भारत की नई शिक्षा नीति में भारत सरकार द्वारा कोशिश की जा रही है, कि भारत में ‘टी-सेप्ड’ लोगों की संख्या बढे़
भारत की नई शिक्षा नीति से 34 वर्ष बाद शिक्षा के क्षेत्र में कई सुधारों की जगी है उम्मीद
कमल किशोर डुकलान
भारत की नई शिक्षा नीति से यह सिद्ध होता है,कि यहां आने वाले समय में किसी भी व्यक्ति का सिर्फ एक योग्यता से काम नहीं चलेगा। जीविका की दौड़ में एक से ज्यादा कौशल रखने वाले युवाओं को आगे निकलने में सुविधा होगी। एक समय था,जब एक ही योग्यता से भी काम चल जाता था, एक ही ढंग के काम या रोजगार में लगकर लोग अपना गुजर-बसर ठीक-ठाक कर लेते थे। आज कॉरपोरेट की दुनिया में एक योग्यता वाले को ‘आई शेप्ड’(अंग्रेजी अक्षर आई) कहा जाता है, जबकि एकाधिक योग्यता वालों को ‘टी-सेप्ड’(अंग्रेजी अक्षर टी)। जाहिर है, कॉरपोरेट की दुनिया में ‘टी-सेप्ड’ लोगों को वरीयता मिल रही है। भारत की नई शिक्षा नीति में भारत सरकार द्वारा कोशिश की जा रही है, कि भारत में ‘टी-सेप्ड’ लोगों की संख्या बढे़।
भारत की नई शिक्षा नीति से 34 वर्ष बाद शिक्षा के क्षेत्र में कई ऐसे सुधारों की उम्मीद जगी है। इस नई शिक्षा नीति में देश की शिक्षा-व्यवस्था की तस्वीर बदलने के कई नए उपाय किए गए हैं, जैसे- तमाम उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए अब एक नियामक होगा। इससे उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को पहले से ज्यादा मजबूती मिलेगी। नई नीति में डिजिटल लर्निंग को तरजीह दी गई है, जिससे शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण होगा, बहु-विषयक शैक्षणिक नजरिए पर खास ध्यान दिया जाएगा, जिससे संस्थागत स्वायत्तता में वृद्धि होगी, नवाचार व रचनात्मकता को प्रोत्साहित किया जाएगा, शिक्षा में अनुभव आधारित गंभीर चिंतन को प्रेरित किया जा सकेगा, विशिष्ट शोध व अनुसंधान के लिए धनराशि जारी की जाएगी आदि-आदि।
देश की नई शिक्षा नीति विश्वामित्र एवं सान्दीपनी आश्रमों की गुरुकुल शिक्षा, नालंदा,तक्षशिला, वल्लभी और विक्रमशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों के गौरव का भी स्मरण किया गया है, जिनमें अनुसंधान और शिक्षण का जीवंत वातावरण हुआ करता था। ऐसी परंपरा को फिर से अपनाने की आवश्यकता है। आज विद्यार्थियों में ‘क्रॉस-स्किल’ यानी हर तरह के कौशल को विकसित करने के लिए बहु-विषयक दृष्टिकोण जरूरी हो चला है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अब उद्योग जगत में उन नौजवानों की ज्यादा मांग है, जो तमाम तरह की विधाओं में परांगत हैं। आज हम ऑटोमेशन प्रौद्योगिकी पर आधारित चौथी औद्योगिक क्रांति की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं,जो रोजगार के लिए अनिवार्य योग्यता में कई महत्वपूर्ण बदलाव लाएगा। भविष्य के कल-कारखाने ऑटोमेशन यानी स्वचालन पर काम करेंगे और रोबोटिक्स पर ज्यादा निर्भर होंगे। इसमें जाहिर तौर पर क्रॉस-स्किल वाले कर्मियों को ज्यादा तवज्जो मिलेगी। नई नीति एक ऐसे दूरदर्शी नजरिए की वकालत करती है, जिसमें शिक्षा कुशल कार्य-बल के साथ-साथ एक जागरूक और शिक्षित समाज के विकास का सपना पूरा कर सकेगी। इससे हम कई सामाजिक समस्याओं का उचित समाधान भी कर सकेंगे। यह वाकई एक बहुत अच्छा अवसर होगा,जब सभी स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय, एवं अन्य शिक्षण संस्थान अपने ‘विजन डॉक्यूमेंट’ को नई शिक्षा नीति के अनुसार तैयार करेंगे।
