LITERATURE

नरेंद्र की कविता यानी पहाडों को करीब से देखना

वेद विलास उनियाल 

narendra-kathait1अगर आप पहाड़ के हिलांस, घुघुती, बुरांश , घर की तिवारी, काफल, चौफला नृत्य और ऊंचे देवदारों के वृक्ष से समरस होते हैं उन्हें अपने करीब पाते हैं तो आप नरेंद्र कठैत और उनकी कविता से दूर नहीं हो सकते। नरेंद्र कठैत को अपने बीच पाना यानी पहाड को करीब से महसूस करना है।

वो धारा के कवि है वो परंपरा के कवि है वो अहसास कराते हैं हमारे मूल्यों का , हमारे अतीत का। वो हमको जोड़ते हैं एक सुंदर ताने बाने से। शायद पहाड के कविता और गीत के सबसे सशक्त हस्ताक्षरों में एक। कभी मंच उद्घोषक सुरू भाई ने उनकी पाणी, डाले की विपदा, तबारी अबारी जैसी रचनाओं की ओर ध्यान खींचा था। उनके साहित्य की ऊंंचाई हिंदी में च्ंद्र कुंवर बर्तवाल के समकक्ष ले जाती है। लोकभाषा मे उन्होंने जो रचा , वो इतना सुंदर रचा कि उत्तराखंड का कोई भी कवि सम्मेलन उनकी अनुपस्थिति के बिना अधूरा कहा जाएगा। और जिस अच्छे कवि सम्मेलन में आने से वह अरुचि दिखाएं वह उनकी ओर से रचनात्मक मंचों के प्रति बेरुखी कही जाएगी।

पौडी शहर की सुंदरता में उसका प्राकृतिक सौंदर्य ही नहीं देवो के मंदिर ही नहीं, वहां नरेंद्र सिंह नेगी के गीत भी है, वहां की परंपराओं सामाजिक ताने बाने में गढोली और पौंडी गांव भी हैं। थोडी दूर पर खिर्सू भी। वहां की रचनात्मकता में व्योमेशजी का लेखन भी है। बाबू कुंवर , मन्ना तारी और गोरी शंकर जी की कला भी है, स्व रावतजी का संगीत भी है और नरेंद्र कठैत की सुंदर कविताएं भी हैं। खुगशाल गणि का मंचो का कुशल संचालन भी है। और भी बहुत कुछ संजोने वाला है। वनगढस्यू में 1966 में जन्में नरेंद्र कठैतजी ने साहित्य की हर विधा पर लिखा। उनके गद्य भी सराहे गए। लेकिन जब वह लोकभाषा में कविता लिखते हैं तो समूचे पहाड की अनुभूति उसमें दिखती है। पहाड के हर पहलू को वे छूते हैं।

पानी की रचना में वह भगीरथ के बहाने ईष्या द्वेष लालसा पर मानवीय प्रवृति पर लिखते हैं। युनकी रचनाओं को देखते चलें तो – हमुुनु तेल देखी और तेल की धार, गंगा मिली त गंगा और जमुना मिली न जमुना दास . विचरु रुआ सदनी कमजोर रांद, तेल वै जनि चांद वू वैकी करवट मां ऐ जांद, या फिर ,, भैजी तुम परदेशी अर मू देसी ह्वैकी भी पहाडी ह्वै ग्यों, पर मी चाणु छौ जरा सी हथ फैलौणे जगा, ढुंगू सी बम्यू छों मी आज अपणा मुल्क छोडिकी। एक पूरा रचना संसार है नरेंद्रजी का। जो लोग साहित्य लोकभाषा, लोक जीवन की बातें मंचों पर करते हैं उन्हें इस साहित्यकार के रचनासंसार से जरूर गुजरना चाहिए। इनकी रचनाओं से गुजरना लोक भाषा की ताकत और सामर्थ्य को महसूस करना है। कोई भी समाज अपने को समर्थ मानेगा अगर वहां नरेंद्र कठैत जैसा कवि मौजूद है। उनकी रचनात्मकता में शब्द थोडे कठिन जरूर लगते हैं लेकिन एक बार समझ में आने पर वह अपना गहरा प्रभाव छोडतै हैं। अभी वे कवि मंचो पर सुने जाए यही बेहतर अनुभूति होगी।

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