पलायन दर्द झेलता एक गांव जो कभी था गुलज़ार
ये कहानी है एशिया के सबसे बडे गांवों मे सुमार रहे उत्तराखंड के पौडी जनपद के सुमाडी गांव की। जहां कभी चौपालें सजती थी। पनघटों पर महिलाओं की चहचाहट व ठहाकों की आवाजे गुंजती थी लेकिन अब सब बदल गया है। किवाड़ों पर लगी कुन्डिया व छज्जों पर जमी झाड़ गांव से हुए पलायन का दर्द बयां करते हैं।
एशिया के बड़े गांवों में शुमार रहे ऐतिहासिक सुमाड़ी गांव भी पलायन की त्रासदी झेल रहा है। इस गांव ने देश को पंथ्या दादा जैसा देशभक्त, कई प्रशासनिक अधिकारी, निदेशक, बैंक मैनेजर, पत्रकार दिये हैं। ये बुद्धिजीवी तक भी अपने गांव को पलायन की मार से नहीं बचा पाये हैं। आलम यह है कि 600 परिवारों के इस गांव में अब महज 135 परिवार ही रह गये हैं। इस गांव में युवा ढूंढ़े नहीं मिलते, यहां महज बुजुर्ग और महिलाएं ही निवास कर रहे हैं। खंडहरों में बदल रहे आलीशान भवन और बड़े-बड़े मकानों में लगे ताले यहां पलायन के दर्द को बयां कर रहे हैं। श्रीनगर कस्बे से मात्र 19 किलोमीटर की दूरी पर बसे सुमाड़ी गांव में कदम-कदम पर बने बड़े-बड़े मकानों में ताले लटके हुए हैं। चौपालें सूनी तो पनघट खाली हैं। इस गांव में कभी चौपाल सजा करती थी। हर घर में कोई न कोई अफसर रहता था।
जिन पनघटों पर कभी महिलाओं की बातें व ठहाकों की आवाजे गुंजती थी, वे आज सूने -सूने हैं अब सब बदल गया है। घरों के दरवाजों पर लगी कुन्डिया व छज्जों पर जमी झाड़ गांव से हुए पलायन का दर्द बयां कर रहे हैं कि कोई तो आये इन सूने घरों को फिर से वही प्राण देने।
लेकिन अब गांव का मंजर ही बदल चुका है। इस गांव ने सात जिलाधिकारी, पांच कमिश्नर, 16 उपजिलाधिकारी, 50 से अधिक विभिन्न विभागों में निदेशक, कई बैंकों में मैनेजर व 20 से अधिक डॉक्टर दिये हैं। स्व. डॉ. राय साहब भोला दत्त काला, प्रख्यात पुरातत्वविद् पद्मश्री डॉ. सतीश चंद्र काला, प्रख्यात कमिश्नर कीर्ति राम काला, प्रसिद्ध संगीतज्ञ भीम दत्त काला, भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र मुम्बई के सीनियर रिसर्च ऑफिसर देवीप्रसाद काला, पूर्व वायु सेनाध्यक्ष वेद प्रकाश काला, आकाशवाणी के दो केन्द्र निदेशक कालिका प्रसाद (आकाशवाणी दिल्ली), रामकुमार काला (आकाशवाणी शिमला), पूर्व डिप्टी कलेक्टर उमाचरण काला (अब परिवार विदेश में), अमेरिका में बसे उद्योगपति देवी प्रसाद काला, मोहन काला, आईएएस अधिकारी सोहनलाल मुयाल, सुंदरलाल मुयाल, टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व प्रधान संपादक रहे स्व। श्यामाचरण काला, रीडर डाइजेस्ट के संपादक अरविंद काला सहित 22 से अधिक पत्रकार होने के बावजूद इनकी पीढ़ियों में सुमाड़ी की सुध लेने वाले बेहद कम है।
गांव मे रहने वाले लोग बताते हैं कि गांव अब भी विकास की राह ताक रहा है। हर छोटी-बड़ी समस्याओं के लिए लोगों को आंदोलनों का सहारा लेना पड़ रहा है। कमलेश काला कहते हैं कि गांव के अधिकांश खेत बंजर पड़ चुके हैं। एक खेत जोतने के लिए अन्य गांवों से बैलों की जोड़ी को किराये पर लेना पड़ता है। गांव में चार नौले (जलाशय) थे जिसमें से दो सूख चुके हैं। यहां आज भी प्राचीन स्थापत्य कला के प्रतिबिंम्ब स्वरूप शिव मंदिर व गौरा मंदिर देखने योग्य है। हालांकि सुमाड़ी गांव में लोग आज भी पौष माह में पंथ्या दादा व उनके साथ कुली-बेगार प्रथा के विरोध में अग्निकुंड में प्राणों की बलि देने वाले वीर शहीदों के बलिदान दिवस को हर वर्ष मनाते हैं, किन्तु इसके लिए भी कुछेक लोग ही गांव पहुंचते हैं।
ग्रामीण कहते हैं कि गांव में भूमि बंदोबस्त व चकबंदी होती तो आम अमरूद, माल्टा, खुमानी की बागवानी कर इस क्षेत्र को फल उत्पादक क्षेत्र बनाया जा सकता था। अब एक बार फिर से इस क्षेत्र को बसाने के लिए एनआईटी सुमाड़ी की स्थापना की कवायद जारी है लेकिन इसमें भी कई समस्याएं सामने आ रही हैं।