UTTARAKHAND

विधानसभा की कमेटी ने जिला स्तरीय प्राधिकरणों को खत्म करने की सिफारिश

सिफारिश की रिपोर्ट पर मंत्रिमंडल की बैठक में होगा आखिरी फैसला

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

विधानसभा कमेटी की मुख्य सिफारिशें

  • नए बने जिला स्तरीय विकास प्राधिकरण पूरी तरह खत्म हों 
  • अगर प्राधिकरण बने रहते हैं तो ग्रामीण क्षेत्रों को बाहर किया जाए
  • नगरीय क्षेत्रों में भी विकास शुल्क और लेबर सेस खत्म किया जाए
  • पहाड़ पर सैटबैक, फ्रंटबैक के मानकों को खत्म किया जाए
  • सड़क से 200 मीटर हवाई दूरी के मानक को खत्म किया जाए
  • सड़क के बीच भूमि पर 60 मीटर तक ही नक्शे की अनिवार्यता हो।
  • नक्शे मंजूर करने की समय सीमा अधिकतम एक माह तय हो 
देहरादून :  जिला स्तरीय विकास प्राधिकरणों को खत्म करने की सिफारिश विधानसभा की कमेटी ने कर दी है लेकिन इसका फैसला मंत्रिमंडल की बैठक में अंतिम रूप से ही हो पाएगा। हालांकि भाजपा सरकार ने ही 2017 में सभी जिलों में विकास प्राधिकरण गठित किए थे, जबकि इससे पूर्व राज्य में कुल पांच विकास प्राधिकरण अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे थे। जनता को तमाम समस्याओं का सामना इनके कारण करना पड़ रहा था इसके चलते प्रदेश की जनता सहित विधायक भी इन प्राधिकरणों को खत्म करने की मांग कर रहे थे।
जिलास्तरीय प्राधिकरणों के बढ़ते विरोध के बाद विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद अग्रवाल ने भाजपा विधायक चंदनराम दास की अध्यक्षता में सात सदस्यीय कमेटी बनाकर रिपोर्ट देने को कहा था। इस कमेटी में विधायक चंदन रामदास, सुरेंद्र सिंह जीना, महेंद्र भट्ट, शक्ति लाल शाह, ऋतु खंडूड़ी (सभी भाजपा), करन माहरा और ममता राकेश (कांग्रेस) शामिल थे। इसकी रिपोर्ट विधानसभा के जरिए राज्य सरकार तक अब पहुंच गई है। मिली जानकारी के अनुसार विधानसभा सदस्यों ने इन जिला विकास प्राधिकरणों को समाप्त करने की संस्तुति विधानसभा अध्यक्ष से की है।
मामले में आवास मंत्री मदन कौशिक ने बताया कि अब इस विषय पर कैबिनेट में ही अंतिम निर्णय होगा। दूसरी ओर, समिति की सदस्य और कांग्रेस विधायक ममता राकेश ने कहा कि विकास प्राधिकरणों के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत ज्यादा परेशानी हो रही है। अपनी ही जमीन पर लोग घर नहीं बना पा रहे हैं। औद्योगिक क्षेत्रों के नक्शे सीडा के जरिये पास होने चाहिए, लेकिन इसमें विकास प्राधिकरण के मानक भी आड़े आ रहे हैं। प्राधिकरणों का दायरा 2017 से पहले की तरह ही बड़े शहरों तक सीमित रहना चाहिए।      
जिलास्तरीय इन विकास प्राधिकरणों के खिलाफ पक्ष और विपक्ष के विधायक एक मत हैं। कमेटी में शामिल विधायकों ने एक राय दी है। इससे पहले विधानसभा में विपक्षी दल कांग्रेस के साथ ही भाजपा विधायक भी प्राधिकरणों के खिलाफ आवाज उठा चुके हैं। दो बार सदनों में यह विषय उठने पर बीते वर्ष सितंबर को आयोजित सत्र में विधान सभा अध्यक्ष ने कमेटी गठित की थी। भाजपा विधायक विधानसभा चुनाव से पहले इसके समाधान के लिए सरकार पर दबाव बनाए हुए हैं।क्योंकि प्राधिकरणों के कारण सूबे के पर्वतीय जिलों में नक्शा पास कराने में लोगों को एक प्रतिशत लेबर सेस के केंद्रीय कानून होने के चलते पचास हजार रुपये अतिरिक्त चुकाने पड़ रहे हैं।

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