काश, सनद बन जाती मगनलाल की यह पहल…..
योगेश भट्ट
आज जब उत्तर प्रदेश में सरकार के ‘एक्शन’ में होने पर उत्तराखंड में भी उसी तेजी की उम्मीद की जा रही है, तो तर्क दिए जा रहे हैं कि बदलाव के लिए सरकार को वक्त दिया जाना चाहिए। पहले ही दिन से बदलाव की उम्मीद किए जाने को पूर्वाग्रह और दुराग्रह की संज्ञा दी जा रही है,लेकिन बदलाव का संदेश किसी वक्त का मोहताज नहीं होता। यह सत्ताधारी दल भाजपा के ही एक विधायक मगनलाल ने बखूबी साबित किया ।
पहली बार निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे मगनलाल शाह को यह संदेश देने में एक दिन भी नहीं लगा। थराली विधानसभा सीट से जीत कर आए मगनलाल विधायक पद की शपथ लेने के लिए बिना किसी लाव लश्कर के, एक साधारण आदमी की तरह दुपहिया वाहन से विधानसभा पहुंचे। एक बार को तो यह लगा कि, उन्होंने सिर्फ चर्चा में आने के लिए यह किया है, जैसा कि अक्सर नेता करते दिखाई देते हैं। लेकिन मगनलाल अगले दिन भी उसी तरह सादगी के साथ दुपहिया वाहन में सवार होकर विधानसभा पहुंचे।
उत्तराखंड के लिए यह एक बड़ी खबर थी, लेकिन बावजूद इसके यह सुर्खियां नहीं बटोर पाई। राज्य बनने के बाद से अब तक संभवत: यह पहला मौका था, जब एक विधायक ने इस कदर सादगी का परिचय दिया। अभी तक तो होता यह रहा है कि साधन संपन्न विधायकों की तो बात ही छोड़िए, गरीब पृष्ठभूमि का उम्मीदवार भी चुनाव जीतने के बाद पूरे लाव लश्कर के साथ विधानसभा परिसर में दाखिल होता है। सच यह है कि उसी दिन से वह सही मायनों में जन-प्रतिनिधि नहीं रह जाता, बल्कि वीआईपी हो जाता है।
यही कारण है कि जन प्रतिनिधियों से भरोसा दिन प्रति दिन दरकता जा रहा है। मगनलाल शाह ने जो किया, कहने को तो वह कोई बहुत बड़ा काम नहीं है, लेकिन सही मायनों में देखा जाए तो यह ‘सोच’ से जुड़ा मुद्दा है। आज राजनीति में जिस बदलाव की हम बात कर रहे हैं, वह दरअसल इसी सोच से जुड़े बदलाव की ही बात है। बकौल मगनलाल, वे आम जनता के प्रतिनिधि हैं तो सदन में भी आम व्यक्ति की तरह ही आना चाहते हैं।
उनका कहना है कि वे पूरे पांच साल इसी सादगी के साथ सदन में आया करेंगे। यदि मगनलाल अपने इस दावे पर कायम रह पाए तो ऐसा करके वे सादगी की मिसाल तो कायम करेंगे ही साथ ही बढ़ती ट्रैफिक समस्या और फिजूलखर्ची को कम करने और पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने में भी अपना अहम योगदान देंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आरक्षित सीट से आने वाले मगनलाल शाह ने स्वप्रेरणा से यह पहल की है। हकीकत यह है कि उत्तराखंड को आज बदलाव के लिए इस तरह की सोच की ही दरकार है।
अगर जन-प्रतिनिधि इसी सादगी के साथ सदन में आने लगें तो उनके जन-प्रतिनिधि होने के मायने सार्थक हो जाएंगे। यह उत्तराखंड का दुर्भाग्य है कि राज्य गठन की तारीख से लेकर अब तक ‘सियासी ग्लैमर’ राजनेताओं के सर चढ़ कर बोलता रहा है। सरकारी बंगला, लालबत्ती लगी गाड़ी और गनर हासिल करना ही अधिकांश नेताओं का मकसद रहा है। वादे और दावे भले ही बड़े-बड़े किए जाते रहे हों, मगर जमीनी हकीकत यही है कि पांच साल में जन-प्रतिनिधि लखपति से करोड़पति हो जा रहे हैं।
जनता, आखिर क्या चाहती है? अक्सर यह राजनेताओं के लिए यक्ष प्रश्न बना रहता है। सच यह है कि आज राजनीति में नए विचार और नए दृष्टिकोण की जरुरत है। जनता चाहती है कि उसका प्रतिनिधि हमेशा उसके बीच बना रहे, और उस पर भरोसा कायम रहे। बहरहाल निराशाभरे दौर में सुदूरवर्ती विधानसभा क्षेत्र थराली के विधायक मगनलाल शाह ने एक उम्मीद जगाई है। काश, मगनलाल के इस संदेश को प्रदेश की सियासत ‘आत्मसात’ कर पाती।