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लोकसभा अध्यक्ष ने नए सदस्यों को दिए गए अपनी बात उठाने के अधिक अवसर

देहरादून में  वर्ष 2016 के बाद आयोजित हो रहा सम्मेलन 

सम्मेलन में लोकसभा, राज्यसभा ,विधानसभा व विधान परिषदों के पीठासीन अधिकारी कर रहे हैं प्रतिभाग 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून। लोकसभा की महासचिव स्नेहलता श्रीवास्तव ने कहा, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा की गई पहलों के कारण ही 17वीं लोकसभा के दो सत्र अत्यंत महत्वपूर्ण रहे, जिसमें सभा में मामलों को उठाने के लिए नए सदस्यों को ज्यादा मौके दिए गए और अनेक महत्वपूर्ण विधानों को पारित किया गया है।

लोक सभा महासचिव स्नेहलता श्रीवास्तव ने मीडिया कर्मियों से बातचीत में सम्मेलन की विशेषताओं और उद्देश्यों पर रोशनी डाली। उन्होंने कहा वर्ष 2016 के बाद यह सम्मेलन देहरादून में हो रहा है। उन्होंने बताया कि इस सम्मेलन में लोकसभा, राज्यसभा ,विधानसभा व विधान परिषदों के पीठासीन अधिकारी बैठकर विचार मंथन करते हैं। ये ऐसा मंच है जहां सभी बेस्ट प्रेक्ट्सिेज और अनुभवों का साझा किया जाता है और एक मत भी बनता है।

उन्होंने कहा लोकसभा, राज्यसभा व विधानसभा सभी स्वायत्त संस्थाएं हैं, और इनके ऊपर कोई नहीं है। ऐसे सभी स्वायत्त संस्थाएं आपस में मिलकर एक-दूसरे से बात करके सीखते हैं और जो बेहतर होता है उसे लागू करके देश की प्रगति में योगदान देते हैं। संसद या सदन की कार्यवाही के लिए जो भी प्रक्रिया हैं, सम्मेलन के दौरान उन पर चर्चा होती है। मसलन, कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनमें स्पीकर को पूरे अधिकार दिए गए हैं।

देहरादून में पीठासीन अधिकारियों के अखिल भारतीय सम्मेलन के पहले विभिन्न विधानमंडलों के सचिवों की विधान सभाओं और परिषदों के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की गई।

इस दौरान लोकसभा महासचिव स्नेहलता ने कहा कि सदस्यों की क्षमता के विकास के लिए सभा के समक्ष विचाराधीन विधेयकों पर संक्षिप्त जानकारी देने संबंधी नौ सत्रों का आयोजन किय गया था। एक अन्य पहल के रूप में, सदस्यों को अपने विधायी और संसदीय कर्तव्यों के निर्वहन में सहायता प्रदान करने के लिए भी एक सूचना और संचार केंद्र की स्थापना की गई है।

इस केंद्र ने एक महीने की संक्षिप्त अवधि के दौरान संसद सदस्यों को 6800 टेलीफोन कॉलें की गई। ‘विधानमंडलों में सभा की कार्यवाही से शब्दों को हटाए जाने की प्रक्रिया की समीक्षा किए जाने की आवश्यकता’ और ‘लोगों तक पहुंचने के लिए विधानमंडलों के जरिए नए उपाय किए जाने’ विषयों पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि नए डिजिटल, सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के कारण सभा की कार्यवाहियों से शब्दों को हटाए जाने की प्रक्रिया की जल्द समीक्षा करने की आवश्यकता है।

वहीं, बैठक में राज्यसभा के महासचिव देश दीपक वर्मा ने कहा कि विधानमंडलों को सरकार और जनता के बीच मजबूत कड़ी के रूप में प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए अपनी भूमिका की समीक्षा करनी चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लेखित सभी 22 भाषाओं के लिए राज्यसभा में कंसल्टेंट इंटरप्रेटर को पेनल में रखा गया है। जब और जैसे जरूरत हो, उनकी सेवाओं का लाभ लिया जाता है। उन्होंने कहा इससे संबंधित सभी मुद्दों का समाधान तीन महीने के भीतर कर दिया जाना चाहिए, जिससे दल परिवर्तन संबंधी कानून का पूरी तरह पालन किया जा सके।

इससे पहले, उत्तराखंड विधान सभा के सचिव, श्री जगदीश चंद्र ने आगंतुक प्रतिनिधियों का स्वागत किया । सचिवों के सम्मेलन में लोक सभा और राज्य सभा के साथ-साथ सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, पश्चिम बंगाल, नागालैंड, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, ओडिशा, राजस्थान और उत्तराखंड के प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं ।

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