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राज्य स्थापना दिवस : इतना आसान नहीं था उत्तराखंड का गठन

- देश के 27 वें राज्य के रूप में उत्तराखंड का अस्तित्व
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य देश के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। अब राज्य बालिग हो रहा है। अपने 18 सालों के इतिहास में उत्तराखंड ने अनेकों उतार-चढ़ाव देखे हैं। जिस राज्य के गठन के लिए हजारों लोगों ने लाठी डंडे खाए दर्जनों ने अपनी शहादत दी कई परिवार उजड़ गए उस राज्य में आन्दोलनकारियों और शहीदों के सपने कितने साकार हुए हैं। उनके सपनों के उत्तराखण्ड बनाने में राज्य की सरकारों ने कितने सार्थक कदम उठाए और आज उत्तराखण्ड राज्य कहां खड़ा है। उत्तराखण्ड को लेकर प्रदेश के आंदोलनकारियों की क्या राय है पेश है एक रिपोर्ट।
उत्तर प्रदेश से विभाजित होकर उत्तराखंड राज्य बना। राज्य बनाने के पीछे का मकसद यही था की छोटा प्रदेश होगा। इस छोटे प्रदेश में विकास की गंगा बहेगी। स्थानीय लोग सरकार चलाएंगे। आम जनता की पहुंच सरकार तक होगी। किसी भी समस्या का त्वरित निदान होगा। क्षेत्रीय विकास की अवधारणा साकार होगी। पलायन और बेरोजगारी रुकेगी। युवाओं को अपने घर के आस-पास रोजगार मिलेगा। पहाड़ों पर मूलभूत सुविधाएं पहुंचेगी। स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, बिजली पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए लोगों को सरकार का मुंह नहीं ताकना पड़ेगा। क्योंकि अपनी सरकार अपने लोगों का दुख-दर्द गहराई से और नजदीकी से समझेगी। विकास को लेकर अब तक सरकारों ने काफी प्रयास भी किए लेकिन बावजूद इसके उत्तराखंड के अभी भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर मूलभूत सुविधाओं को पहुंचाया नहीं जा सका है। पलायन जारी है और गांव के गांव खाली हो रहे हैं।
प्रदेशवासियों को राज्य गठन के 18 साल बाद भी स्थाई राजधानी की दरकार है। अभी भी उत्तराखंड को स्थाई राजधानी नहीं मिल पाई है। अब तक की सरकारों ने उत्तराखंड के विकास के लिए काफी प्रयास किए हैं लेकिन 18 साल का एक लंबा वक्त गुजरने के बावजूद आंदोलनकारियों की नजर से उत्तराखंड का कोई खास विकास नहीं हुआ है।
आंदोलनकारियों के अनुसार उत्तर प्रदेश के समय में जिस गति से उत्तराखंड चल रहा था लगभग वही गति अभी भी जारी है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों राष्ट्रीय पार्टियों को जनता ने उत्तराखंड में सरकार चलाने का दायित्व दिया। दोनों ही दलों की सरकारों ने आम जनता के हितों को दरकिनार करते हुए केवल अपने लोगों को फायदा पहुंचाने का काम किया। यही वजह है कि आज शहीदों के सपनों का उत्तराखंड नहीं बन पाया है। राज्य गठन के 18 साल बाद भी उत्तराखंड वो छाप नहीं छोड़ पाया जिसके लिए बड़े आंदोलन के बाद उत्तराखण्ड राज्य बना।
आंदोलन के दौरान हुए वीभत्स गोलीकाण्ड :-
- खटीमा गोलीकाण्ड :-
एक सितम्बर 1994 को उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन का काला दिवस माना जाता है। इस दिन जैसी पुलिस की बर्बरतापूर्ण कार्यवाही इससे पहले कहीं और देखने को नहीं मिली थी। पुलिस ने बिना चेतावनी दिए ही आन्दोलनकारियों के ऊपर अंधाधुंध फ़ायरिंग की।जिससे 7 आन्दोलनकारियों की मौत हो गई।
खटीमा गोलीकाण्ड में मारे गए शहीद:-
शहीद स्व. भगवान सिंह सिरौला, ग्राम श्रीपुर बिछुवा, खटीमा
शहीद स्व. गोपीचन्द, ग्राम रतनपुर फुलैया, खटीमा
शहीद स्व. धर्मानन्द भट्ट, ग्राम अमरकलाँ, खटीमा
शहीद स्व. परमजीत सिंह, राजीवनगर, खटीमा
शहीद स्व. प्रताप सिंह, खटीमा
शहीद स्व. सलीम अहमद, खटीमा
शहीद स्व. रामपाल, बरेली
इस पुलिस फायरिंग में बिचपुरी निवासी बहादुर सिंह और श्रीपुर बिछुवा निवासी पूरन चन्द भी गम्भीर रुप से घायल हुए थे।
मसूरी गोलीकाण्ड में मारे गए शहीद:-
