नौ राज्यों के सर्वे में हुआ खुलासा कि उत्तराखंड में नवजात शिशु मृत्यु दर सबसे ज्यादा

- उत्तराखंड में 1000 बच्चे जन्म लेते हैं तो 38 बच्चों की होती है मौत
देहरादून : सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के सर्वे में उत्तराखंड में नवजातों का मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। 9 राज्यों में हुए सर्वे की रिपोर्ट बहुत ही चौंकाने वाली मिली है इसके अनुसार देवभूमि उत्तराखंड में नवजात नौनिहालों के दम तोड़ने का सिलसिला तेजी से बढ़ रहा है। वहीँ सर्वे के अनुसार यूपी के गोरखपुर, बरेली, झारखंड के जमशेदपुर और राजस्थान में जुलाई से अगस्त के महीने में नवजातों की मौत ने कितनी मांओं की गोद सुनी कर दी थी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से किये गए एसआरएस के सर्वे के अनुसार उत्तराखंड में अगर साल भर में 1000 बच्चे जन्म लेते हैं तो 38 बच्चों की यहाँ मौत हो जाती है।
सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि नवजातों की मौत के मामले में उत्तराखंड राज्य 4 प्वाइंट आगे निकल गया है, जबकि बाकी कई राज्य जैसे असम, यूपी और मध्यप्रदेश में नवजातों की मौत की संख्या में कमी आई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से एसआरएस ने बिहार, असम, यूपी, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, राजस्थान राज्यों में ये सर्वे किया गया है। इन सभी राज्यों के आंकड़ों को एक साथ देखने के बाद यही खुलासा हुआ है कि उत्तराखंड में सबसे ज्यादा नवजातों की मौत हो रही है। वहीं, मध्यप्रदेश, यूपी और असम में काफी सुधार देखने को मिला रहा है।
साल 2015 के आंकड़ों के मुताबिक हर एक मिनट में भारत में 5 साल के नीचे की उम्र के दो बच्चों की मौत हो रही है। साल 2017 के 16 अगस्त को जारी इंडियास्पेंड के आंकड़ों के मुताबिक सही इलाज न मिलने के कारण बच्चों की मौत होती है। ज्यादातर मामले 5 साल के नीचे के बच्चों की आती है। 53 फीसदी बच्चों को नियोनेटल, 15 फीसद बच्चों को न्यूमोनिया, 12 फीसद बच्चों को डायरिया और 3 फीसद बच्चों को मिसल की वजह से अस्पताल में भर्ती कराया जाता है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से एसआरएस के सर्वे में मध्य प्रदेश में नवजातों के मौत का 50 से आंकड़ा 47 हो गया, यूपी में 46 से 43 और असम में 47 से 44 ओड़िशा में 46 से 44 और असम में भी बहुत नीचे गिर गया है। आईएमआर का आरोप है कि राज्य में डॉक्टरों की कमी है और अस्पतालों में काफी लापरवाही के मामले सामने आते हैं।वहीँ हरिद्वार और उत्तराखंड के बाकी छोटे जिलों में शिक्षा और स्वास्थ्य के विकास में काम नहीं हो रहा है।