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लेडी सिंघम की हनक और तुनक मिज़ाज़ी का भी क्या कहना!

  • ”मुंशी” आजकल लेडी सिंघम से प्यार की बढ़ा रहा पींगे !
  • दोनों जिल्लेइलाही को गच्चा देकर कर रहे  मौज़ मस्ती

राजेन्द्र जोशी 

देहरादून : लेडी सिंघम की हनक और तुनक मिज़ाज़ी का भी क्या कहना कभी अपने ही कुर्सीधारी को मुख्यालय में बैठने के कमरे को लेकर सनक तो कभी कुर्सीधारी  की गाड़ी कैसे पोर्च में कैसे लग गयी इसको लेकर बवाल। लेडी सिंघम के व्यवहार से साफ़ झलकता है कि वह जनप्रतिनिधियों को अपनी पैर की जूती तक समझने लगी है। जबकि जनप्रतिनिधि हज़ारों प्रदेशवासियों का नेतृव करते हैं लेकिन लेडी सिंघम चुनिंदा कर्मचारियों का नेतृत्व करती है।  चर्चा तो यहाँ तक है लेडी सिंघम अपने और जिल्लेइलाही के दरबार के ”मुंशी” के दम पर कुलांचे मार रही है जबकि उसका पुराना इतिहास कुछ खास नहीं रहा है। 

मामला कुछ ही महीने पहले का है जब प्रदेश सरकार ने अपने बीच के एक जनप्रतिनिधि को लेडी सिंघम के संस्थान का कुर्सीधारी बनाया। लेडी सिंघम को यह कहां भाता कि उससे ऊपर कोई जनप्रतिनिधि आ जाए , लेडी सिंघम ने जनप्रतिनिधि को पहले तो अपने मुख्यालय में बैठने का कमरा देने में आना कानी की,मामला जब जिल्लेइलाही तक पहुंचा तो लेडी सिंघम को मजबूरी में जिल्लेइलाही के आदेश के बाद अपने एक प्रबंधक का कमरा खाली करवाकर कुर्सीधारी  को देना पड़ा।  जबकि इससे पहले के कुर्सीधारी लेडी सिंघम के संस्थान के उसी कमरे में बैठते आये हैं और पूर्व कुर्सीधारियाँ ने अपने कुर्सीधारी  को यथा तवज्जो भी दी थी। 

यहाँ मामला जिल्लेइलाही से भी जुड़ा हुआ है क्योंकि जिल्लेइलाही के दरबार का एक ”मुंशी” आजकल लेडी सिंघम से प्यार की पींगे बढ़ा रहा है। कभी बाइक से हेलमेट के भीतर अपना चेहरा छुपाये दोनों आस पास के वन्य अभयारण्य की सैर तो कभी ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले बंदरगाह की सैर पर दोनों जिल्लेइलाही को गच्चा देकर कई बार मौज़ मस्ती कर आये हैं।  एक कहावत है ना ”जब सैयां भये कोतवाल तो डर काहे का ” जिल्लेइलाही पर दरबार के ”मुंशी” का ऐसा जादू चढ़ा हुआ है कि वह उसकी हर बात को पत्त्थर की लकीर समझने लगे हैं।  जबकि इनसे पहले के जिल्लेइलाही की सल्तनत को डुबोने में इसी मुंशी का हाथ बताया जा रहा है। जबकि वे जिल्लेइलाही सल्तनत की नब्ज पकड़ने के माहिर थे लेकिन मुंशी ने उनको ऐसी घुट्टी पिलाई कि बेचारे जिल्लेइलाही चारों खाने चित्त हो गए। 

कहानी कुछ अटपटी सी है लेडी सिंघम की बात आज की ही है जब कुर्सीधारी की कार दफ्तर की  कार पार्किंग में लगी थी तो लेडी सिंघम की नज़रें कुर्सीधारी की कार पर गयी और उसका पारा सातवें आसमान तक जा पहुंचा। कुर्सीधारी की कार को वहां से हटवाने के लिए कौन कुर्सीधारी तक नहीं गया तो कुर्सीधारी भी मझां हुआ खिलाड़ी निकला  उसने अपने हमराह से कार को थोड़ा आगे सरकाने का हुक्म दिया लेकिन लेडी सिंघम को यह कहाँ मंजूर उसको तो अपनी हनक और तुनक मिजाजी जो दिखानी थी, कुर्सीधारी की कार को पूरी तरह से वहां से हटाने में ही उनकी नाक बची रहती सो उसने अपने सारे दरबारी  कुर्सीधारी के दफ्तर भेज डाले कि वह अपनी गाड़ी हटवाकर लेडी सिंघम की गाड़ी को वहां लगने दे लेकिन कुर्सीधारी भी पक्का केसरिया रंग से रंगा निकला उसने एक इंच भी आगे गाड़ी सरकाने से साफ़ मना करवा दिया , इसके बाद लेडी सिंघम ने अपने दफ्तर में जो बवाल काटा वह किसी से छिपा नहीं लेकिन उसे इस बात का पता चल गया कि आखिर जनप्रतिनिधि तो जनप्रतिनिधि होता है।  

 

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