सत्ता से हटते ही लौट आती में नेताओं की संवेदना ?
योगेश भट्ट
प्रीतम सिंह प्रदेश की राजनीति में कोई छोटा नाम नहीं हैं। जिस क्षेत्र से वे आते हैं उस क्षेत्र की एक मजबूत राजनीतिक विरासत के वाहक हैं। उनके परिवार का प्रदेश की राजनीति में वर्षों से मजबूत दखल रहा है। इस सबके बाद भी उन्हें यदि अपनी विधानसभा क्षेत्र के अस्पतालों में डाक्टरों की नियुक्ति के लिए मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखनी पड़ रही है तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक बात दूसरी क्या हो सकती है?
पिछली सरकार में पूरे पांच साल तक कैबिनेट मंत्री रहे प्रीतम सिंह को डाक्टरों की कमी का ध्यान अब विपक्ष में रहते हुए आ रहा है। उस पर भी तब, जब जौनसार-बावर में स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में सड़क पर प्रसव होने की घटनाएं एक के बाद एक सामने आ रही हैं। निसंदेह सरकार के लिए यह शर्मनाक स्थिति है कि उसके राज में प्रसव पीड़ा से कराहती महिलाओं को सड़क पर बच्चा जनने को मजबूर होना पड़ रहा है।
इक्का- दुक्का घटनाएं हों तो अपवाद भी माना जा सकता है, मगर इस तरह की घटनाओं का सिलसिला बदस्तूर जारी है। इसके लिए सरकार तो जिम्मेदार है ही, विपक्ष भी कम दोषी नहीं है क्योंकि कल तक प्रदेश मे इसी विपक्ष की सरकार थी। प्रीतम सिंह राज्य गठन के बाद हुए हर चुनाव में जीतते आए हैं। सत्रह साल की इस अवधि में से पूरे दस साल वे सरकार में कद्दावर मंत्री रहे हैं।
इसके बावजूद वे अपने विधानसभा क्षेत्र के अस्पतालों में डाक्टर और विद्यालयों में शिक्षक मुहैया नहीं करा पाए तो ऐसे राजनीतिक जीवन पर धिक्कार है। ऐसी लोकप्रियता पर भी धिक्कार है जो लोक के ही काम न आ सके। इसके बाद भी जनता बार-बार उन पर भरोसा कर रही है तो समझ लीजिए कि यह भरोसा नहीं मजबूरी है, व्यवस्था का खोट है।
प्रीतम सिंह का जौनसार-बावर के विकास में कितना योगदान है यह इसी से समझा जा सकता है कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तक उनके खुद के गांव में स्थित जूनियर स्कूल तथा एएनएम सेंटर बंद पड़े हुए थे। उन पर ताले लटके हुए थे। लेकिन तब प्रीतम सिंह को ये सब नजर नहीं आया। आज जब विपक्ष में हैं तो डाक्टरों की कमी का रोना रो रहे हैं।
दोहरेपन की इससे बड़ी हद और क्या हो सकती है? प्रीतम सिंह से कोई ये पूछे कि जब वे डाक्टरों की कमी का रोना रोते हुए मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिख रहे थे, तब क्या एक क्षण के लिए ही सही उनके दिल में यह बात नहीं आई कि इसके लिए वे भी दोषी हैं। तब क्या उन्हें यह अहसास नहीं हुआ कि जो जनता इतने सालों से उन्हें सर आखों पर बिठाती आ रही है, उसके लिए अस्पतालों में डाक्टर मुहैया कराना उनका परम धर्म है?
पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान भी सड़क पर प्रसव की खबरें खूब सामने आईं, लेकिन तब प्रीतम की संवेदना कहां चली गई थी? यह कैसी संवेदना है जो सिर्फ विपक्ष में रहने पर ही जागती है? जनता का ये दर्द भी न जाने कैसा है जो राजनेताओं को सरकार में रहते नहीं, सिर्फ विपक्ष में रहते महसूस होता है?