EXCLUSIVE

केदारनाथ के पुनर्निर्माण में वास्तु व श्रद्धालुओं की आस्था को किया नज़रअंदाज़ !

  • आखिर क्यों उठ रहे हैं केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण पर सवाल!

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

वर्तमान केदार मंदिर का निर्माण समय 12 वीं शताब्दी इससे पूर्व भी मंदिर रहा लेकिन संभवतया बर्फीले तृफान में यह टूट गया होगा। तब लगभग 200- 250 साल तक मंदिर ध्वस्त रहा। मंदिर की  निर्माण पर पुरातत्वविदों का कहना है कि केदारनाथ मंदिर मध्य हिमाद्री शैली के अंतर्गत ‘‘ छत्र रेखा शिखर प्रासाद शैली’’ में निर्मित है। यह शैली ऊंपरी गढ़वाल की विशिष्ठ शैली है। ऊंपरी गढ़वाल के प्रधान मंदिरों में इस शैली का प्रयोग किया गया है। चमोली का पाण्डुकेश्वर और गोपेश्वर मंदिर व रुद्रप्रयाग का ओंकारेश्वर मंदिर इसी शैली में बने हैं। यह मंदिर जमीन पर यह वर्गाकार है।

  • मंदिर का वास्तु कैसा होना चाहिए

राजा भोज द्वारा रचित ‘‘समरांगण सूत्रधार ’’ जो उत्तरीय शैली के मंदिरों के लिए मूल ग्रंथ है के अनुसार मंदिर को ‘‘प्रासाद पुरुष’’’ यानि जीवित शरीर माना गया है और मूर्ति को ‘‘ जीवा उच्च्ययते’’ यानि उस शरीर की आत्मा माना गया है। मंदिर रुपी ‘‘प्रासाद पुरुष’’ एक इकाई होती है । जिसमें गर्भ गृह, शिखर, मण्डप, प्राकार (चारदिवारी) , और पटांगण (प्रांगण) होता है से मिलकर पूरा होता है। जैसे किसी मनुष्य का शरीर बिभिन्न अंगों से मिलकर बना होता है वैसे ही मंदिर का ‘‘प्रासाद पुरुष ’’ भी इन सभी भागों से मिलकर पूरा होता है। प्रासाद पुरुष नामक यूनिट का हर भाग मंदिर वास्तु और शास्त्र के अनुसार होना चाहिए तभी यह इकाई संतुलित रह पायेगी।

  • मंदिर का पटांगण कितना बड़ा होना चाहिए

शास्त्रों के अनुसार मंदिर के पटांगण की लंबाई उतनी ही होनी चाहिए जितनी उसकी एक भुजा की लंबाई हो। उत्तर भारत और ऊंपरी गढ़वाल के मंदिरों में इन पटांगण के बाद प्राकार (चारदिवारी) का होना आवश्यक है । प्राकार से पानी के बाहर जाने के लिए भी स्थान होते हैं। मदिर में जल प्रवाह की सही दिशा भी होना आवश्यक है। उत्तर भारतीय मंदिर शैली में प्राकार के बाद ही यदि आवश्यकता हो तो उत्सव हेतु अन्य मैदान अलग से प्राकार से हट कर उसके तल से अलग बन सकता है।

जबकि दक्षिण भारत के मंदिरों में आंगन बड़े और फैले होते हैं क्योंकि आंगन के बीच में सरोवर होते हैं जिन तक स्नान करने के लिए सीढ़ियां होती हैं। उत्तर भारत में अभिषेक हेतु जल कुंड पृथक स्थान पर होगा। खुजराहों में कहीं  मण्डव , उत्सव आदि कार्यों हेतु बने हैं परंतु उत्तर भारत और पर्वतीय शैली में कंही भी मंदिर के साथ उत्सव हेतु प्रांगण नहीं बने हैं।

  • वर्तमान मंदिर में क्या- क्या छेड़ाखानी की गई हैं !

मंदिर के प्रांगण को फुटबाल मैदान की तरह बड़ा कर दिया गया है। जिससे मंदिर गौण और प्रांगण महत्वपूर्ण दिखने लगा है। पहले मंदिर का प्रांगण शास्त्रोक्त था याने मंदिर की एक भुजा के बराबर । मंदिर के पटांगण के एक किनारे पर एक गेट था जिस पर घंटा लगा हुआ था। पटांगण के किनारे घंटा युक्त गेट के बाद 9 सीढ़ियां थी तब उसके बाद केदारनाथ बाजार आता था। मंदिर की इकाई याने ‘‘प्रासाद पुरुष’’’ मंदिर- बाजार आदि से बिल्कुल अलग थे। मंदिर की इस विशेष बनावट के कारण केदारनाथ मंदिर की भव्यता बनती थी। मंदिर की सीढ़ियों के नीचे और दूर से देखने पर विशाल मंदिर और उसके पीछे केदारनाथ चोटी ऐसी लगती थी मानो वे एक ही इकाई हों। ये हमारे पूर्वजों की वास्तु ज्ञान का फल था।

