लॉकडाउन की वापसी बताती है कि कोरोना महामारी को वैश्विक स्तर पर मात देना अभी भी है एक कठिन लक्ष्य!
कमल किशोर डुकलान
जब दुनिया के कई देशों में कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या पहले के मुकाबले कम होनी शुरू हो गई है तब अपने देश में इसकी सूरत बनती न दिखना चिंता की बात है। यह सही है कि अपने देश में कोरोना संक्रमण की चपेट में आए लोगों की मृत्यु दर कहीं कम है और ठीक होने वाले मरीजों की दर भी साठ प्रतिशत से अधिक हो गई है, लेकिन यदि कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या नहीं थमी तो फिर जन जीवन को सामान्य करने में मुश्किल ही पेश आनी है और इसका मतलब होगा कारोबार का गति न पकड़ना और आíथक मुश्किलों का दौर लंबा खिंचना।
कोरोना वायरस से उपजी कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में जिस तरह से लगातार संक्रमितों की बढ़ती संख्या से राज्य सरकारों को लॉकडाउन का सहारा लेना पड़ रहा है उससे तो यहीं प्रतीत होता है,कि आने वाले लम्बे समय तक जन सम्पति और आर्थिक जगत के लिए शुभ संकेत नहीं है।
बिहार,बंगाल, उतर प्रदेश एवं उत्तराखंड के मैदानी जिलों में लॉकडाउन की वापसी यही बताती है कि कोरोना महामारी को मात देना अभी भी एक कठिन लक्ष्य बना हुआ है। हाल-फिलहाल दुनिया को इस महामारी से निजात मिलती नहीं दिख रही है।
जुलाई के प्रथम सप्ताह तक देश में कोरोना संक्रमित प्रतिदिन 10-12 हजार सामने आ रहे थे, द्वितीय सप्ताह तक यह संख्या 20-22 हजार से अधिक हो गई और अब आज की स्थिति में यह संख्या 30 हजार तक जा पहुंची है। यदि यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब आने वाले महीनों में प्रतिदिन एक लाख नए संक्रमित सामने आ सकते हैं।
ऐसे समय में जब दुनिया के कई देशों में कोरोना संक्रमितों की बढ़ती संख्या पहले के मुकाबले कम होनी शुरू हुई है, तब भारत के अनेकों राज्यों में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढना अत्यन्त चिंता का विषय है।
यह भी सही है कि अन्य देशों की अपेक्षा भारतीयों में इस संक्रमण से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होने के कारण भारत में कोरोना संक्रमण की चपेट में आए लोगों की मृत्यु दर में कमी है साथ ही ठीक होने वाले मरीजों की दर भी साठ से पैंसठ प्रतिशत से अधिक हो गई है, लेकिन यदि कोरोना संक्रमितों की संख्या इसी तरह बढ़ती रही तो फिर जन जीवन को सामान्य करने में काफी मुश्किलें आ सकती है, इसका मतलब होगा कि भारत के कारोबार की गति को काफी मुश्किलों सामना करना पड़ सकता है।
इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है,कि कोरोन संक्रमितों की अधिक संख्या में टेस्ट करने और संभावित संक्रमितों तक पहुंच बढ़ाने से कोरोना पर लगाम लगाने में मदद अवश्य मिलेगी, लेकिन बात तो तभी बनेगी जब आम जन कोरोना संक्रमण से बचने के लिए पर्याप्त सावधानी बरतेंगे। इसे निराशाजनक ही कहा जायेगा कि सावधानी बरतने के बजाय लापरवाही का परिचय दिया जा रहा है,जिस कारण राज्य सरकारों को एतिहात के तौर पर लॉकडाउन की वापसी करनी पड़ रही है।
यह समझना कठिन है कि मास्क लगाने, स्वयं की साफ-सफाई को लेकर सतर्क रहने और अति आवश्यक कार्य से अपने गंतव्य तक जाने पर एक-दूसरे से शारीरिक दूरी बनाने के प्रति सजगता क्यों नहीं दिखाई जा रही है? यह अजीब है कि कड़ाके की ठंड अथवा लू के प्रकोप के दौरान तो लोग बिना किसी के कहे अपने चेहरे को ढक कर रखते हैं, लेकिन लाइलाज कोविड-19 महामारी से बचने के लिए मास्क लगाने एवं शारीरिक दूरी के प्रति सचेत नहीं दिख रहे हैं। देश में कोविड-19 के आभास होते ही सरकारी अथवा सामाजिक स्तर पर सतर्कता बरतने के लिए जन जागरुक करने के बाद भी आते दिन संक्रमितों की संख्या निरन्तर बढना आखिर इसे लापरवाही कहां जा सकता है।
नि:संदेह आम जन की अपने बचाव में लापरवाही कोरोना से लड़ाई को कठिन बनाने के साथ ही जन जीवन को सामान्य करने एवं देश की समस्याओं को बढ़ाने का काम कर रही है। बेहतर हो कि इस पर ध्यान दिया जाए कि यदि हर कोई सही तरह मास्क लगाए, नियमित साफ-सफाई रखें, शारीरिक दूरी को लेकर सजग रहे तो कोविड-19 से उत्पन्न हालात बदल सकते हैं।