- सरकारी अस्पताल में नौकरी नहीं की तो एक करोड़ जुर्माना!
- बांड में पांच साल अनिवार्य नौकरी के अनुबंध के बावजूद डॉक्टरों को एनओसी ने खड़े किये सवाल
देहरादून : सरकार द्वारा सिर्फ 15 हजार फीस देकर बने 2004 से अब तक के सभी डॉक्टरों को अपनी योगदान आख्या प्रस्तुत करने के साथ बांड के अनुरूप प्रदेश के अस्पतालों में सेवाएं देने को कहा गया है। नोटिस के साथ ही सभी डॉक्टरों को उनके तैनातीस्थलों का भी अलॉटमेंट कर दिया गया है। 31 दिसंबर तक रिपोर्ट नहीं करने पर डॉक्टरों के विरुद्ध एकतरफा कार्रवाई करने की चेतावनी दी गई है। नये नियम के अनुसार अब संबंधित डॉक्टरों ने 31 दिसंबर तक तैनाती नहीं ली तो उन्हें प्रति डॉक्टर एक करोड़ रुपये सरकारी खाते में जमा कराने होंगे।
गौरतलब हो कि इन डॉक्टरों की पढ़ाई पर प्रदेश सरकार ने प्रति छात्र औसतन 25 लाख रुपये खर्चा उठाया। नोटिस पाने वाले डॉक्टरों में वर्ष 2004 से अब तक सरकारी मेडिकल कॉलेजों से कोर्स करने वाले डॉक्टर शामिल हैं। इनमें से 225 डॉक्टर श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के हैं, जबकि 558 हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज से पासआउट हुए हैं।
प्रदेश में डॉक्टरों की किल्लत खत्म करने के लिए राज्य सरकार ने वर्ष 2004 में सिर्फ 15 हजार रुपये सालाना शुल्क पर छात्रों को एमबीबीएस, एमएस, एमडी की पढ़ाई करवाने की योजना शुरू की थी। इसके बदले में संबंधित छात्र को महज पांच साल सरकारी अस्पताल में सेवा देनी थी, जिसका बांड भरना था। अधिकतर डॉक्टरों ने पढ़ाई के दौरान तो बांड भर लिया, लेकिन पासआउट होते ही सरकारी सेवा नहीं दी। इस बीव वर्ष 2013 से फीस बढ़कर 50 हजार रुपये सालाना हो चुकी है, जबकि सेवा अवधि घटाकर तीन साल की जा चुकी है।
डॉक्टर बनने वाले इन छात्रों के लिए वर्ष 2008 में बांड पर पांच साल सरकारी सेवा अनिवार्य थी। बांड तोड़ने पर 30 लाख रुपये जमा कराने होते थे। वर्ष 2013 में बांड के अनुसार तीन साल सेवा देने का नियम बना, लेकिन बांड तोड़ने पर एक करोड़ रुपये जमा कराने का प्रावधान है। नये नियम के अनुसार अब यदि संबंधित डॉक्टरों ने 31 दिसंबर तक तैनाती नहीं ली तो उन्हें प्रति डॉक्टर एक करोड़ रुपये सरकारी खाते में जमा कराने होंगे।
एमबीबीएस करने वाले डॉक्टरों के तैनाती नहीं लेने के पीछे स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की भी बड़ी लापरवाही रही है। दरअसल, कई डॉक्टर पासआउट होने के बाद तैनातीस्थल पर जिले के सीएमओ से एनओसी हासिल कर लेते हैं। कुछ निदेशालय से ही एनओसी ले आते हैं। इसके बाद ये डॉक्टर कहां हैं? क्या कर रहे हैं? कब लौटेंगे? जैसे सवालों के जवाब किसी अधिकारी के पास नहीं होते। इसके अलावा बांड में पांच साल अनिवार्य नौकरी के अनुबंध के बावजूद डॉक्टरों को एनओसी दिया जाना सवाल खड़े करता है।
मामले में निदेशक, चिकित्सा शिक्षा डॉ. आशुतोष सयाना का कहना है कि कुछ डॉक्टरों ने एनओसी ली है, लेकिन अधिकतर बिना बताए ड्यूटी से गायब हैं। सरकारी मदद से कोर्स करने के बाद इनके सेवाएं नहीं देने से कई पद ब्लॉक हो गए हैं, उन पर नयी नियुक्ति नहीं हो पा रही। ऐसे डॉक्टरों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। सभी को रिपोर्ट करने को कहा गया है।