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कोंडागांव (बस्तर) निवासी अशोक चक्रधर ने बनाया अद्भुत दीपक

जादुई दिये के पीछे दाबलंघिका का सिद्धांत…..!

साईफन सिद्धांत पर काम करता है यह दीपक 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 
देश में प्रतिभाएं तो हैं लेकिन जरुरत है उन्हें निखारने की उन्हें प्रोत्साहित करने की जी हां हम बात कर रहे हैं नेशनल मेरिट एवार्ड से सम्मानित कुम्हार पाड़ा, कोंडागांव (बस्तर) निवासी अशोक चक्रधारी की जिन्होंने यह जादुई दीपक बनाया है जो 24 घंटे तक जलता रहता है।  श्री शोक चक्रधारी को नेशनल मेरिट एवार्ड से सम्मानित किया गया है।
आइए अब आपको बताते हैं यह दीया कैसा है जिसे मिट्टी से बनाया गया है, यह दिया दो हिस्सों में है जिसमें नीचे का हिस्सा एक गोलाकार आधार के साथ दिया है जिसमें बत्ती लगायी जाती है। दूसरा हिस्सा चाय की केतली की तरह ही एक गोलाकार छोटी सी मटकी का पात्र है जिसमें तेल भरा जाता है। तेल निकलने के लिये मिटटी की नलकी इसमें बनाई गई है। इस गोलाकार पात्र में तेल भरकर दिये वाले आधार के उपर उल्टा कर बने सांचे में फिट कर दिया जाता है।
इसे इस तरह से उल्टा फिट किया जाता है कि तेल निकलने वाली नलकी ठीक दीये के उपर रहती है और उसमें से अपने आप तेल निकलकर दिये में दिये में भरता जाता है और दीये में तेल भरने के बाद इसमें से तेल निकलना अपने आप बंद हो जाता है। यह बात बेहद ही आश्चर्य जनक लगती है कि जब उसमें पूरी तरह से तेल भरा हुआ है तो दीपक में तेल भरने के बाद तेल निकलना अपने आप कैसे बंद हो जाता है। यह एक तरह से जादू तो नहीं वैज्ञानिक आधार पर आधारित है लेकिन इस दिये को बनाने वाले श्री अशोक चक्रधारी जी ने इसे जादुई दिया का नाम दिया है।
हमारे भारतीय सभ्यता में ऐसी अनेकों प्राचीन विधियां ग्रंथो में उल्लेखित है जिससे आज की पीढ़ी तो लगभग भूल चुकी है। ग्रामीण क्षेत्रों खासकर बस्तर में भले यहां के लोगों ने प्राचीन ग्रंथ नहीं पढ़े हैं किन्तु इन्हें ये विधियां इनके पुरखों से विरासत में मिली है। यही विरासत से मिली ये विधियां आज भी बस्तर में जीवित हैं । जिसका उदाहरण अशोक चक्रधारी जी द्वारा बनाया गया यह दीपक है।
इस दिये में तेल भर जाने के बाद अपने आप तेल बंद हो जाने के पीछे विज्ञान का भौतिकी सिद्धांत काम करता है। भौतिकी के इस सिद्धांत में हवा का दबाव दीये में तेल भरने और बंद करने को संचालित करता है। यह दीपक भी माडमसिल्ली डेम धमतरी का पानी छोड़ने का साईफन सिस्टम जैसा ही आधारित है। इस दिये में अंदर की तरफ एक छिद्र है। इस छिद्र से हवा अंदर जाकर उपर भरे हुए गोलाकर पात्र मे उपर की दबाव बनाने का कार्य करती है। जब दिया पूरी तरह तेल से भर जाता है वह छिद्र भी तेल से भरा रहता है। तेल जैसे उस छिद्र से कम होकर नीचे आता है तो पुनः उसमें हवा अंदर की ओर प्रवेश करती है और उपर लगे गोलाकार पात्र में तेल की ओर दबाव बनाता है और जितनी हवा अंदर जाती है उतना तेल फिर से दिये में गिरने लग जाता है।
माडमसिल्ली बांध, जिसे मुरुमसिल्ली के नाम से भी जाना जाता है, यह महानदी की एक सहायक, सिलयारी नदी पर स्थित है। यह छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित है। 1914 और 1923 के बीच निर्मित, यह एशिया में पहला बांध है जो सायफन स्पिलवेज है। रायपुर से माडमसिल्ली बांध लगभग 95 किमी दूर है। यह छत्तीसगढ़ में सबसे प्रमुख वास्तुशिल्प चमत्कारों में से एक है। सड़क के द्वारा मुरुमसिल्ली (माडमसिल्ली) बाँध, धमतरी शहर से 27 किमी की दूरी पर धमतरी- सिहावा राजकीय मार्ग पर बनरौद से 6 किमी में स्थित है। हालांकि कहा जाता है कि एशिया का सबसे बड़ा बाँध टिहरी भी इसी आधार पर बनाया गया है जिसमें स्पिल वे तकनीक का प्रयोग किया गया है जो एक निश्चित ऊंचाई तक पानी भरने के बाद स्वतः ही अतिरिक्त पानी को डैम से बाहर कर देता है। 
माडम सिल्ली अंग्रेजों के जमाने का बनाया हुआ डेम है जिसमें साईफन सिस्टम कार्य करता है। साईफन सिस्टम के बारे में विकीपीडिया से भी कुछ जानकारी प्राप्त होती है। विकीपीडिया के मुताबिक दाबलंधिका वा साइफन न्यून कोण पर मुड़ी हुई नली के रूप का एक यंत्र होता है, जिससे तरल पदार्थ एक पात्र से दूसरे में तथा नीचे स्तर में पहुँचाया जाता है।
अशोक चक्रधारी जी कोंडागांव के बेहद ही सम्मानित हस्तशिल्पकलाकार है। कुम्हारपारा में रहने वाले अशोक चक्रधारी जी ने अपनी इन्ही कला के बदौलत देश विदेश में कई पुरस्कार जीते है। यह जादुई दिया भी अशोक चक्रधारी जी ने ही बनाया है। 
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