सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को कहा जाता है मकर संक्रांति
भारतीय पंचांग के महीने के अनुसार पौष मास की शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है मकर संक्रांति पर्व
सूर्य छह माह उत्तरायन रहता है और छह माह दक्षिणायन, इस पर्व को ‘उत्तरायण’ के नाम से भी जाना जाता है
कमल किशोर डुकलान
मकर संक्रांति पर्व प्रतीक है परिवर्तन,उन्नति,ओजस्विता,सामाजिक समरसता, एकता व बंधुत्व का….आज जब देश में सामाजिक एकता के ताने बाने को छिन्न-भिन्न करने का प्रयास चल रहा हो, जातिवाद,सांप्रदायिकता के नाम पर एक वर्ग को दूसरे से लड़ाने के प्रयास चल रहे हो तो ऐसे में समरस,सरस और सर्वसमाज को समभाव का संदेश देता है।….
मकर संक्रांति प्रतीक है परिवर्तन,उन्नति, ओजस्विता,सामाजिक समरसता,एकता व बंधुत्व का। तिल गुणवान हैं परंतु गुड़ के बिना बेस्वाद, जिनको खाया नहीं जा सकता। घी डालते ही खिचड़ी की गुणवत्ता दोगुनी हो जाती है। गुड़ के बिना तिल का महत्त्व नहीं और घी के बिना खिचड़ी अधूरी, समाज में दूसरे के बिना मैं अधूरा,इसी तरह मैं भी किसी का पूरक। एक-दूसरे का महत्त्व समझते हुए समाज में समरस हो कर रहना ही संदेश है मकर संक्रांति पर्व का। आज जब देश में सामाजिक एकता के ताने बाने को छिन्न-भिन्न करने का प्रयास चल रहा है, जातिवाद,सांप्रदायिकता के नाम पर एक वर्ग को दूसरे से लड़ाने के प्रयास हो रहे हो तो समरस,सरस और सर्वसमाज समभाव का संदेश लेकर आता है मकर संक्रांति।
मकर संक्रांति में ‘मकर’ शब्द बारह राशियों में से मकर राशि को इंगित करता है जबकि ‘संक्रांति’ का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं। यद्यपि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को मकर संक्रांति कहा जाता है। भारतीय पंचांग के महीने के अनुसार पौष मास की शुक्ल पक्ष में मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। जैसे चन्द्रमास के 2 भाग हैं- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। इसी तरह सौर वर्ष के आधार पर वर्ष के 2 भाग हैं- उत्तरायन और दक्षिणायन। इस दिन से सूर्य उत्तरायन हो जाता है। उत्तरायन अर्थात उस समय से धरती का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है,तो उत्तर ही से सूर्य निकलने लगता है। 6 माह सूर्य उत्तरायन रहता है और 6 माह दक्षिणायन। अत: इस पर्व को ‘उत्तरायन’ के नाम से भी जाना जाता है।
भारत विविध संस्कृतियों का देश होने के कारण मकर संक्रांति का पर्व देश के अलग-अलग राज्यों में वहां के स्थानीय तरीकों से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इस त्योहार को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे लोहड़ी-माघी, खिचड़ी पर्व, पतंगोत्सव आदि के नाम से मनाया जाता है। मध्य भारत में इसे संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति को उत्तरायन, माघी,खिचड़ी आदि नाम से भी जाना जाता है।
सर्दी के मौसम में वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण शरीर में रोग और बीमारियां जल्दी लगती हैं इसलिए इस दिन गुड़ और तिल से बने मिष्ठान्न का पकवान बनाया जाता है। इन पकवानों में गर्मी पैदा करने वाले तत्वों के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक पोषक पदार्थ भी होते हैं। उत्तर भारत में इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है।
धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है,जो आषाढ़ मास तक रहता है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है। राजा भगीरथ सूर्यवंशी थे, जिन्होंने भगीरथ तप साधना के परिणामस्वरूप पापनाशिनी गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करवाया था। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल,अक्षत,तिल से श्राद्ध तर्पण किया था। तब से माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है। कपिल मुनि के आश्रम पर जिस दिन मातु गंगे का पदार्पण हुआ था। पावन गंगा जल के स्पर्श मात्र से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। कपिल मुनि ने वरदान देते हुए कहा था, -मातु गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढिय़ों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगी। गंगा जल का स्पर्श, पान, स्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करेगा। सूर्य की सातवीं किरण भारत वर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली है। सातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-जमुना के मध्य अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रांति या पूर्ण कुंभ तथा अद्र्धकुंभ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है।
मकर संक्रांति का पर्व राष्ट्रजीवन में परिवर्तन के संकल्प,सामाजिक एकता,जातिगत, भाषागत,क्षेत्रगत भेदभाव भुला कर एक सशक्त समाज का निर्माण करते हुए एक मजबूर राष्ट्र की नींव रखने का पर्व है। आओ मकर संक्रांति के तिल के लड्डुओं से हम एकदूसरे से मिल कर रहने का ज्ञान लें, समाज में घी-खिचड़ी की तरह बनें रहने की आदत सीखें। समाज एकजुट होगा तो संक्रांति अवश्य घटित होगी,नया सवेरा जरूर आएगा,रिश्तों की सर्द रातें जरूर ऊष्मा भरे दिवस में परिवर्तित होंगी।