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भारत, मित्रता निभाना जानता है, तो, आँख-में-आँख डालकर देखना और उचित जवाब देना भी जानता है
मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा कि संकट चाहे जितना भी बड़ा हो, भारत के संस्कार, निस्वार्थ भाव से सेवा की देते हैं प्रेरणा
लद्दाख में भारत की भूमि पर, आँख उठाकर देखने वालों को मिला है करारा जवाब : प्रधानमंत्री
लॉकडाउन से ज्यादा सतर्कता हमें अनलॉक के दौरान बरतनी है, आपकी सतर्कता ही आपको कोरोना से बचाएगी
जन्म शताब्दी वर्ष पर पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को याद किया
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि लद्दाख में भारत की भूमि पर, आँख उठाकर देखने वालों को करारा जवाब मिला है | भारत, मित्रता निभाना जानता है, तो, आँख-में-आँख डालकर देखना और उचित जवाब देना भी जानता है | हमारे वीर सैनिकों ने दिखा दिया है, कि, वो, कभी भी माँ भारती के गौरव पर आँच नहीं आने देंगे |
मन की बात 2.0 की 13 वीं कड़ी में उन्होंने कहा कि संकट चाहे जितना भी बड़ा हो, भारत के संस्कार, निस्वार्थ भाव से सेवा की प्रेरणा देते हैं। भारत ने जिस तरह मुश्किल समय में दुनिया की मदद की, उसने आज, शांति और विकास में भारत की भूमिका को और मज़बूत किया है। दुनिया ने इस दौरान भारत की विश्व बंधुत्व की भावना को भी महसूस किया है, और इसके साथ ही, दुनिया ने अपनी संप्रभुता और सीमाओं की रक्षा करने के लिए भारत की ताकत और भारत के कमिटमेंट को भी देखा है।
उन्होंने कहा कि लद्दाख में भारत की भूमि पर, आँख उठाकर देखने वालों को, करारा जवाब मिला है। भारत, मित्रता निभाना जानता है, तो, आँख-में-आँख डालकर देखना और उचित जवाब देना भी जानता है | हमारे वीर सैनिकों ने दिखा दिया है, कि, वो, कभी भी माँ भारती के गौरव पर आँच नहीं आने देंगे |
प्रधानमंत्री ने कहा कि लद्दाख में हमारे जो वीर जवान शहीद हुए हैं, उनके शौर्य को पूरा देश नमन कर रहा है, श्रद्धांजलि दे रहा है। पूरा देश उनका कृतज्ञ है, उनके सामने नत-मस्तक है। इन साथियों के परिवारों की तरह ही, हर भारतीय, इन्हें खोने का दर्द भी अनुभव कर रहा है। अपने वीर-सपूतों के बलिदान पर, उनके परिजनों में गर्व की जो भावना है, देश के लिए जो ज़ज्बा है – यही तो देश की ताकत है।
आपने देखा होगा, जिनके बेटे शहीद हुए, वो माता-पिता, अपने दूसरे बेटों को भी, घर के दूसरे बच्चों को भी, सेना में भेजने की बात कर रहे हैं। बिहार के रहने वाले शहीद कुंदन कुमार के पिताजी के शब्द तो कानों में गूँज रहे हैं। वो कह रहे थे, अपने पोतों को भी, देश की रक्षा के लिए, सेना में भेजूंगा।
यही हौंसला हर शहीद के परिवार का है। वास्तव में, इन परिजनों का त्याग पूजनीय है। भारत-माता की रक्षा के जिस संकल्प से हमारे जवानों ने बलिदान दिया है, उसी संकल्प को हमें भी जीवन का ध्येय बनाना है, हर देश वासी को बनाना है। हमारा हर प्रयास इसी दिशा में होना चाहिए, जिससे, सीमाओं की रक्षा के लिए देश की ताकत बढ़े, देश और अधिक सक्षम बने, देश आत्मनिर्भर बने – यही हमारे शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी |
प्रधानमंत्री ने कहा कि मुश्किलें आती हैं, संकट आते हैं, लेकिन, सवाल यही है, कि, क्या इन आपदाओं की वजह से हमें साल 2020 को ख़राब मान लेना चाहिए? क्या पहले के छह महीने जैसे बीते, उसकी वजह से, ये, मान लेना कि पूरा साल ही ऐसा है, क्या ये सोचना सही है ? जी नहीं, बिल्कुल नहीं ।
एक साल में एक चुनौती आए, या, पचास चुनौतियां आएँ, नंबर कम-ज्यादा होने से, वो साल, ख़राब नहीं हो जाता। भारत का इतिहास ही आपदाओं और चुनौतियों पर जीत हासिल कर और ज्यादा निखरकर निकलने का रहा है। सैकड़ों वर्षों तक अलग- अलग आक्रांताओं ने भारत पर हमला किया, उसे संकटों में डाला, लोगों को लगता था कि भारत की संरचना ही नष्ट हो जाएगी, भारत की संस्कृति ही समाप्त हो जाएगी, लेकिन, इन संकटों से भारत और भी भव्य होकर सामने आया।
हमारे यहां कहा जाता है – सृजन शास्वत है, सृजन निरंतर है। प्रधानमंत्री ने एक गीत का कुछ पंक्तियां सुनाईं-
यह कल-कल छल-छल बहती, क्या कहती गंगा धारा ?
