‘प्रभु’ तेरी रेल की माया ‘प्रभु’ तू ही जाने

देहरादून। देश के इतिहास में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना संभवत: पहली परियोजना होगी, जिसका दो दशक में तीन बार शिलान्यास हो चुका है। दो बार सर्वे के नाम पर और एक बार निर्माण कार्य का शिलान्यास होने के बावजूद राष्ट्रीय महत्व की यह परियोजना हवा में लटकी है । कर्णप्रयाग के लिए रेल अभी भले ही ऋषिकेश से आगे ना खिसकी हो लेकिन ‘प्रभु’ कृपा के चलते इस परियोजना का दायरा चार धाम तक पहुंच गया है।
रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने बद्रीनाथ में जिस सर्वे का शिलान्यास किया वह ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना का ही विस्तार है। यह भी कहा जा सकता है कि परियोजना पर लगा लेबल बदल दिया गया है, इसे कहते हैं प्रभु की माया, अभी तक कांग्रेस के खाते में दर्ज यह परियोजना इस शिलान्यास के बाद अब मोदी सरकार के खाते में दर्ज हो गयी है, इस परियोजना का सौभाग्य कहा जाए या दुर्भाग्य कि दूसरी बार इसके सर्वे का शिलान्यास हुआ है। इससे दो दशक पहले सन 1996 में तत्कालीन रेल राज्यमंत्री सतपाल महाराज ने ऋषिकेश में इसके सर्वे का शिलान्यास किया था।
इसके बाद देढ दशक तक क्या हुआ किसी को नहीं मालूम। फिर साल 2011 में इस यह परियोजना नेशनल फ्लैगशिप प्रोग्राम के तहत राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं में शामिल हुई, इसी के साथ काम शुरू करने के लिए 4295 करोड़ रुपये की मंजूरी भी मिली। दिलचस्प यह रहा कि इस मंजूरी के बाद रेलवे ट्रैक बिछाने का शिलान्यास ऋषिकेश के बजाय परियोजना के दूसरे छोर, कर्णप्रयाग के नजदीक गौचर में हवाई पट्टी पर हुआ । रेलवे ट्रैक के निर्माणकार्य का शिलान्यास हवाई पट्टी पर, ऐसा अजूबा भी संभवत: देश में पहली बार ही हुआ होगा।
खैर, महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके छह साल बीत जाने के बाद आज की तारीख तक एक कीलोमीटर तो क्या एक इंच भी रेलवे पटरी नहीं बिछी। गजब देखिए कि डबल इंजन वाली सरकार ने इसका चारधाम तक विस्तार भी कर दिया , सवाल उठता है कि सरकार क्या करना चाहती है। सरकार गंभीर है भी या नहीं, सपने दिखाने के बजाय अच्छा तो यह होता कि पहले सरकार तेजी से ऋषिकेश- कर्णप्रयाग को पूरा करती , उसके बाद आगे की बात करती तथ्यों पर बात करें तो जिस ऋषिकेश-कर्णप्रयाग परियोजना की लम्बाई 125 किलोमीटर थी, अब उसका दायरा चारधाम तक बढ़ाए जाने के बाद यह 325 किलोमीटर पहुंच जाएगा ।
यदि हम इस परियोजना के निर्माण का आधार साल 2011 में हुए शिलान्यास को ही मान लें तो तब से अब तक इन छह सालों में जब एक किलोमीटर रेल लाइन नहीं बिछ पाई तो अंदाजा लगाइए कि 325 किलोमीटर लाइन बिछने में कितने वर्ष लगेंगे। जबकि इस परियोजना को पूर्ण होने का समय सरकार ने 2024 रखा हुआ है। इस लिहाज से तो पहाड़ पर रेल आज भी सपना ही है, फिलहाल तो प्रभु से यही उम्मीद है कि वे कर्णप्रयाग तक ही रेल पहुंचा दें।
कहीं ऐसा न हो कि चारधाम वाले ड्रीम प्रोजक्ट के चक्कर में मूल परियोजना पर ही ग्रहण लग जाए। जहां तक भारतीय रेल की ‘चाल’ का सवाल है तो यह किसी से छुपा नहीं है। आजादी के बाद सत्तर सालों में रेलवे पंद्रह हजार किलोमीटर भी नई पटरी नहीं बिछा पाया। जबकि पड़ोसी देश चीन केवल पिछले पंद्रह सालों में ही बाईस हजार किलोमीटर रेलवे ट्रैक और बारह हजार किलोमीटर बुलेट ट्रेन का ट्रैक बना चुका है।
साफ है कि चीन की रफ्तार हमसे कई गुना ज्यादा है। जिस परियोजना का जिक्र किया जा रहा है, वह दरअसल इसी चिंता से जुड़ी है। आज सरकार भले ही इस परिजोयना को चारधाम यात्रा के साथ जोड़ रही है, मगर सच यही है कि इसका देश के लिए इसका महत्व सामरिक दृष्टि से ज्यादा है। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से यह बेहद जरूरी परियोजना है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस सुस्त चाल से इसकी निर्माण प्रक्रिया चल रही है, उसे देख कर यकीन करना मुश्किल है कि आने वाले एक दशक में भी यह परवान चढ़ पाएगी।
मोदी सरकार के कार्यकाल के तीन साल पूरे होने को हैं और रेल मंत्री वादा करके गए हैं कि डेढ साल में इस परियोजना के सर्वे का काम पूरा हो जाएगा। रेलमंत्री का यह वायदा एक सपने से कम नहीं , लेकिन सरकार जानती है कि उत्तराखण्ड को सपनों से ही बहल जाने की आदत है द्य वरना राष्ट्रीय महत्व की इसी परियोजना पर काम कम और हल्ला ज्यादा ना हुआ होता , मौजूदा हालात से तो लगता है सरकार की दिलचस्पी परियोजना पूरी कराने से ज्यादा उसके श्रेय में हैं, अब आगे देखते हैं.. फिलहाल तो नया पुराना सभी कुछ प्रभु भरोसे है।