शिक्षा आर्थिक विकास के बुनियादी कारकों में एक मानी जाती है। कोई भी देश मानव पूंजी और ज्ञान की नींव मजबूत किए बिना आर्थिक विकास के मार्ग पर कभी नहीं बढ़ सकता। शिक्षा के द्वारा ही देश की कृषि-प्रधानता या अविकसित अर्थव्यवस्थाओं को दुनिया की सबसे अधिक प्रतिस्प्रद्धी व औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं में शुमार किया है। दक्षिण कोरिया का उदाहरण हम सबके सामने है, जहां के नीति-नियंताओं ने शिक्षा की गुणवत्ता पर खासा ध्यान दिया और जल्दी ही अपने देश को उस मुकाम पर ले गया, जहां दूसरे राष्ट्र उनकी तरक्की पर रीश कर सकते हैं। नई शिक्षा नीति छात्र-छात्राओं में सामाजिक व नैतिक मूल्यों के विकास पर भी जोर देती है। सामाजिक और नैतिक मूल्यों के गुण विद्यार्थियों के समग्र विकास के लिए बहुत जरूरी हैं। मौजूदा परीक्षा व कोचिंग संस्कृति को बदलने पर भी नई नीति बल देती है और इसकी जगह हकीकत में समस्याओं से रूबरू होकर समझ विकसित करने और नए अवसर खोजने के लिए अधिक लचीली व्यवस्था अपनाने की वकालत करती है। इससे छात्र-छात्राओं का सर्वांगीण विकास हो सकेगा। इसी कारण अब परीक्षा पैटर्न को इस रूप में विकसित किया जाएगा कि परीक्षार्थियों की रटने की क्षमता की बजाय उनकी बुनियादी क्षमताओं का मूल्यांकन करना होगा। नई शिक्षा नीति पठन-पाठन में भी लचीलेपन को बढ़ावा देने की बात करती है, जिसमें छात्र-छात्राओं के पास पढाई के लिए अनेक विषयों के बेहतर विकल्प होंगे। नई शिक्षा नीति मौजूदा शिक्षा-व्यवस्था की महत्वपूर्ण समस्याओं की भी पड़ताल करती है। आज हमारे सामने तमाम तरह की दिक्कतें हैं। जैसे, हमारा शिक्षा-तंत्र कई हिस्सों में बंटा हुआ है, सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित इलाकों में शिक्षा की पहुंच सीमित है, शिक्षकों की कमी है, संस्थागत स्वायत्तता सीमित है, और तमाम विषयों में अनुसंधान के मद मेंफंडिंग की कमी है। नई नीति में शोधकर्ताओं के लिए प्रतिस्पद्र्धी व योग्यता-आधारित अनुसंधान के लिए फंड की व्यवस्था करते हुए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की बात कही गई है। इससे शोध की संस्कृति को बढ़ावा मिल सकेगा।
पिछले सात दशकों में देश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रभावशाली तरक्की हुई है। आज केंद्रीय विश्वविद्यालय, राज्य विश्वविद्यालय, निजी विश्वविद्यालय, डीम्ड विश्वविद्यालय जैसे तमाम उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या कई गुना बढ़ गई है। इन वर्षों में संबद्ध कॉलेज भी कई गुना ज्यादा खोले गए हैं। फिर भी, सच यही है कि उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या में वृद्धि के मुताबिक शिक्षा की गुणवत्ता में विकास नहीं हुआ है। गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। नई शिक्षा नीति से प्रबंधन शिक्षा को भी बल मिलने की उम्मीद है। छात्र जब पहले की तुलना में ज्यादा विविध विषयों में पारंगत होकर प्रबंधन की पढ़ाई करने आएंगे, तो खुद शिक्षा संस्थानों व देश को बहुत लाभ होगा। उम्मीद है, नई नीति से भारतीय शिक्षा-व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव आ सकेगा और हमारे संस्थान दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में शुमार होंगे। नई नीति का लक्ष्य भारत की विद्यालयी शिक्षा एवं उच्च शिक्षा प्रणाली में इस तरह से सुधार करना होगा जिससे भारत दुनिया में ज्ञान का ‘सुपरपॉवर कहलाए।