तत्कालीन जिला आबकारी अधिकारी पवन कुमार सिंह को ज्वाइंट कमिश्नर टीके पंत के कोपभाजन के शिकार होने के चलते भ्रष्टाचार के आरोपों में निलंबित किया गया था। उस समय भ्रष्टाचार पर जीरों टालरेंस और कड़ी कार्यवाही का दावा करते हुए इस अधिकारी को निलंबित कर बलि का बकरा बना दिया गया था। वहीँ अब इस कहानी का दिलचस्प पहलू यह भी है कि जो पवन कुमार सिंह मंत्री और ज्वाइंट कमिश्नर टीके पंत की नजरों में सर्वाधिक भ्रष्ट था वही अब इतना प्रिय हो गया कि उसे नैनीताल का जिला आबकारी अधिकारी बना कर भेजा जा रहा है। चर्चा तो यह भी है कि पवन कुमार का नैनीताल स्थानान्तरण किसी साजिश के तहत किया गया है।ताकि देहरादून का बदला उससे नैनीताल में लिया जा सके। इसी तरह हरिद्वार में उस अधिकारी की तैनाती की गयी है जो लंबे समय तक सेवा से इसलिये गायब रहा कि वह पहाड में तैनाती ही नहीं चाहता था। इसके ऊपर भी एक वरिष्ठ कबीना मंत्री का हाथ बताया जा रहा है।
सोमवार सायं की गयी हर तैनाती के पीछे कोई न कोई खेल है, आबकारी के यह तबादले और महकमे में हो रहे फैसले अब कहीं न कहीं मुख्यमंत्री की छवि से भी जुड़ चुके हैँ और वह मुख्यमंत्री की स्वच्छ छवि को भी भी प्रदूषित कर रहे हैं। क्योंकि यह साफ है कि आबकारी में सिवाय खेल के कुछ और नहीं चल रहा है। चर्चा यह है कि मुख्यमंत्री की आड़ में दोनों पंत अपने हित साधने में लगे हैं।
चर्चा तो यह भी है कि विभाग में टीके पंत को इस कदर फ्री-हैंड को विभागीय मंत्री प्रकाश पंत की सुपुत्री के विवाह की व्यवस्थाओं से जोडकर भी देखा जा रहा है । सूत्रों के मुताबिक आने वाले कुछ दिनों में मंत्री की सुपुत्री का विवाह होना है, जिसकी पूरी व्यवस्था रामनगर में यही अधिकारी जुटाने में लगा है। रामनगर में इसी अधिकारी द्वारा रिजार्ट बुक कराये गए हैं जिनका पूरा भुगतान भी इसी अधिकारी द्वारा किया जाना है । अपने ख़ास मिलने वालों के बीच यह अधिकारी खुद इसकी पुष्टि कर चुका है।
बहरहाल टीके पंत ने पूरे महकमे को अपने शिकंजे में लिया हुआ है। यह भी चर्चा है कि इस अधिकारी के खिलाफ महकमे में शिकायतों को कोई सुनवाई नहीं होती। चर्चा तो यहाँ तक है कि विभाग से इस अफसर के कारनामों की तमाम फाइलें गायब हैं। विभाग के अधिकारी कर्मचारियों में पंत के रुसूख के चलते खौफ में हैं । ऐसा नहीं है कि बडे अफसरों और नेताओं को इसकी कारगुजारियों की जानकारी नहीं है, लेकिन जानबूझकर वरिष्ठ अधिकारियों को दरकिनार कर पंत को शह दी जा रही है। सरकार के जीरो टालरेंस को पंत की यह शह खुलेआम ठेंगा है।
वहीँ गौरतलब हो कि राज्यकर्मचारियों और अधिकारियों को नए ट्रान्सफर एक्ट के अनुसार कम से कम 10 साल पर्वतीय अंचलों में अपनी सेवाएँ देने का प्रावधान किया गया है । और दो या तीन महीने के भीतर इस एक्ट भी राज्य में नए वित्तीय वर्ष से अस्तितित्व में आ जाएगा। सबसे बड़ी बात तो यह है कि आबकारी विभाग द्वारा जो स्थानान्तरण किये जाने की बात सामने आ रही है इसके बाद विभाग के सामने कितने अधिकारी और कर्मचारी शेष रह जायेंगें जिनका स्थानांतरण विभाग एक्ट के आने के बाद करेगा।
इससे यह साफ़ है कि एक्ट के लागू होने से पहले सयुंक्त आयुक्त टी के पन्त ने अपने चहेतों को स्थानांतरण निति के घेरे से बाहर करते हुए इधर से उधर कर दिया है। यहाँ यह बात भी चर्चा का विषय बनी हुई है कि स्थानांतरित किये गए कितने अधिकारियां और कर्मचारियों ने अब तक पहाड़ में सेवाएँ दी हैं ? मिड सेसन में इतने ब्यापक स्तर पर किये जा रहे स्थानातरण से साफ़ है कि कहीं न कहीं कोई बड़ा खेल खेला गया है जिसकी भनक सूबे के मुख्य मंत्री से लेकर मुख्य सचिव तक को हो चुकी है। अब यह देखने वाली बात होगी कि सरकारी तंत्र के आगे एक अधिकारी भारी नज़र आता है या शासन तंत्र।
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