रणनीति के “मास्टर” की राजनीति में एंट्री !
- आने वाले वक्त में भाजपा का पूरा दारोमदार मजबूत संगठन व चेहरों पर !
योगेश भट्ट
शौर्य डोभाल कोई आम शख्सियत नहीं, बल्कि सियासी गलियारों का एक खासा चर्चित नाम। यूं तो यह नाम मोदी टीम के ‘थिंक टैंक’ में शुमार होने के चलते चर्चाओं में है, लेकिन इन दिनों इस नाम से उत्तराखंड भाजपा में भी खासी खलबली है । अभी तक दिल्ली की सियासी ‘नर्सरी’ में संघ और भाजपा की छांव में पल रही इस ‘पौध’ को हाल ही में चुपके से उत्तराखंड में ‘रोप’ दिया गया है, कोई बड़ी बात नहीं कि अभी तक ‘कार्पोरेट लुक’ में नजर आने वाली यह शख्सियत आने वाले दिनों में पूरी तरह ‘ सियासी लुक’ में नजर आए ।
हालांकि शौर्य की ‘एंट्री’ के बाद यह बात हर जुबां पर है कि पौडी लोकसभा सीट पर खंडूरी के विकल्प के तौर पर शौर्य को तैयार किया जा रहा है । यह सही है कि शौर्य का उत्तराखंड और पौडी कनेक्शन है, मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का पुत्र होने के कारण उनके संपर्क और पृष्ठभूमि भी खासी मजबूत हैं । लेकिन इससे इतर अहम यह है कि शौर्य एक प्रगतिशील, बदलती सोच और बदलते नजरिये के वाहक है । राजनीति से उनका कोई सीधा वास्ता नहीं लेकिन रणनीति से उनका गहरा रिश्ता है। रणनीति के स्तर पर वह लगातार मुख्य धारा के लिये काम कर रहे हैं, उत्तराखंड उनके लिये हर लिहाज से छोटा फलक है।
निवेश, बैंकिंग, अवस्थापना, आर्थिक नीति, नेटवर्किंग , इवेंट, अंतर्राष्ट्रीय संपर्क उनके अभी तक प्रमुख विषय रहे हैं। जहां तक राजनीति में ‘एंट्री’ का सवाल है तो इसमें कोई दोराय नहीं कि शौर्य के लिये किसी भी राजनैतिक ओहदे को हासिल करना आज बड़ी बात नहीं। इंडिया फाउंडेशन नाम की जिस संस्था का वह संचालन कर रहे हैं, उसमें भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री राम माधव के साथ कई मौजूदा केंद्रीय मंत्री निदेशक हैं। अभी पिछले दिनों इंडिया फाउंडेशन को लेकर शौर्य चर्चा के साथ विवादों में भी रहे, इस दौरान कांग्रेस भी उन पर खासी हमलावार रही। ऐसे में यह कहा जाना कि सिर्फ लोकसभा में एंट्री के लिये शौर्य को उत्तराखंड की राजनीति में रोपा गया है, इसमें शंका है।कोई शक नहीं कि शौर्य की यह एंट्री सोची समझी रणनीति का हिस्सा है, जिसमें राज्य के लिये और राजनीति के लिये गहरा संदेश छिपा है ।
शौर्य का राज्य की राजनीति में होने का एक मतलब जो साफ है, वो है बदलती सोच और बदलता नजिरया। इसे कुछ इस तरह भी लिया जा सकता है कि शौर्य की एंट्री नेतृत्व की कमी से जूझ रहे राज्यों में भाजपा के केंद्रीय रणनीतिकारों का संभवत: एक प्रयोग है । यह सही है कि भाजपा का नेतृत्व राज्यों में खासकर उत्तराखंड में बदलती सोच और नजरिये के साथ कदमताल नहीं कर पा रहा है । दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि यहां भविष्य का प्रभावी नेतृत्व भी तैयार होता नजर नहीं आ रहा है। हाल यह है कि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हिमाचल में एक के बाद एक राज्यों में भाजपा की सरकारें बन जरूर रही हैं, लेकिन एक बडे ‘खालीपन’ के साथ ।
यह खालीपन है नेतृत्व का, राज्यों में पहली पांत के नेताओं की या तो मियाद पूरी हो चुकी है या फिर वह केंद्र में व्यस्त हो गए हैं। भाजपा में बड़े जनाधार वाले नेता तो अब बीते दिनों की बात हो चुके हैं, नेतृत्व की दूसरी पांत राज्यों में कहीं दूर दूर तक नजर नहीं आती, जो है भी वह इस कदर कमजोर है कि उसका होना भी नहीं होने के बराबर है। उत्तराखंड और हिमाचल तो इसके उदाहरण है, उत्तराखंड और हिमाचल जैसे राज्यों में तो संगठन के हालिया नेतृत्व पर भी बड़ा सवाल है।
उत्तराखंड में प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के चुनाव हारने के बाद हिमाचल में प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सिंह का चुनाव हारना इसका हालिया उदाहरण है। यह सही है कि अभी भाजपा के लिये ‘मोदी इफेक्ट’ सरकारें बनवाने में कामयाब हो रहा है, लेकिन इसमें भी शक नहीं कि ‘मोदी इम्पैक्ट’ अब ढलान की ओर है। एक सवाल यह तो खडा होने ही लगा है आखिर मोदी मोदी कब तक ? नतीजे सामने हैं उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की बंपर जीत के बाद गुजरात और हिमाचल की जीत में इसे साफ महसूस किया जा सकता है।
निसंदेह आने वाले वक्त में भाजपा का पूरा दारोमदार मजबूत संगठन व चेहरों पर होगा । नेतृत्व का यही सवाल भाजपा के लिये आने वाले समय की बड़ी चुनौती भी बनता जा रहा है। शौर्य की ‘एंट्री’ संभवत: इसी कड़ी में एक प्रयोग है । अब सवाल यह उठता है कि यह प्रयोग कामयाब होगा ? शौर्य उस खालीपन को भर पाएंगे जिसकी कमी एक आम कार्यकर्ता से लेकर हाईकमान तक महसूस कर रहा है । फिलवक्त शौर्य की काबिलियत पर कोई शक नहीं, लेकिन वह राजनेता के तौर पर युवाओं में भरोसा जमाने का ‘करिश्मा’ कर पाएंगे ।
शायद वह वाकिफ हों कि इस राज्य की सियासत कोई आसान नहीं, यहां की सियासत का ‘मिजाज’ कुछ अलग किस्म का है । यहां एक ही पल में सिर माथे पर बैठाया जाता है तो अगले ही पल धूल में भी मिला दिया जाता है। शौर्य इस ‘मिजाज’ के साथ कदम ताल कर पाएंगे । बहरहाल शौर्य की कामयाबी और नाकामी राजनीति की ‘पिच’ पर उनके प्रदर्शन से तय होगी, लेकिन इतना तय है कि उत्तराखण्ड भाजपा में बड़े बदलाव की तैयारी है । देखना यह होगा कि रणनीत’ का यह ‘मास्टर’ राजनीति में कितना कामयाब होता है, कैसी ‘शौर्यगाथा’ लिखता है ।