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प्रधानमंत्री मोदी ने टीकाकरण की सस्ती राजनीति पर लगाया विराम

देवभूमि मीडिया ब्यूरो। प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संबोधन केवल टीकाकरण की समस्याओं का समाधान करने वाला ही नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था को देखते हुए उन तमाम गरीबों को भी राहत देने वाला भी है जो इस संशय में है कि उन्हें मुफ्त में अनाज कब तक मिलेगा क्योंकि यह स्प्ष्ट हो गया दीपावली तक राशन मिलने से गरीबों को स्वत: ही समस्याओं से लड़ने की स्वत: शक्ति मिलेगी।

इसमें कतई कोई संदेह नहीं है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिलहाल देश के सबसे प्रभावी वक्ता और कम्युनिकेटर हैं। वे अपनी इस शक्ति का उपयोग अनेक उद्देश्यों के लिए करते हैं, इसलिए जब भी वे राष्ट्र को सीधे संबोधित करते हैं,तो सबको उनको सुनने के प्रति उत्सुकता और कुछ व्यग्रता भी रहती है कि आखिर इस बार प्रधानमंत्री क्या कहने वाले हैं? वैसे भी,वे संभवत: देश को सबसे ज्यादा बार सीधे संबोधित करने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री हैं। उनका कल का राष्ट् के नाम संबोधन मुख्यत: दो नीतिगत घोषणाओं के लिए था,और उन्होंने इस मौके का एक और प्रयोग कोरोना से लड़ने की सरकार की रणनीति व टीकाकरण अभियान के क्रियान्वयन की विपक्ष की आलोचना का जवाब देने के लिए किया। विपक्ष द्वारा सरकार की कोरोना नियंत्रण और वैक्सीन नीति की अनेकों कारणों पर खासकर कोरोना की दूसरी लहर के मद्देनजर आलोचना होती रही है और एक महत्वपूर्ण मामले में अब सरकार ने सही निर्णय लिया है। केंद्र सरकार ने यह तय किया है कि अब वैक्सीन निर्माताओं से 75 प्रतिशत वैक्सीन वह खुद ही खरीदेगी,यानी राज्यों के हिस्से की वैक्सीन खरीदने की जिम्मेदारी भी अब केंद्र सरकार की होगी। सिर्फ निजी अस्पताल ही अपना 25 प्रतिशत कोटा वैक्सीन निर्माताओं से सीधे खरीदेंगे और हर टीके पर डेढ़ सौ रुपये का सेवा-शुल्क ले सकते हैं।

जब केंद्र सरकार ने पहले अपनी वैक्सीनेशन पॉलिसी घोषित की थी, जिसमें राज्यों को 25 प्रतिशत वैक्सीन सीधे खरीदनी थी,तभी यह बात सामने आई थी कि इससे राज्यों की मुसीबत बढ़ जाएगी। एक तो राज्यों को केंद्र के मुकाबले दोगुनी कीमत चुकानी थी और दूसरे,अलग-अलग राज्य को कितनी वैक्सीन मिल पाएगी,इसे लेकर भी अनिश्चय था। राज्यों पर 45 साल से कम उम्र के सभी नागरिकों को वैक्सीन लगाने की जिम्मेदारी राज्यों को उठानी थी और दूसरी लहर के मद्देनजर आम जन में वैक्सीन लगाने की जो जल्दबाजी थी,उस वजह से कई राज्यों में वैक्सीन की कमी होने लगी। ऐसे में,कई राज्यों ने अंतरराष्ट्रीय बाजार से सीधे वैक्सीन खरीदने की कोशिश भी की, परन्तु वे इसलिए नाकाम रहे कि वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां राज्यों से सीधे लेन-देन करने को तैयार नहीं थीं। ऐसे में राज्य सरकारें भी कहती आ रही थीं कि वैक्सीन खरीदने का काम केंद्र सरकार को ही करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार की टीकाकरण-नीति पर सवाल खड़े किए थे।अब सरकार ने निर्णय के बाद अच्छा कदम उठाया है। प्रधानमंत्री की राष्ट्र के नाम संबोधन में दो बातें सामने उभरकर आई हैं पहली,वैक्सीन वितरण में पारदर्शी और न्यायपूर्ण व्यवस्था एवं वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ाने का युद्ध-स्तर पर प्रयास। प्रधानमंत्री के संबोधन में दूसरी बड़ी घोषणा गरीबों को मुफ्त राशन मुहैया कराने की योजना को नवंबर तक बढ़ाना है। यह भी अच्छा कदम है, क्योंकि अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए अभी गरीबों के लिए रोजी-रोटी का ठीक-ठाक इंतजाम होने में वक्त लग जाएगा।

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