- ”नटवरलाल” के महंगे शौक के आगे टाटा-बिरला भी फेल!
- अब वे फुलझड़ियां अब वहां ”कैटवॉक” करती नज़र नहीं आती!
राजेंद्र जोशी
देहरादून : उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी देहरादून के एक पॉश इलाके में राम रहीम सी गुफ़ा, जो कभी कंडोम्स से नालियां चोक होने के कारण सुर्ख़ियों में तो कभी एक ऐसे ”नटवरलाल” ‘के कारण चर्चाओं में रहती जिसका इंतज़ाम आला कमान उठाता रहा है। लेकिन ”नटवरलाल” के महंगे शौक के आगे टाटा-बिरला भी फेल। हाथ में दस लाख से ज्यादा कीमत की ख्यातिप्राप्त कंपनी की महंगी घड़ी और महंगा चश्मा। दिन में दो-दो और तीन-तीन बार बदलता क्लफ लगा हुआ महंगा लेनिन का कुर्ता-पजामा, पैरों में महंगे जूते और यहाँ तक दुनिया के सबसे महंगे इनर वियर। हाथ में एप्पल जैसे महंगे फ़ोन वह भी एक नहीं तीन-तीन। यह ठाट -बाट रहे थे देश-दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के एक ”नटवरलाल” के। यहाँ ”नटवरलाल” की एक राम रहीम जैसी गुफा थी जिसके द्वार पर लिखा था ”जब दरवाजा अंदर से बंद हो तो बार-बार खटखटाए नहीं ” यानि ”नटवरलाल” जी भीतर व्यस्त……
”नटवरलाल” के शौक भी निराले कभी अवधी और इंद्रप्रस्थ वाली शाम का शौक तो कभी रामपुरी नवाबों वाला शौक और शाम ढलते ही महंगी शराब और शबाब की तलब लगने लगती थी ”नटवरलाल” को। तो ”नटवरलाल” की सेवा में मौजूद उसके पिछलग्गू गोरे -काले और हैंडसम चेले -चपाटे और फुलझड़ियों की फ़ौज वो अलग। ”नटवरलाल” के लिए सूबे के हर शहर में फुलझड़ियों का इंतज़ाम का जिम्मा ”नटवरलाल” के चेलों का होता था,यह सुविधा पहाड़ में तो उपलब्ध नहीं होती थी तो ”नटवरलाल” के कार्यकाल में ज्यादातर दौरे तराई के इलाकों के महंगे होटलों और गेस्ट हॉउसों में हुए हैं। ”नटवरलाल” की हर रात रंगीन और दिन खुशनुमा इन्ही फुलझड़ियों के दीदार से शुरू और ख़त्म होता रहा।
”नटवरलाल” ने अपनी सल्तनत को जैसा चाहा वैसा चलाया, काम करने वाले और निष्ठावान सैनिकों को किनारे कर चाटुकार और अपने जैसे इच्छाधारियों को सल्तनत की कुर्सियों की बंदरबांट की। सल्तनत में बीते एक दो साल से ”नटवरलाल” के आगे पीछे घूमने वाली फुलझड़ियों और पटाखों को अहमियत दिया और सल्तनत के महत्वपूर्ण मुकामों पर स्थापित किया। सुना तो यह भी जा रहा है कि ”नटवरलाल” दूसरे देश से आये बजीरों को अपने सल्तनत की हूर परियों और फुलझड़ियों को उनकी अदबी में पेश किया करते थी जिससे वे बजीर उनके काफी ख़ास ही नहीं बल्कि दुःख -सुख के साथी बन गए और कुर्सी जाते समय उनका ऐसा साथ दिया कि सल्तनतवासियों को इस बात का अहसास नहीं होने दिया कि ”नटवरलाल” की कुर्सी किसी फुलझड़ी पर आग लगाने के चलते गयी।
इस देश में राम रहीम, आशाराम बापू , रामपाल और भी ना जाने कितने ऐसे नाम हैं जिनको फुलझड़ियों पर आग लगाने के चलते शोहरत से हाथ तो धोना ही नहीं पड़ा बल्कि साथ ही ये लोग बीते कई सालों से जेल की हवा भी खा रहे हैं। यहाँ के ”नटवरलाल” के साथ भी कमोवेश यही हुआ उसके साम्राज्य के ख़त्म होने कारण भी फुलझड़ियां ही बनी। लेकिन अब साम्राज्य ख़त्म होने के बाद सबसे बड़ा सवाल यह आ खड़ा हो गया है कि ”नटवरलाल” की इन फुलझड़ियों का क्या होगा ? जिनको महंगी कारों और महंगे मोबाइल फोनों का शौक लगा गए ”नटवरलाल”। ”नटवरलाल” के जाते ही उसके साम्राज्य के वे सब गोरे -काले और तमाम फुलझड़ियां अब वहां ”कैटवॉक” करती नज़र नहीं आती जहाँ सल्तनत के बजीर तक को जाने के लिए कई बार सोचना पड़ता था।