देहरादून : पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता के भाजपा में जाने को लेकर बयानबाजी शुरू हो गई है। एनडी के भतीजे मनीषी तिवारी ने कहा कि एनडी को उनके आस-पास के कुछ लोग गुमराह करके भाजपा में ले गए हैं।इसके बाद भाजपा को यह बयांन जारी करना पड़ा कि एन.डी. तिवारी ने भाजपा ज्वाइन नहीं की बल्कि उन्होंने पार्टी को समर्थन दिया है।
गौरतलब हो कि पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता एनडी तिवारी के भाजपा ज्वाइन करने को लेकर भाजपा ने तमाम विरोध के बाद देर सायं संशोधित बयान जारी किया है। इसमें एनडी के भाजपा ज्वाइन करने की खबरों पर सफाई दी गई है। उत्तराखंड में पार्टी के मीडिया सेल द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि पूर्व मुख्यमंत्री एनडी के बेटे रोहित शेखर ने भारतीय जनता पार्टी के साथ आए हैं। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री ने भाजपा को समर्थन दिया है। एनडी के अमित शाह से मुलाकात के बात ऐसी खबरें आई थीं जिसमें कहा गया था कि एनडी ने बेटे रोहित संग भाजपा ज्वाइन कर ली है।
गौरतलब है कि बुधवार को दोपहर साढ़े 12 बजे नारायण दत्त तिवारी, पत्नी उज्जवला और बेटे रोहित शेखर संग अमित शाह के घर पहुंचे थे। जहां उनके बेटे रोहित शेखर ने भाजपा की सदस्यता ली। वहीं भाजपा ज्वाइन करने के बाद एनडी तिवारी के बेटे रोहित शेखर ने कांग्रेस पर उनके पिता की उपेक्षा का आरोप लगाया। रोहित ने कहा कि ‘आपने कभी देखा जब कांग्रेस ने मेरे पिता को इज्जत दी हो। वे पूरी तरह भुला दिए गए थे।’
पूर्व मुख्यमंत्री एन.डी.तिवारी भाजपाई हुए बेटे रोहित के साथ
देहरादून । उम्र के जिस पड़ाव में आमतौर पर नेता राजनीति से संन्यास ले चुके होते हैं, यूपी और उत्तराखंड के पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी ने नई पारी की शुरुआत की है। जीवन के नौ दशक पूरे कर चुके कांग्रेस नेता एन.डी. तिवारी अपने बेटे रोहित शेखर के साथ बीजेपी में शामिल हो गए हैं। दोनों को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अपने आवास पर पार्टी की सदस्यता दिलाई। बताया जा रहा है कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में टिकट के लिए यह फैसला किया गया है। चर्चा है कि रोहित हल्द्वानी सीट से उम्मीदवार हो सकते हैं।
दरअसल, एन.डी. अपने पुत्र रोहित शेखर को राजनीति में स्थापित करने को प्रयासरत थे। यूपी में अखिलेश यादव ने उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दे रखा था, लेकिन एनडी जैसे अनुभवी राजनेता को पता है कि राजनीति की बुनियाद उस वक्त तक मजबूत नहीं होती, जब तक जनता के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित न हो जाया जाए।
कुछ ऐसा है नारायण दत्त तिवारी का व्यक्तिगत जीवन
नारायण दत्त तिवारी का जन्म 1925 में नैनीताल जिले के बलूती गांव में हुआ। तिवारी के पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे। नारायण दत्त तिवारी शुरुआती शिक्षा हल्द्वानी, बरेली और नैनीताल में हुई। तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में एमए किया। उन्होंने एमए की परीक्षा में विश्वविद्याल में टाप किया था। बाद में उन्होंने इसी विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की।
1942 में वह ब्रिटिश सरकार की साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ नारे वाले पोस्टर और पंपलेट छापने और उसमें सहयोग के आरोप में पकड़े गए। उन्हें गिरफ्रतार कर नैनीताल जेल में डाल दिया गया। 15 महीने की जेल काटने के बाद वह 1944 में आजाद हुआ।
1947 में आजादी के साल ही वह इस विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। यह उनके सियासी जीवन की पहली सीढ़ी थी। आजादी के बाद 1950 में उत्तर प्रदेश के गठन और 1951-52 में प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में तिवारी ने नैनीताल (उत्तर) सीट से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर हिस्सा लिया। कांग्रेस की हवा के बावजूद वे चुनाव जीत गए और पहली विधानसभा के सदस्य के तौर पर सदन में पहुंच गए।
1954 में एनडी तिवारी का विवाह सुशीला सनवाल से हुआ। वर्ष 1993 में उनके पत्नी का निधन हो गया। वर्ष 2014 में एनडी ने उज्ज्वला शर्मा से किया। कांग्रेस के साथ तिवारी का रिश्ता 1963 से शुरू हुआ। 1965 में वह कांग्रेस के टिकट पर काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और पहली बार मंत्रिपरिषद में उन्हें जगह मिली। कांग्रेस के साथ उनकी पारी कई साल चली।
1968 में जवाहरलाल नेहरू युवा केंद्र की स्थापना के पीछे उनका बड़ा योगदान था। 1969 से 1971 तक वे कांग्रेस की युवा संगठन के अध्यक्ष रहे। एक जनवरी 1976 को वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। यह कार्यकाल बेहद संक्षिप्त था। 1977 के जयप्रकाश आंदोलन की वजह से 30 अप्रैल को उनकी सरकार को इस्तीफा देना पड़ा।
तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वह अकेले राजनेता हैं जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद वे उत्तरांचल के भी मुख्यमंत्री बने। तिवारी आंध्रप्रदेश के राज्यपाल बनाए गए लेकिन यहां उनका कार्यकाल बेहद विवादास्पद रहा।