POLITICS

सांसद जी आप तो बहुत ही छोटे दिल के निकले !

अपने आप बनाये वीडियो में मुख्यमन्त्री को बधाई देना ही भूल गये

अपनी डुगडुगी खुद ही बज रहे हैं सांसद बलूनी

त्रिवेंद्र ने ही निभाई थी बलूनी को राज्यसभा भेजने में मुख्य भूमिका

देवभूमि मीडिया
उत्तराखंड के 16 हजार 608 विशिष्ट बीटीसी शिक्षकों की मान्यता पर बधाई देने के मामले में राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी की कंजूसी व तंगदिल ने राज्यवासियों को हैरान कर दिया है। सोशल मीडिया में अपने प्रयासों को बताने में लगे बलूनी ने एक और वीडियो वायरल किया है। आपको बता दें कि यह वीडियो खुद ही बनाया है । इसमें किसी चैनल की आईडी नहीं दिख रही।
इस वीडियो में अनिल बलूनी ने केंद्रीय मंत्री ”निशंक” के अलावा प्रकाश जावड़ेकर को बधाई दी है। बहुत ही चिंता का विषय है कि राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत का नाम ही नहीं लिया। जबकि विशिष्ट बीटीसी इ 16608 शिक्षकों का यह मामला उत्तराखंड राज्य से जुड़ा हुआ है ऐसे में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र को कम से कम औपचारिक बधाई तो बनती ही थी। आपको पता होगा  पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बड़े दिल का परिचय देते हुए कई बार सार्वजनिक तौर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की तारीफ़ की है।
अब सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकार ने इस मामले में कोई पुरजोर कोशिश नहीं की होगी। सच्चाई यह है कि राज्य सरकार लगातार इस मामले में केंद्र पर पूरे तरह से दबाव बनाए हुए थी। आपको बता दें कि प्रदेश के मुख्यमंत्री ने निर्णय होते ही केंद्रीय मंत्री निशंक को तुरन्त फोन किया। मुख्यमन्त्री ने मुक्त कंठ से निशंक को बधाई भी दी। त्रिवेंद्र ने बड़े दिल का परिचय दिया। जबकि सांसद बलूनी ने एक बार भी प्रदेश के मुख्यमंत्री को अपने इस वीडियो में बधाई नहीं दी।
मुख्यमन्त्री कार्यालय के सूत्रों का कहना है कि त्रिवेंद्र जी चुपचाप काम में लगे रहते हैं । किसी भी प्रकार से अपना ढोल खुद कभी भी नहीं पीटते। मुख्यमन्त्री किसी श्रेय लेने की दौड़ में भी नहीं रहते। जबकि सांसद बलूनी इस मामले में सोशल मीडिया में अपनी कोशिश बताते नहीं थक रहे। यहां यह भी बता दें कि दो बार विधानसभा का चुनाव हार चुके अनिल बलूनी को राज्यसभा सांसद बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मुख्यमन्त्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ही थे। लेकिन सांसद बलूनी ने एक बार फिर अपने वीडियो में त्रिवेंद्र का नाम न लेकर संकीर्ण मानसिकता का परिचय दिया है। उत्तराखंड की राजनीती में इस संकीर्णता राज्य हिट में कतई भी उचित नहीं ठहराई जा सकती जबकि बलूनी व त्रिवेंद्र एक ही आरती के उच्च पदों पर विराजमान हैं।
राज्यसभा सांसद द्वारा खुद ही ढोल पीटना सूबे की राजनीती में चर्चा का विषय बना हुआ है। अगर उन्होंने कुछ किया तो बार-बार बखान करने की क्या जरूरत है ? राज्यसभा सदस्य बनने के बाद उत्तराखंड से दूरी बनाने वाले बलूनी को पहाड़ की जनता कांग्रेस के राज्य सभा सांसद राज बब्बर की साथ ही तलाश रही है। राज्य पर आपदा आयी तो सांसद महोदय दिल्ली से हिले नहीं और अब कोरोना में बयान देने से पीछे हटे नहीं।
भाजपा गलियारे में यह चर्चा जोरों पर है कि बलूनी को दर्द इसलिए हो रहा है कि शिक्षकों के मामले का फैसला उन्हें पहले क्यों नहीं पता चला। केंद्रीय संसाधन मंत्री निशंक ने कानों कान बलूनी को खबर ही नही होने दी। आखिर निशंक राजनीति के मंझे खिलाड़ी हैं। चुनाव में हार के बाद बैकडोर से सांसद बने बलूनी को शिक्षकों का लटका मामला हल होते ही श्रेय लेने की बेचैनी हो गयी। इसीलिए सोशल मीडिया में अपनी डुगडुगी खुद ही बजा रहे हैं । परन्तु मुख्यधारा के प्रिंट मीडिया ने अभी तक उनकी डुगडुगी को अनसुना ही कर रखा है।

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