!! पर्यावरण संरक्षण में चिपको आंदोलन अहम!!

, Chipko movement is important in environmental protection!!
पर्यावरण संरक्षण के लिए चमोली जिले के रैंणी गॉव की गौरा देवी द्वारा चलाया गया चिपको आन्दोलन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नारीवाद,पर्यावरणवाद के मुहावरे के रूप में विकसित हुआ यह एक घटना मात्र नहीं घटना नहीं बल्कि पर्यावरण व प्रकृति की रक्षा के लिए सतत् चलने वाली प्रक्रिया है।…….
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आज अगर हम देखें तो हर जगह विकास के कार्यों के लिए जिस चीज को सबसे ज्यादा काटा जा रहा है उसमें हमारे पेड़ प्रमुख रुप में हैं। पेड़ जो हमारे जीवन तंत्र या यूं कह लीजिए कि पर्यावरण का सबसे अहम कारक हैं।आज वन हमारी सुख सुविधाओं के लिए लगातार समाप्त होते जा रहे हैं।आलम यह है, कि आज हमें घनी आबादी के बीच कुछ ही पेड़ ही देखने को मिलते हैं। पेड़ों की कटान की वजह से पृथ्वी का परिवर्तन चक्र बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।
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धरती का फेफड़ा कहलाने वाले पेड़ों का हमारे जीवन में सर्वत्र महत्व है,लेकिन सबसे बड़ा लाभ इनके द्वारा प्राणवायु ऑक्सीजन का उत्सर्जन और वायुमंडल को दूषित करने वाली एवं ग्लोबल वार्मिंग की जिम्मेदार गैस कार्बनडाई आक्साइड का अवशोषण करना है। अगर पेड़ नहीं होंगे तो ऑक्सीजन की कमी के कारण हमारी सांसें घुट घुटती रहेंगी।
कार्बनडाई आक्साइड का अवशोषण होता रहे इसके हर स्तर पर पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जा रहा है। पर्यावरण संरक्षण के नाम पर उत्तराखंड का हरेला उत्सव अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थान बना चुका है।
पेड़ हमारे जीवन के लिए कितने उपयोगी हैं इसका सबसे बड़ा नमूना 26 मार्च,1974 में उत्तराखण्ड के वनों में शांत और अहिंसक विरोध चमोली जिले के रैंणी गॉव में गौरा देवी के नेतृत्व में 21महिलाओं द्वारा चलाया गया प्रदर्शन चिपको आन्दोलन के रूप में देखा गया। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य व्यवसाय के लिए हो रही अंधाधुंध पेड़ों की कटाई को रोकना था और इसे रोकने के लिए महिलाएं वृक्षों से चिपककर खड़ी हो गई थीं।
दरअसल गौरा देवी नामक महिला ने अन्य महिलाओं के साथ मिलकर उस नीलामी का विरोध करना था,जिसमें उत्तराखंड के रैंणी गाँव के जंगल के लगभग ढाई हजार पेड़ों को काटा जाना था। स्थानीय नागरिकों के विरोध के बावजूद सरकार और ठेकेदारों के निर्णय में कोई बदलाव नहीं आया।
ठेकेदारों ने अपने लोगों को जंगल के लगभग ढाई हजार पेड़ काटने के लिए भेज दिया। तभी गौरा देवी के नेतृत्व में 21महिला साथियों ने उन लोगों को समझाने की कोशिश की,लेकिन वह नहीं माने और पेड़ काटने की जिद पर अड़े रहे। यह देख वहां मौजूद महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उन्हें ललकारा कि पहले हमें काटो फिर इन पेड़ों को काट लेना। अंतत: पेड़ काटने आए लोगों को वहां से जाना पड़ा।
चिपको आंदोलन ने तब की केंद्र सरकार का ध्यान अपनी ओर खींचा था। जिसके बाद यह निर्णय लिया गया कि अगले 15 सालों तक उत्तर प्रदेश के हिमालय पर्वतमाला में एक भी पेड़ नहीं काटे जाएंगे। तभी से घरों में भोजन बनाने हेतु गैस सिलेंडर का प्रावधान किया गया।
चिपको आंदोलन का प्रभाव उत्तराखंड (तब उत्त्तर प्रदेश का हिस्सा था) से निकलकर पूरे देश पर होने लगा। इसी आंदोलन से प्रभावित होकर दक्षिण भारत में पेड़ों को बचाने के लिए एप्पिको नाम से एक वन बताओ आंदोलन शुरू किया गया।