130 करोड़ की आबादी के देश की जनता का 21 दिनों तक घर के अंदर ही रहना ऐतिहासिक घटना
जानबूझकर किसी साज़िश के तहत देश में कोरोना बांटने का घिनौना प्रयास तो नहीं !
हरीश सती
कोरोना के विश्वव्यापी संकट के विरुद्ध भारत बड़े संयम,संकल्प और साहस के साथ डटा रहा है । इस लॉकडाउन ने अब तक भारत के लोकतंत्र की सुंदरता को प्रकट कर दिया है। 130 करोड़ की आबादी के विकासशील देश की जनता का अपने घरों में 21 दिनों तक घर के अंदर ही रहना ऐतिहासिक घटना है। लॉकडाउन के इन दिनों ने बताया है की भारत की जनता देश के ऊपर आये संकट से जूझने में कितनी तत्पर है और पूरी संभावनाएं बन रही थी कि भारत के लोगों के संयम, संकल्प और साहस से 21 दिन के बाद भारत कोरोना के संकट से मुक्त होकर खुली हवा में सांस ले सकेगा।
वैसे इस समय लोकडाउन को शिथिल करने वाला और उसकी अवमानना करने वाला कोई भी प्रयास देश के करोड़ो लोगों के जीवन से खेलने का आपराधिक कृत्य ही है। क्योंकि यह युद्ध एक ऐसे छिपे शत्रु से है जो सबके लिए एक समान मृत्यु बांटने पर अड़ा है। जिसके लिए किसी भी तरह का मनुष्य एक समान है। लेकिन अफसोस सारे विश्व में सिर्फ भारत ऐसे में लोग हैं जिनके बारे में ये कहा जाय कि इनके दिमागों में जहालत सारी सीमाएं पार चुकी है या ये जानबूझकर किसी साज़िश के तहत देश में कोरोना बांटने पर आमादा है। क्योंकि देश में सामाजिक दूरी की नीरव शांति के बीच लगातार देश की मस्जिदों में पहले तो सामूहिक नमाज अता करने की जिद के दृश्य और अब मस्जिदों में छुपे हुए लोगों के दृश्य लोगों के लिए अबूझ पहेली बन गए है।
कुछ लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि जब विश्व के सारे मुस्लिम देशों में तबलीग, नमाज या किसी भी प्रकार का सामूहिक एकत्रीकरण प्रतिबंधित है और मक्का जैसे मुस्लिम स्थल बन्द कर दिए गए हैं तो भारत में ही मस्जिद में सामूहिक नमाज की जिद क्यों मची हुई है? क्यों भारत की मस्जिदों में जहां- तहाँ लाकडाउन के बावजूद लोग नमाज पढ़ने पर उतारू हैं और वहां ठहरे हुए लोगों को छुपाया जा रहा है। बिहार के मधुबनी के अधारराठी जैसे इलाकों की मस्जिदों में छुपे लोगों को बाहर निकलने की कोशिश के दौरान हुए पथराव में कई पुलिस कर्मी घायल हो गए। ऐसी पत्थरबाजी अन्य स्थानों पर भी हुई है। जम्मू के नरवाल में 10 रोहिंग्यों की धरपकड़ हुई जो दिल्ली के मरकज़ से 18 मार्च से आये थे। और अपनी पहचान छुपा कर यहाँ रह रहे थे। इनमें से पाँच कोरोना पॉजिटिव भी मिले। देश के कई बड़े शहरों में कुछ सम्प्रदाय विशेष के इलाकों में बाजार बंद करने में प्रशासन को मशक्कत करनी पड़ी। कई जगह तो लॉक डाउन के बाद भी बाजार खुलता रहा।
दिल्ली का मरकज़ आज सुर्खियों में है। सारे देश को इसने अकेले इतने कोरोना बांट दिए कि इस पर शक होना लाजिमी है। दिल्ली पुलिस की चेतावनी के बावजूद मरकज़ कोरोना बम तैयार करने में लगा रहा। स्थिति की गंभीरता को देख NSA अजित डोभाल ने 28 मार्च की रात को आपरेशन मरकज़ की शुरुआत की ताकि फिलहाल सहज़ तरीके से समाधान निकाला जाय। मरकज़ के मुखिया “साद” देश की राजधानी में रहकर जो सीख अपने वीडिओज़ में देते दिखाई दिए, उसने मरकज़ को किसी साज़िश के तहत प्रयोग करने की आशंकाओं को बल दिया है।
केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी ने इन्हें कोरोना तालिबानी कहा । शिया वफ्फ बोर्ड के चैयरमेन पहले ही इन्हें जानबूझकर कोरोना फैलाने का अपराधी बता चुके हैं। इन कट्टरपंथी आत्मघाती समूहों ने, जिन्होंने पहले CAA के नाम पर देश भर में संविधान की दुहाई दी ।और सुप्रीम कोर्ट का प्रतिनिधिमंडल भी जिनकी चालाकी और शरारत के सामने बेबस हो गया।एक बिना नेतृत्व और बिना प्रतिनिमण्डल का अजीबोगरीब धरना महीनों तक दिल्ली की सड़कों को जाम किये रहा। लेकिन अब कोरोना संकट के मामले में कौन सा संविधान आड़े आ रहा है? जाहिर है इन्हें अपने मज़हबी जुनून के सामने भारत के हितों की कोई प्राथमिकता नहीं हैं। इन घटनाओं से तो इस प्रतीत होता है कि ये भारत का घोर अहित चाहते हैं। आश्चर्य है कि मरकज़ का मुखिया “साद” तथाकथित रूप से मोबाइल फ़ोन का ही प्रयोग नहीं करता है। ये तो असामान्य तथ्य है।
मरकज़ में आने जाने वालों पर निगरानी रखने के लिए निज़ामुद्दीन पोलिस स्टेशन की एल आई यू इकाई एक रजिस्टर रखती है। जिसमें उनकी आवाजाही अंकित की जाती है। अंदमान घटना के बाद मरकज़ का कोरोना लिंक सामने आने के बाद पुलिस ने मरकज़ के जिम्मेदार लोगों को बुलाकर समझाया। यहां तक कि दिल्ली के राजनैतिक की नुख्ताचीनी से बचने के लिए थाने में बुलाये गए मरकज़ के प्रतिनिधियों को बाकायदा वीडियो रिकॉर्डिंग कर सख्त चेतावनी तक दी। क्योकि मरकज़ का मामला सामने आने पर यह तू तू मैं मैं शुरू हो गयी थी कि निज़ामुद्दीन थाने की पुलिस क्या कर रही थी? वैसे भी दिल्ली पुलिस को इतना हतोत्साहित कर दिया गया है कि उसे यही समझ नहीं आता कि कहाँ जाना है और कहां नहीं।
हम JNU और जामिया प्रकरण में देख चुके हैं कि यदि पुलिस अंदर घुसती है तो शोर मचता है कि क्यों घुसी और नहीं घुसती है तो तब कहा जाता है क्यों नहीं घुसी? मरकज़ जिस तरह देश के NSA ने मरकज़ जाकर पहल की तो उनसे पहले क्या दिल्ली में कोई और जिम्मेदार व्यक्ति नहीं था, जो मरकज़ को अपनी भाषा में समझाने पा प्रयास करता। NSA को भेजने क्या यह सन्देश नहीँ जाता कि मरकज़ में जिस तरह की सीख दी जाती है ,उससे वहां ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसी स्थिति उत्पन्न होने की भी संभावना थी। जाहिर है मामला इतना सीधा नहीं है। इस तरह की स्थितियों क्यो बन रहीं हैं। इस पर केरल के राज्यपाल माoआरिफ मोहम्मद खां ने इंडिया टीवी में दिए गए साक्षात्कार में कहा कि 42 वें संविधान संशोधन के बाद आये धर्मनिरपेक्ष यानि सेक्युलर शब्द ने वर्ग विशेष को विशेष स्थिति का बोध करा दिया है।
यद्यपि सरकार ने मरकज़ जैसी घटनाओं पर सख्त रुख अपनाया है लेकिन यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि भली भाँति जानते हुए भी देश में कोरोना का विष बांटने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पीड़ित न मानकर प्रत्येक व्यक्ति पर सख्त आपराधिक मुकदमे दर्ज़ करने चाहिए। जो इस समय के अभूतपूर्व विश्वव्यापी और देशव्यापी संकट के समय “साद” की शिक्षाओं को अमल में लाना चाह रहे थे। अपने जहालती जुनून को राष्ट्र की अस्मिता की कीमत पर, प्राथमिकता पर रखने का दुस्साहस,इन लोगों ने ऐसे समय पर दिखाया, जब आज़ाद भारत के इतिहास में भारत माता अपने प्राणों के संकट से जूझ रही थी। जब देश के मासूम बच्चे अपनी गुल्लक तोड़कर कोरोना के खिलाफ मुहिम में एवज प्रतिबद्धता प्रकट कर रहे हैं।यह मरकज़ के तब्लीगीयों का अक्षम्य अपराध है। ऐसे अपराधियों के अपराध को कुतर्कों से जायज ठहराना या डायल्यूट करना भी भारत माता के प्रति अपराध है। इनसे देश अब क्या आशा रख सकता है सिवाय आत्मघाती धोखे के। हरीश सती