भेड़-बकरियों की तरह जेलों में ठूंसे हैं बंदी कैदी
देहरादून। मैदानी क्षेत्र की जेलों में क्षमता से अधिक बंदियों को भेड़-बकरियों की तरह ठूंसा गया है, जैसा हाल रेलवे स्टेशन, बस अड्डों व अस्पतालों में देखने को मिलता है, कमोबेश वैसा ही हाल सूबे की जेलों का भी है, सालों पहले पहले स्थापित की गई इन जेलों की बैरकें बंदियों से ठसाठस हैं, यहां उन्हें बामुश्किल पांव पसारने की ही जगह मिल पा रही है। इस बात के लिए बाकायदा मंगलौर से विधायक काजी निजामुद्दीन के विधानसभा सत्र में पूछे सवालों से उत्तराखंड की जेलों की दुर्दशा का खुलासा हुआ था।
सूबे के आठ जिलों में स्थापित जेल बंदियों के बोझ से कराह रही हैं, हल्द्वानी, देहरादून व हरिद्वार की जेलों में तो क्षमता से तीन गुने अधिक बंदी रखे गए हैं, इससे इन जेलों में सामान्य व्यवस्था बनाए रखने में कारागार प्रशासन को नाकों चने चबाने पड़ जा रहे हैं, इसकी वजह बंदी रक्षकों के तमाम पद खाली पड़े होना भी है, हैरत देखिए कि राज्य गठन के डेढ़ दशक बाद भी सूबे के पांच जिलों में अब तक कारागार स्थापित करने का खाका तक तैयार नहीं हो पाया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तराखंड की जेलों में 11 कारागार हैं, इनमें 3378 बंदियों को रखने की क्षमता है, क्षमता के मुकाबले जेलों में 4421 बंदियों को रखा गया है, इनमें 4260 पुरुष और 161 महिला बंदी शामिल हैं, यह आंकड़ा 30 मई 2017 तक का है, देहरादून जेल की क्षमता 580 बंदियों की है, यहां 1121 पुरुष और 54 महिला बंदियों को ठूंसा गया है, यही हाल हल्द्वानी और हरिद्वार जेल का है।
हल्द्वानी कुमाऊं और हरिद्वार गढ़वाल की सबसे बड़ी जेल हैं, दोनों ही जेलें मुर्गी बाड़ा बनी हैं, हल्द्वानी में 260 की क्षमता की तुलना में 907 बंदी हैं, इनमें 882 पुरुष और 25 महिला बंदी हैं, हरिद्वार जेल की क्षमता 840 है, लेकिन यहां 1075 पुरुष और 50 महिला बंदियों को रखा गया है. नैनीताल जेल में क्षमता मात्र 71 बंदियों के रखने है, लेकिन यहां भी 114 बंदियों को रखा गया है,
वहीँ सितारगंज केंद्रीय कारागार में 352, संपूर्णानंद जेल सितारगंज में 47, पौड़ी जिले में 161, टिहरी में 79, चमोली में 76, अल्मोड़ा में 133, रुडक़ी में 252 बंदियों को रखा गया है। विधानसभा सत्र में जेलों की हालत का मुद्दा उठने के बाद अब इनमें सुधार की उम्मीद भी जगी है, जेलों की सुरक्षा व्यवस्था और आधुनिकीकरण का मुद्दा शासन स्तर पर कई बार उठ चुका है। कई जेलों का प्रस्ताव शासन में सालों से लंबित है।
वहीं इस बारे में जब सरकार के प्रवक्ता और शहरी विकास मंत्री से बात की गई तो उन्होंने इस बात को स्वीकार करते हुए कहा कि ये चिंता का विषय है, सरकार इस बारे में विचार कर रही है जेल में बंद कैदियों सुधार किस तरह किया जाए इसकों सरकार कई योजनाए चला रही है, वहीं जेलों की क्षमता किस तरह बढ़ाई जाए इस पर भी विचार किया जा रहा है, इसके आलावा जो प्रस्ताव बनाए पहले आए है उनका भी अध्यन किया जा रहा है।