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त्याग,समर्पण,संगठन कौशल के आदर्श थे नानाजी देशमुख

नाना जी ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान अपने त्याग, निष्ठा,समर्पण और संगठन कौशल की आदर्श मिसालें की पेश 

कमल किशोर डुकलान 
स्वतंत्रता के बाद भारतीय राजनीति में उन लोगों ने बड़ी शिरकत की, जिन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान अपने त्याग, निष्ठा,समर्पण और संगठन कौशल की आदर्श मिसालें पेश की। परन्तु कालान्तर में जैसे-जैसे इस पीढ़ी के लोग कम होते चले गए सार्वजनिक जीवन में भी स्फीति का दौर गहराता गया। इस लिहाज से हाल के दशकों में हर स्तर पर चारित्रिक स्फीति के बीच जिस व्यक्ति का जिक्र समाज सेवा और सार्वजनिक जीवन में शुचिता के उदाहरण के तौर पर बार-बार याद किया जाता है, उसमें चंडिकादास अमृतराव देशमुख (नानाजी देशमुख) का नाम सर्वोपरि है।
अक्सर देखा गया है कि राजनीति के शिखर पर पहुंचकर एक झटके से सब छोड़ देना किसी भी राजनेता के लिए कठिन होता है। आजाद भारत के इतिहास में इस प्रकार के उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं।
राष्ट्रवादी विचारक और राजनेता चंडिकादास अमृतराव देशमुख (नानाजी देशमुख) को समाज के पुनर्निर्माण के लिए जाना जाता है।उनका कहना था कि ‘मैं अपने लिए नहीं, अपनों के लिए हूं’, इस सूत्र के चलते महाराष्ट्र के इस समाजसेवी ने यूपी और मध्यप्रदेश के लगभग 500 गांवों की तस्वीर बदल दी। अगर यदि वे न होते तो शायद आज वो गांव विकास से कोसों दूर होते। वे कहते थे कि 60 साल की उम्र के बाद राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए।
चार दशक पहले नानाजी देशमुख ऐसा ही दुस्साहस करके गांवों के समग्र विकास का मॉडल खड़ा करने के लिए निकल पड़े थे। सब वर्गों और विचारधारा के लोगों के बीच अजातशत्रु बनकर भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट को अपनी कर्मभूमि बनाया।नानाजी ने पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानववाद दर्शन को धरातल पर उतारने का जो कठिनतम काम करने का बीड़ा उठाया वह उत्तर प्रदेश के गोंडा से शुरू होकर इस विकास यात्रा चित्रकूट के बहुआयामी ग्रामोदय प्रकल्प चित्रकूट में पूर्णाहुति प्रकल्प से हुई।
उनका मानना था कि जब भगवान श्री राम अपने वनवास काल के प्रवास के दौरान चित्रकूट में आदिवासियों तथा दलितों के उत्थान का कार्य कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं कर सकते। बचपन से किशोरावस्था के बीच उनके मन में भारत के गांवों की दुर्दशा ने नानाजी देशमुख के मन में गहरी छाप छोड़ी इसलिए वे गांवों के विकास और लोगों के उत्थान के लिए चिंतित रहते थे।
अपनी इस सैद्धांतिक टेक पर उन्होंने खुद भी अमल किया। राजनीतिक जीवन से संन्यास के बाद वे आजीवन सामाजिक कार्य करते रहे। मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित नानाजी देशमुख का जीवन सार्वजनिक जीवन में शुचिता के साथ ही समाज सेवा के प्रति अखंड प्रतिबद्धता के लिहाज से हम सबके लिए प्रेरक आदर्श है।

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