UTTARAKHAND

चमोली त्रासदी : चटख धूप में नदी के बढ़ते-घटते जल स्तर ने बढ़ाई पेरशानी

आईटीबीपी, एनडीआरएफ,एसडीआरएफ, सेना सहित बीआरओ के जवानों ने दोबारा रेस्क्यू वर्क किया शुरू

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

देहरादून : उत्तराखंड के चमोली जिले में गुरुवार के एक बार फिर ऋषिगंगा में अचानक बढ़ते जलस्तर को देख रैंणी से लेकर तपोवन तक आपदा राहत में लग लोग और स्थानीय लोग दहशत में आ गए। देखते ही देखते पुलिस -प्रशासन हरकत में आ गया। दोपहर बाद पहले ऋषिगंगा और फिर 2.14 बजे तपोवन में बचाव दलों को काम रोक कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया गया। रैणी गांव के प्रधान भवान सिंह राणा के मुताबिक पहले इस तरह की घटनाएं कभी नहीं हुई। नदी का जलस्तर सामान्य तौर पर अधिक बारिश होने की स्थिति में ही बढ़ता था, इस कारण लोग खुद ही नदी तटों से दूर रहते थे।

राणा के मुताबिक स्थानीय लोग ग्लेशियर क्षेत्र में झील जमा होने की आशंका व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन ने अब तक इस दिशा में गंभीर अध्ययन नहीं किया है। दोपहर साढ़े तीन बजे तक नदी का जल स्तर में बढ़ोत्तरी देखने को मिला, जिस कारण बचाव अभियान भी रुका हुआ था। इसस पहले बुधवार को भी तपोवन क्षेत्र में हल्की बूंदा बांदी नजर आई थी।

लेकिन, रेस्क्यू अभियान से जुड़े कर्मियों ने कुछ देर बात राहत की सांस ली जब नदी का जल स्तर दोबारा सामान्य हो गया। नदी का जल स्तर कंट्रोल होने के बाद बचाव व राहत कार्य में जुटे आईटीबीपी, एनडीआरएफ,एसडीआरएफ, सेना सहित बीआरओ के जवानों ने दोबारा रेस्क्यू वर्क को शुरू किया। दल के कर्मी लगातार पांचवे दिन भी बचाव व राहत कार्य में कोई कमी नहीं छाेड़ी। लेकिन, टनल में अभी भी करीब 30-35 श्रमिकों के फंसा होने की सूचना है।

एनटीपीसी की सुरंग में फंसे 35 कर्मचारियों का सुराग लगाने भेजा ड्रोन फेल हो गया है। अब रेस्क्यू टीमें सुरंग के ऊपर से ड्रिलिंग कर पता लगाने की कोशिश करेंगी। तपोवन जल विद्युत परियोजना की जिस 400 मीटर लंबी सुरंग में बीते रविवार को जल प्रलय से 35 कर्मचारी फंस गए थे, अभी तक उनका पता नहीं चल पाया है। बचाव दल ने खोज और बचाव के लिए मंगलवार देर शाम सुरंग में ड्रोन भेजा, जो सुरंग के कुछ हिस्से तक ही जा पाया।

पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने बताया कि इस सुरंग में जमा गाद को निकालने के लिए चार दिन से मशीनें लगी हैं, लेकिन पूरी सुरंग गाद से भरी होने से अभियान बार-बार बाधित हो रहा है। अब परियोजना की दो सुरंगों के मुहाने पर ड्रिलिंग करने का फैसला लिया गया है। 400 मीटर लंबी इस सुंरग की ऊपरी सतह बहुत कठोर है। इसलिए ड्रिलिंग करना भी चुनौती से कम नहीं है। सुरंग के अंदर मलबा निकालने में जुटी मशीनों को भी तब कुछ देर मुश्किल का सामना करना पड़ा, जब लोहे की बड़ी-बड़ी छड़ें टनल के दोनों तरफ से उभर आईं।

devbhoomimedia

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