युग-युग से बहता आता, यह पुण्य प्रवाह हमारा।
उसी गीत में, आगे आता है –
क्या उसको रोक सकेंगे, मिटने वाले मिट जाएं,
कंकड़-पत्थर की हस्ती, क्या बाधा बनकर आए।
उन्होंने कहा कि भारत में भी, जहां, एक तरफ़ बड़े-बड़े संकट आते गए, वहीं, सभी बाधाओं को दूर करते हुए अनेक सृजन भी हुए। नए साहित्य रचे गए, नए अनुसंधान हुए, नए सिद्धांत गड़े गए, यानि, संकट के दौरान भी, हर क्षेत्र में, सृजन की प्रक्रिया जारी रही और हमारी संस्कृति पुष्पित-पल्लवित होती रही, देश आगे बढ़ता ही रहा।
भारत ने हमेशा, संकटों को, सफलता की सीढियों में परिवर्तित किया है। इसी भावना के साथ, हमें, आज भी, इन सारे संकटों के बीच आगे बढ़ते ही रहना है। आप भी इसी विचार से आगे बढ़ेंगे। 130 करोड़ देशवासी आगे बढ़ेंगे, तो, यही साल, देश के लिये नए कीर्तिमान बनाने वाला साल साबित होगा। इसी साल में, देश, नये लक्ष्य प्राप्त करेगा, नयी उड़ान भरेगा, नयी ऊँचाइयों को छुएगा। पूरा विश्वास, 130 करोड़ देशवासियों की शक्ति पर है, आप सब पर है, इस देश की महान परम्परा पर है।
उन्होंने कहा कि कोरोना के संकट काल में देश लॉकडाउन से बाहर निकल आया है। अब हम अनलॉक के दौर में हैं। इस समय दो बातों पर बहुत फोकस करना है – कोरोना को हराना और अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना, उसे ताकत देना। लॉकडाउन से ज्यादा सतर्कता हमें अनलॉक के दौरान बरतनी है। आपकी सतर्कता ही आपको कोरोना से बचाएगी।
इस बात को हमेशा याद रखिए कि अगर आप मास्क नहीं पहनते हैं, दो गज की दूरी का पालन नहीं करते हैं, या फिर, दूसरी जरूरी सावधानियां नहीं बरतते हैं, तो, आप अपने साथ-साथ दूसरों को भी जोखिम में डाल रहे हैं | खास-तौर पर, घर के बच्चों और बुजुर्गों को, इसीलिए, सभी देशवासियों से निवेदन है कि आप लापरवाही मत बरतिये, अपना भी ख्याल रखिए, और, दूसरों का भी |
उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को याद करते हुए कहा कि जब, हम, पीवी नरसिम्हा राव जी के बारे में बात करते हैं, तो, स्वाभाविक रूप से राजनेता के रूप में उनकी छवि हमारे सामने उभरती है, लेकिन, यह भी सच्चाई है, कि, वे, अनेक भाषाओँ को जानते थे। भारतीय एवं विदेशी भाषाएँ बोल लेते थे। वे, एक ओर भारतीय मूल्यों में रचे-बसे थे, तो दूसरी ओर, उन्हें पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान का भी ज्ञान था। वे, भारत के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक थे। किन, उनके जीवन का एक और पहलू भी है, और वो उल्लेखनीय है, हमें जानना भी चाहिए।
नरसिम्हा राव जी अपनी किशोरावस्था में ही स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए थे। जब, हैदराबाद के निजाम ने वन्दे मातरम् गाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, तब, उनके ख़िलाफ़ आंदोलन में उन्होंने भी सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था, उस समय, उनकी उम्र सिर्फ 17 साल थी। छोटी उम्र से ही श्रीमान नरसिम्हा राव अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज उठाने में आगे थे। अपनी आवाज बुलंद करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ते थे।
नरसिम्हा राव जी इतिहास को भी बहुत अच्छी तरह समझते थे। बहुत ही साधारण पृष्ठभूमि से उठकर उनका आगे बढ़ना, शिक्षा पर उनका जोर, सीखने की उनकी प्रवृत्ति, और, इन सबके साथ, उनकी, नेतृत्व क्षमता – सब कुछ स्मरणीय है। आग्रह है, कि, नरसिम्हा राव जी के जन्म-शताब्दी वर्ष में, आप सभी लोग, उनके जीवन और विचारों के बारे में, ज्यादा-से-ज्यादा जानने का प्रयास करें। मैं, एक बार फिर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।