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अपर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री के खिलाफ भेजा पत्र हुआ लीक !

प्रधानमंत्री सहित भाजपा राष्ट्रीय व प्रदेश अध्यक्ष तक से की गयी शिकायत 

सत्ता में अपनी पकड़ के चलते ओम प्रकाश अपने को बचाने में रहे कामयाब

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून : उत्तराखंड के अपरमुख्यसचिव के कार्यप्रणाली के खिलाफ भाजपा सहित प्रदेश के बुद्दिजीवी वर्ग में ख़ासा आक्रोश है। जिसका खामियाजा मुख्यमंत्री तक को भुगतना पड़ रहा है। भाजपा की अन्तरंग बैठकों से लेकर संघ परिवार की बैठकों तक में अपर मुख्यसचिव के कृत्यों की गूँज गाहे-बगाहे सुनने को मिलती रही है। लेकिन अपर मुख्यसचिव ओम प्रकाश ने न तो अपने काम करने का तरीका ही बदला और न अपना व्यवहार। परिणाम स्वरूप अब धीरे-धीरे भाजपा कार्यकर्ताओं सहित सूबे के लोगों का गुस्सा बाहर आने लगा है। ऐसा ही एक पत्र ‘’देवभूमि मीडिया’’ के हाथ लगा है जिसपर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के अपना कवरिंग पत्र लगाकर सूबे के मुख्यमंत्री से मामले में शीघ्र कार्रवाही करने की अपेक्षा मुख्यमंत्री से की है। ऐसा नहीं कि यह पहला पत्र है इससे पहले भी कई लोगों ने कई पत्र देश के प्रधान मंत्री से लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक को भेजे हैं लेकिन सत्ता में अपनी पकड़ के चलते ओम प्रकाश अपने को बचाने में कामयाब रहे हैं। इतना ही नहीं अपर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री पर गुटबाज़ी करने का भी आरोप पार्टी कार्यकर्ताओं ने लगाया है।  सूत्रों का तो यहाँ तक दावा है कि अपर मुख्य सचिव ने दिल्ली में सत्ता के गलियारों में लायजनिंग के लिए एक प्रवक्ता को अपर स्थानिक आयुक्त तक बनाकर बैठाया हुआ है। पत्र में यहाँ तक कहा गया है कि यदि मुझ पर या मेरे परिवार पर कहीं भी कोई जानलेवा हमला होता है या कोई अनहोनी घटना अथवा मेरी हत्या होती है तो इसका जिम्मेदार अपर मुख्यसचिव ओम प्रकाश को समझा जाय।

पत्र में भाजपा के एक भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा है कि ओमप्रकाश (आई.ए.एस.) जो कि वर्तमान में अपर मुख्यसचिव, मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात हैं, के इशारे पर मुझे विगत 15 बरस से दी गई सुरक्षा हटा दी गई। ज्ञात रहे कि राज्य सरकार द्वारा मुझे पुलिस गार्ड सुरक्षा तब भी निरन्तर जारी रही थी, जब दो बार 10 साल तक उत्तराखंड में विपक्षी काग्रेंस पार्टी की सरकारे रहीं।

प्रधान मंत्री कार्यालय को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि ओमप्रकाश मुझसे काफी पहले से व्यक्तिगत ईर्ष्या व रंजिश रखते हैं। इसकी शुरुआत तब हुई, जब फरवरी 2010 में हमारी पार्टी की सरकार ने पार्टी में मेरी सेवाओं को देखते हुए मुझे उत्तराखंड बीज एवं तराई विकास निगम का अध्यक्ष बनाया था। उस समय ओमप्रकाश कृषि विभाग में सचिव पद पर तैनात थे। वे राज्य बनने के बाद 12-13 बरस तक इसी कुर्सी पर जमे रहे। 19 फरवरी 2010 से 14 नवम्बर 2011 तक मात्र पौने दो बरस के संक्षिप्त कार्यकाल में मैंने राज्य बीज निगम में सरकारी खजाने से कई वर्षों से चली आ रही सरकारी धन की खुली लूटपाट व भ्रष्टाचार के रास्ते बंद करवाने की भरसक कोशिशें कीं। इसी का परिणाम था कि जो बीज निगम मेरे पूर्व कार्यकाल में हमेशा भारी घाटे में रहता आया था, उसे एक साल के भीतर ही 11.92 करोड़ रुपये की वास्तविक बचत हुई। साथ ही 3.05 करोड़ रू. का कर पूर्व शुद्ध लाभ हुआ। मैंने प्रत्यक्ष तौर पर पाया कि बीज निगम में भारी भ्रष्टाचार में लिप्त कई अधिकारियों को तत्कालीन प्रमुख सचिव (कृषि) ओमप्रकाश का सीधा संरक्षण व वरदहस्त मिला हुआ था। तत्कालीन समय में मैंने इस बाबत एक शिकायती पत्र 29 मार्च 2013 के द्वारा पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को भी अवगत कराया था। राज्य बीज निगम के बदनाम-भ्रष्ट अधिकारियों पर निलंबन की कार्रवाई के बाद भी ओमप्रकाश दोषी अधिकारियों को पूरा संरक्षण देते रहे। इसका प्रमाण यह है कि 2012 में जब हमारी पार्टी सरकार से हटी व कांग्रेस के सत्ता में आते ही ओमप्रकाश ने बिना किसी आधार पर उन सभी भ्रष्ट दोषी अधिकारियों को बहाल करवा दिया, जिनके खिलाफ पुख्ता सबूतों के आधार पर मैंने निगम के अध्यक्ष की हैसियत से निलंबन व बर्खास्तगी का कड़ा कदम उठाया था।

भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि हाल ही में यानि जून 2017 के आखिरी सप्ताह में राज्य बीज निगम के जिन 10 भ्रष्ट अधिकारियों को करोड़ों रूपये के सरकारी धन के गबन के आरोप में निलंबित किया गया और जिनके खिलाफ एफ.आइ.आर. की कार्रवाई हो रही है, उनमें से अधिकांश भ्रष्ट अधिकारियों को मैंने वर्ष 2010-11 के राज्य बीज निगम के अध्यक्ष के तौर पर जांच के बाद सेवाओं से निलम्बित व एक वरिष्ठ अधिकारी आर.के. निगम को बर्खास्त करवायाथा। आश्चर्य यह है कि तब मेरे प्रयासों सेदंडित किये गये इन सारे भ्रष्ट अधिकारियों को ओमप्रकाश खुला संरक्षण देते रहे। इसका जीता जागता प्रमाण यह है कि वर्ष2012 में कांग्रेस सरकार आते ही प्रमुख सचिव कृषि के पद व प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए ओमप्रकाश ने उन सभी भ्रष्ट अधिकारियों को आश्चर्यजनक तरीके से वापस सेवा पर बहाल करवा दिया।

पत्र में कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य बीज निगम आज ओमप्रकाश जैसे उच्च पदों पर बैठे नौकरशाहों के भ्रष्टाचार, व लूट-खसोट को प्रश्रय देने की वजह से भारी घाटे में होने कारण आज बंद होने के कगार पर है। देश के इस प्रतिष्ठित बीज निगम व उत्तराखंड राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि की मौजूदा दुर्दशा के लिए यदि कोई एक व्यक्ति जिम्मेदार है तो उसका नाम आई.ए.एस. ओमप्रकाश है जो कि लगातार 12-13 वर्षों से राज्य में कृषि सचिव व बाद में प्रमुख सचिव (कृषि) के तौर पर निगम के पूरे सर्वेसर्वा बने रहे। उनके इशारे के बिना राज्य बीज निगम में कोई पत्ता तक नहीं हिल सकता था। ऐसी दशा मेंउनके संपूर्ण कार्यकाल में बीज निगम में व्याप्त रहे अथाह भ्रष्टाचार के लिए श्री ओमप्रकाश को निजी तौर पर दोषी क्यों नहीं माना जा रहा।

पत्र में लिखा गया है कि ओमप्रकाश चूंकि राज्य में हमारी पार्टी की सरकार आने के बाद वर्तमान में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री जी के कार्यकाल में ताकतवर बन चुके हैं इसलिए राज्य की जनता के हित में काम करने के बजाय पहले दिन से ही वह मुझसे निजी बदला लेने, मेरे खिलाफ दुष्प्रचार करने और मेरी राजनीतिक व सामाजिक छवि खराब करके मुझे पार्टी के भीतर-बाहर अलग-थलग कर पर मुझे नेस्तनाबूद करने पर तुले हैं। ज्ञात रहे कि जब मैं (वर्ष 2010-11) राज्य बीज निगम के अध्यक्ष के तौर पर कार्य कर रहा था तो मुझे इस पद से हटाने के लिए उन्होंने मेरे खिलाफ खुद ही फर्जी शिकायतों का जाल बुनकर मनगंढ़त झूठे और शरारतपूर्ण तरीके से बेनामी शिकायती पत्र लिखवाए। तथा उन फर्जी नामों व पतों से शिकायतों को मेरे खिलाफ इस्तेमाल करके मेरी छवि खराब करने की कुचेष्टा की। चार साल पूर्व काफी संयम बरतने के बाद भी जब पानीसिर से ऊपर गुजरने लगा व कांग्रेस सरकार में गृहसचिव पद पर बैठकर ओमप्रकाश अपनी हरकतों से बाज नहीं आए तो विवश होकर मैंने 1 अप्रैल 2013 को उत्तराखंड के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (डी.जी.पी.) को पत्र लिखकर अपने व परिवार की जान पर खतरे की आशंका देखते हुए सुरक्षा के लिए पत्र लिखा था (जिसकी प्रतिलिपि संलग्न है)। बाकी तथ्यों का विवरण 29 मार्च 2013 के संलग्न शिकायती पत्र में विस्तारपूर्वक दिया गया है।