2 सितम्बर, 1994 को खटीमा गोलीकाण्ड के विरोध में मौन जुलूस निकाल रहे लोगों पर एक बार फिर पुलिसिया क़हर टूटा। प्रशासन से बातचीत करने गई दो सगी बहनों को पुलिस ने झूलाघर स्थित आन्दोलनकारियों के कार्यालय में गोली मार दी। इसका विरोध करने पर पुलिस ने फ़ायरिंग कर दी। जिसमें कई (लगभग २१) लोगों को गोली लगी। इसमें से चार आन्दोलनकारियों की अस्पताल में मौत हो गई।
मसूरी के शहीद:-
शहीद स्व. बेलमती चौहान ग्राम खलोन, पट्टी घाट, अकोदया, टिहरी
शहीद स्व. हंसा धनई ग्राम बंगधार, पट्टी धारमण्डल, टिहरी
शहीद स्व. राय सिंह बंगारी ग्राम तोडेरा, पट्टी पूर्वी भरदार, टिहरी
शहीद स्व. बलबीर सिंह नेगी, लाइब्रेरी, मसूरी
शहीद स्व. धनपत सिंह ग्राम गंगवाड़ा, पट्टी गंगवाड़स्यूँ, टिहरी
शहीद स्व. मदन मोहन ममगाईं ग्राम नागजली, पट्टी कुलड़ी, मसूरी
- रामपुर तिराहा (मुज़फ़्फ़रनगर) गोलीकाण्ड
2 अक्टूबर, 1994 की रात्रि को दिल्ली रैली में जा रहे आन्दोलनकारियों का रामपुर तिराहा, मुज़फ़्फ़रनगर में पुलिस-प्रशासन ने निहत्थे आन्दोलनकारियों को रात के अन्धेरे में चारों ओर से घेरकर गोलियाँ बरसाई। पहाड़ की सीधी-सादी महिलाओं के साथ दुष्कर्म तक किया। इस गोलीकाण्ड में राज्य के 7 आन्दोलनकारी शहीद हो गए थे। इस गोलीकाण्ड के दोषी आठ पुलिसवालों पर, जिनमें तीन पुलिस अधिकारी भी हैं, पर मामला चल रहा है।
रामपुर तिराहा गोलीकाण्ड में मारे गए शहीदः-
शहीद स्व. राजेश नेगी भानियावाला, देहरादून
शहीद स्व. सतेन्द्र चौहान ग्राम हरिपुर, सेलाक़ुईं, देहरादून
शहीद स्व गिरीश भद्री आजबपुर ख़ुर्द, देहरादून
शहीद स्व. अशोक कुमार मन्दिर मार्ग, ऊखीमठ, रुद्रप्रयाग
शहीद स्व. सूर्यप्रकाश थपलियाल चौदह बीघा, मुनि की रेती, ऋषिकेश
शहीद स्व राजेश लखेड़ा अजबपुर कलाँ, देहरादून
शहीद स्व. रवीन्द्र सिंह रावत नेहरू कॉलोनी, देहरादून
देहरादून गोलीकाण्ड:-
3 अक्टूबर, 1994 को रामपुर तिराहा गोलीकाण्ड की सूचना देहरादून में पहुँचते ही लोग उग्र हो गए। इस काण्ड में शहीद स्व. रवीन्द्र सिंह रावत की शवयात्रा पर पुलिस ने लाठीचार्ज की जिससे स्थिति और उग्र हो गई। लोगों ने पूरे देहरादून में इसके विरोध में प्रदर्शन किया। जिसमें पहले से ही जनाक्रोश को किसी भी हालत में दबाने के लिये तैयार पुलिस ने फ़ायरिंग कर दी। जिसने तीन और लोगों को इस आन्दोलन में शहीद कर दिया।
देहरादून गोलीकाण्ड में मारे गए शहीद:-
शहीद स्व. राजेश रावत चन्द्र रोड, नई बस्ती, देहरादून
शहीद स्व. बलवन्त सिंह सजवाण ग्राम मल्हान, नयागाँव, देहरादून
शहीद स्व. दीपक वालिया, ग्राम बद्रीपुर, देहरादून
स्व. राजेश रावत की मृत्यु तत्कालीन समाजवादी पार्टी नेतासूर्यकान्त धस्माना के घर से हुई फ़ायरिंग में हुई थी।
- कोटद्वार काण्ड
3 अक्टूबर 1994 को पूरा उत्तराखण्ड रामपुर तिराहा काण्ड के विरोध में उबल रहा था। पुलिस-प्रशासन किसी भी प्रकार से इसके दमन के लिये तैयार था। इसी कड़ी में कोटद्वार में भी आन्दोलन हुआ, जिसमें दो आन्दोलनकारियों को पुलिसकर्मियों द्वारा राइफ़ल के बटों व डण्डों से पीट-पीटकर मार डाला।
कोटद्वार काण्ड में मारे गए शहीद:-
शहीद स्व. पृथ्वी सिंह बिष्ट, मानपुर ख़ुर्द, कोटद्वार
शहीद स्व. राकेश देवरानी
- नैनीताल गोलीकांड
नैनीताल में भी विरोध चरम पर था, यहां पर भी पुलिस का तांडव देखने को मिला।
नैनीताल गोलीकाण्ड में मारे गए शहीद:-
शहीद स्व. प्रताप सिंह
- श्रीयन्त्र टापू (श्रीनगर) काण्ड:-
श्रीनगर शहर से 2 कि०मी० दूर स्थित श्रीयन्त्र टापू पर आन्दोलनकारियों ने 7 नवम्बर, 1994 से इन सभी दमनकारी घटनाओं के विरोध और पृथक उत्तराखण्ड राज्य हेतु आमरण अनशन की शुरुआत की। 10 नवम्बर, 1994 को पुलिस ने इस टापू में पहुँचकर अपना क़हर बरपाया। जिसमें कई लोगों को गम्भीर चोटें भी आई। दो युवक अलखनन्दा नदी में बह गए जिससे इन दोनों की मौत हो गई।
श्रीयन्त्र टापू में मारे गए शहीद:-
शहीद स्व. यशोधर बेंजवाल
शहीद स्व. राजेश रावत
इन दोनों शहीदों के शव 14 नवम्बर, 1994 को बागवान के समीप अलकनन्दा नदी में तैरते हुए पाए गए थे।