अब मंदिर के चारों ओर उसकी भुजा से कई गुना बड़ा मैदान बना दिया गया है, जिससे मंदिर का ‘‘प्रासाद पुरुष’’ गड़बड़ा गया है, असमानुपातिक हो गया है। यह मंदिर वास्तु और शास्त्रोक्त शैली में दोष पैदा कर रहा है। वहीँ फिर सीढ़ियां चढ़ते ही विशाल नंदी के दर्शन होते थे। अब मंदिर के तल से छेड़छाड़ कर उसे ऐसा कर दिया गया है कि मंदिर के अग्र भाग में स्थित नंदी छोटे से लग रहे हैं। वहीँ मंदिर के प्राकार (चारदिवारी) को तोड़ दिया गया है जिससे मंदिर का जल प्रवाह तंत्र गड़बड़ा गया है। वहीँ  सीढ़ियों से आगे की जमीन अन्नपूर्णा तक लगभग 200 मीटर समतल थी। जो मंदिर को स्थायित्व प्रदान करता था। मंदिर के आगे से लगभग 200 मीटर अन्नपूर्णा तक खोद कर सीढ़ियां बना दी गई हैं।

केदारनाथ पुरी में प्राकृतिक रुप से जल प्रवाह व्यवस्था थी। यानि केदारनाथ पुरी का जल प्राकृतिक रुप से उत्तर दिशा की ओर जाता था। इसी व्यवस्था के कारण आपदा में मंदिर सुरक्षित रहा। शुद्व जल सदैव ईशान कोण, उत्तर अथवा पूर्व दिशा में जाना चाहिए। अब सीढ़ियां बनाने से यह दक्षिण की ओर जायेगा। अब मंदिर के सामने के अन्नपूर्णा तक के समतल भाग में सीढ़ियां बना दी गई हैं। अन्नपूर्णा मंदिर के दक्षिण में स्थित है। वास्तु के अनुसार दक्षिणी भाग भारी और उन्नत यानि उठा हुआ होना चाहिए। अब इस ओर खोद कर सीढ़ियां बनाने से उसे हल्का और अवनत कर दिया गया है।

वास्तुविदों के अनुसार यह गंभीर वास्तु दोष होने के साथ मंदिर को कमजोर और असुरक्षित करता है। वैज्ञानिक दृष्टि से केदारनाथ मोरैन पर स्थित है यहां कहीं से भी पानी फूट सकता है। निश्चित ही इन सीढ़ियों से पानी फूटेगा और मंदिर को कमजोर करेगा। वहीँ केदारनाथ में स्वयं-भू लिंग याने ज्योर्तिलिंग के अलावा भगवान के साथ ईशानेश्वर मंदिर, पंचमुखी महादेव मंदिर, सत्यनारायण मंदिर, उदक कुण्ड मंदिर, नवदुर्गा मंदिर , अन्नपूर्णा मंदिर और पंच गंगा मंदिर थे। ये सभी प्राण प्रतिष्ठित मंदिर थे। केदारनाथ में ये भगवान के अभिन्न अंग थे । अब इन स्थानों को तोड़ कर इन पर रास्ता बना दिया गया है। यानि केदारनाथ में भगवान शिव के मंदिर के अलावा सब मंदिर हटा दिए गए हैं। जिससे भगवान एकांगी हो गए हैं।

यात्रियों की  भावनाएं :-

वर्षों से केदारनाथ आ रहे यात्रियों ने यह तो ख़ुशी जताई कि मंदिर के आसपास स्थित दुकान और मकान तो हट  गए हैं लेकिन यात्रियों के लिए यह एक सदमा सा है कि अब वे भगवान और मनुष्य के बीच की उन नौ सीढ़ियों और प्रांगण को हटा दिया गया है जिनको पार कर वे नौ ग्रहों की शांति का अहसास प्राप्त किया करते थे। और किसी भी मंदिर के प्रवेश में श्रद्धालुओं में एक बहुत बड़ी आस्था यह होती रही है कि वह मंदिर में प्रवेश  करने से पहले वहां लगे घंटे को बजाकर भगवान् के सामने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता रहा है।  लेकिन देश -दुनिया के कोने -कोने से केदारनाथ पहुंच रहे श्रद्धालु भगवान् के दरबार में घंटे के न होने के चलते मंदिर में आधे मन से हाज़िरी लगाने को विवश हैं।

नोट :- मंदिर के पुजारियों, वास्तु विशेषज्ञों ,  पुरातत्वविदों और भू -वैज्ञानिकों से गहन चर्चा के बाद उक्त लेख प्रकाशित किया गया है।  

devbhoomimedia

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : देवभूमि मीडिया.कॉम हर पक्ष के विचारों और नज़रिए को अपने यहां समाहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह जरूरी नहीं है कि हम यहां प्रकाशित सभी विचारों से सहमत हों। लेकिन हम सबकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का समर्थन करते हैं। ऐसे स्वतंत्र लेखक,ब्लॉगर और स्तंभकार जो देवभूमि मीडिया.कॉम के कर्मचारी नहीं हैं, उनके लेख, सूचनाएं या उनके द्वारा व्यक्त किया गया विचार उनका निजी है, यह देवभूमि मीडिया.कॉम का नज़रिया नहीं है और नहीं कहा जा सकता है। ऐसी किसी चीज की जवाबदेही या उत्तरदायित्व देवभूमि मीडिया.कॉम का नहीं होगा। धन्यवाद !

Related Articles

Back to top button
Translate »