पत्र में कहा गया है कि  प्रदेश में पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भी श्री ओमप्रकाश अपने कांग्रेसी आकाओं को खुश रखने और हमारी पार्टी की छवि खराब करने के षड्यंत्र में आज भी निरंतर जुटे हुए हैं। मौजूदा सरकार में भी मुख्यमंत्री कार्यालय में अति महत्वपूर्ण संवेदनशील पर रहते हुए वे राज्य में मृतप्राय पड़ी कांग्रेस को राज्य विधानसभा के पिछले सत्र के अंतिम दिनअनर्गल मुद्दे थमाने में सफल रहे। उनकी इन्हीं हरकतों से हमारी सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों को विधानसभा पटल पर असहज स्थिति का सामना करना पड़ा है।

शिकायती पत्र में लिखा गया है कि यह सर्वविदित है कि ओमप्रकाश मुझसे व्यक्तिगत रंजिश रखते हैं। वे राज्य व राज्य के बाहर कहीं भी मुझ पर हमला करवा सकते हैं। इसी कुटिल उद्देश्य के लिए उनके इशारे पर 15 बरस से चली आ रही शासन व जनपद स्तर की मेरी सुरक्षा हाल मे अचानक हटा दी गई है। श्री ओमप्रकाश का पूरा मकसद यही है कि जब मुझ पर कोई हमला हो तो उसका कोई चश्मदीद गवाह तक न मिले। मैं अपनी ही पार्टी की सरकार के शासन काल में अपनी जान पर आए गंभीर खतरे में जी रहा हूँ। श्री ओमप्रकाश मेरी हत्या करवाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। अपने निजी हितों को साधने के लिए ओमप्रकाश मुख्यमंत्री कार्यालय का जिस निरंकुशता से निजी स्वार्थो की पूर्ति के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं,वह लोक सेवक के तौर पर उनके गलत आचरण व पद दुरुपयोग का अत्यन्त गंभीर मामला है। पार्टी के एक कार्यकर्ता की हैसियत से मेरी बड़ी चिंता यह है उनकी कुटिल व अवांछित चालों से उत्तराखंड मेंहमारी पार्टी व सरकार की छवि पर गंभीर आंच आ सकती है।

पत्र में संदेह व्यक्त किया गया है कि यह मुमकिन हो सकता है कि ओमप्रकाश अपने भ्रष्टाचार व कुकृत्यों से ध्यान हटवाने के लिए वे मेरे इस पत्र को राजनीतिक रंग देने का पैंतरा चलाएं क्योंकि वे शातिराना तरीके से पाक साफ निकलकर खुद को मासूम साबित करने की चालों में माहिर हैं। लेकिन मैं पार्टी नेतृत्व व सभी संबंधित पक्षों को यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मुझे अपने अग्रज व प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी के नेतृत्व में पूरी आस्था है। मुझे नहीं लगता है कि ओम प्रकाश मेरे खिलाफ निजी बदले की दुर्भावना से जो भी षड्यंत्र रच रहे हैं, उस पर हमारे मुख्यमंत्री जी की जरा भी सहमति होगी। लेकिन मुख्यमंत्री को अंधेरे में रखकर उनका अपर मुख्य सचिव एकदम निरंकुश और बेलगाम है तो यह पूरी पार्टी व नेतृत्व के लिए बेहद चिंता व जांच का विषय होना चाहिए।

अंत में पत्र में कहा गया है कि पार्टी के लिए पूरी तरह समर्पित एक निष्ठावान कार्यकर्ता के नाते मैं उत्तराखंड कैडर के आई.ए.एस. अधिकारी ओमप्रकाश से जुड़े केंद्र सरकार, राज्य सरकार के महत्वपूर्ण विभागों व वरिष्ठ पार्टी पदाधिकारियों को अवगत कराना चाहता हूँ कि मैं पार्टी की गतिविधियों व कार्यक्रमों के अलावा अपने कामकाज के सिलसिले में लगातार दौरे पर रहता हूं। हल्द्वानी में मेरा परिवार व बीमार माता-पिता अकेले रहते हैं। मुझ पर या मेरे परिवार पर कहीं भी कोई जानलेवा हमला होता है या कोई अनहोनी घटना अथवा मेरी हत्या होती है तो इसके लिए ओमप्रकाश आईएएस अपर मुख्यसचिव मुख्यमंत्री, उत्तराखंड शासन, देहरादून जोकि मूल रूप से बिहार राज्य के बांका जनपद के ग्राम व पुलिस थाना बौंसी, मौजा डलिया, तथा वर्तमान में 107, अंसल ग्रीन वैली, दून विहार के पीछे, जाखन, देहरादून के निवासी हैं, को व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदार माना जाये। भारत सरकार के केन्द्रीय कार्मिक एवं लोक शिकायत मंत्रालय स्तर पर लोक सेवक के तौर पर उनके आचरण और उन पर लगे गंभीर आरोपों की उच्चस्तरीय जांच हो। जाहिर है कि उनके विरुद्ध निष्पक्ष कार्रवाई तभी मुमकिन हो सकेगी जब जांच अवधि तक उन्हें सभी सरकारी दायित्वों से मुक्त रखा जाय।

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